अनमोल रिश्ता – आरती झा आद्या

नौ बज गए मम्मी.. ओह आज तो मैं देर हो गई मम्मी… सब इंतजार कर रहे होंगे… निदा दूध और बिस्किट के पैकेट उठाती बोल रही थी।

कोई इंतजार नहीं कर रहा होगा। क्या सनक सवार है इस लड़की पर। ऐसे कोई काम कहो तो कान में तेल डालकर बैठी रहती है…बड़बड़ाती निदा की मां निशा बोले जा रही थी।

क्यूं डांट रही हो बच्ची को । नेक काम ही तो करती है…कमरे से अखबार लेकर निकलते हुए निदा के दादाजी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं।

और निदा ये गई कि वो गई।

बहू मत डांटा करो बच्ची को …निदा के दादाजी निशा के हाथ से चाय का कप लेते हुए कहते हैं।

डांटने की इच्छा तो नहीं होती है बाबूजी। लेकिन ये दो घंटे इसी काम में निकाल देती है। कहीं नौकरी वगैरह देखे। एक साल हो गए स्नातक किए भी…निशा कहती है।

हो जाएगा बहू…सब हो जाएगा। तैयारी तो कर ही रही है… निदा के दादाजी कहते हैं।

हां बाबूजी…लेकिन निदा के पापा को क्या कहूं। वो तो जल्द जल्द से शादी कर देने पर उतारू हैं और इसी बात पर दोनों की ठन जाती है…चाय पीती निशा चिंता व्यक्त करती हुई अपने ससुर जी से कहती है।

तुम चिंता मत करो बहू… मैं अमर से करूंगा बात….निदा के दादाजी निशा को ढाढस बंधाते हुए कहते हैं।

निदा निकल गई अपने काम पर… बाथरूम से नहा कर निकलते ही निदा के पापा अमर ने निशा की ओर देखते हुए पूछा।

हां..वो..आपका नाश्ता लगा देती हूं..बात अधूरी छोड़ निशा रसोई की ओर मुड़ गई।

आए तो कहो उसे, ये सब छोड़ पढ़ाई में दिमाग लगाए। ये सब जीवन में काम नहीं आएगा…अपने पापा के पास रखी कुर्सी पर बैठता हुआ अमर कहता है।

क्यूं बच्ची के पीछे पड़ा है …निदा के दादाजी अखबार बंद करते हुए कहते हैं।

फालतू के खर्चे करवा रही है ये। क्या मिलना है इस सब से।आपके कारण ही लगाम नहीं लगा रहा हूं…अमर खीझते हुए कहता है।

कैसा बाप है तू…सुख मिलता है उसे इन सब से, इतना भी नहीं समझता… एक रिश्ता बन गया उसका उन सबसे…निदा के दादाजी कहते हैं।

हद्द ही है ये तो…अमर कहता है।

निदा..निदा…




जी पापा…अमर की आवाज पर सड़क के किनारे खड़ी निदा हड़बड़ाती हुई पलटी।

हो गया तुम्हारा ताम झाम तो घर जाओ और पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दो…अमर बाइक फिर से स्टार्ट करता बोलता है।

जी पापा बोल निदा घर की ओर बढ़ गई।

रात के ग्यारह बजने को आए। निदा कब तक आएगी। उसकी कोचिंग क्लास सात बजे खत्म हो जाती है ना। कॉल भी नहीं जा रही है। कुछ कहा था उसने… अमर बालकनी में जाता हुआ निशा से पूछता है।

कह तो रही थी कि आज आठ साढ़े आठ तक क्लासेज चलेंगी…निशा कहती है ।

फिर भी अभी तक तो आ जाना चाहिए था। गली में भी अंधेरा हो जाता है। अमर जा बाहर तक देख आ जरा…निदा के दादाजी अमर से कहते हैं।

हूं कहता हुआ अमर निकल गया।

कुछ दूर जाते ही गली का नजारा देख अमर भौचक्का रह गया।

निदा सड़क के किनारे खड़ी कांप रही थी। तीन चार लड़के जमीन पर गिर पड़े थे और कई कुत्ते उन पर चढ़ बोल रहे थे ।

निदा निदा…

पापा…अमर के झकझोरने पर निदा बदहवास सी अमर के गले लग रो पड़ी। अमर को माजरा समझते देर नहीं लगी और उसने तत्काल कॉल कर पुलिस को बुला लिया।

मैं सच में गलत था बाबू जी…प्रेम का रिश्ता बिना किसी फायदा के ही बनता है। आज उन कुत्तों ने जिस तरह से निदा की रक्षा की, वो कोई अपना ही कर सकता है। आप ठीक कहते थे बाबू जी उन बेजुबानों और निदा के बीच एक अनमोल रिश्ता बन गया है…निदा को अपने हाथों से रोटी का निवाला मुंह में देते हुए अमर कहता है।

आरती झा आद्या

दिल्ली

#एक_रिश्ता

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