अनोखा रिश्ता – मंगला श्रीवास्तव

क्या रिश्ता था मेरा उससे कुछ नही, वह सड़क पर मिल था मुझे बारिश की एक रात में भीगते हुए। ठंड से कांप रहा था वह ,मुश्किल से एक महीने का होगा शायद अपनी माँ से बिछड़ गया था। वह मेरी गाड़ी के नीचे आते आते बचा था। जब मैंने उसको उतर कर देखा तो वह अपनी मासूम निगाह से मुझको देखने लगा था।

मानो कह रहा हो मुझको बचा लो इस मूसलाधार बारिश से ।और मैं उसको प्यार से उठा कर घर ले आया था।उसको कपड़े से अच्छी तरह पोछ कर मैंने उसको एक कटोरे में दूध दिया तो वह इस तरह पीने लगा मानो के दिनों का भूखा हो।दूध पी कर वो मेरे पास आकर अपनी पूंछ हिलाने लगा मानो धन्यवाद दे रहा हो।

मैंने उसके सिर को प्यार से हाथ से सहला दिया,वह खुश होकर मेरे पैरों के पास ही बैठ गया। अब वह मेरे साथ रहने लगा ,मेरे अकेलेपन का साथी  बनकर वफादार दोस्त की तरह ।

धीरे धीरे उसकी दोस्ती मेरी मल्टी में और आस पास के मेरे सारे पड़ोसियों से और बच्चों से भी हो गई थी।सब ने मिलकर उसका नाम शेरू रख दिया था।वह था भी बहुत प्यारा सबके साथ खेलता व सबका मनोरंजन करता ।मेरे काम पर जाने के बाद पड़ोसी ही उसको संभाल लेते थे।

क्योंकि ? मैं तो खुद अकेला था मेरा अपना खाने को कोई नही था जो थे वह भी बेगाने हो गए थे ।

परिवार में माँ थी पिता थे दोनों की आपस मे बनी नही दोनो ने एक दूसरे को छोड़ दूसरी शादी कर ली।

माँ के पास रहा तो सौतेले पिता को ना भाया, पिता के पास रहा तो सौतेली माँ को सहन ना हुआ,बस अपने बल पर पढ़ाई पूरी करी और आज एक मॉल के सुपर बाजार में काम करने लगा।

पर अब शेरू के आने से जिंदगी बदल गयी मेरी,

मेरे घर पर आते ही वह मुझसे प्यार से लिपट जाता ऊपर चढ़ कर प्यार जताता ,यहां तक कि मेरे जूते व मौजे मुहँ से उठाकर जगह पर रख आता।गोदी में लेट कर जब तक मैं उसको खूब सहला कर प्यार ना कर लेता वो हटता नही।

मेरे हर दुख सुख को दर्द को वो मानो चेहरा देख कर पहचान लेता है। जैसे मेरा कोई बड़ा बूढ़ा दादा हो ।




आज मुझको सुबह से ही बुखार था,उठने की मानो हिम्मत ही नही बची थी ,वह मेरी हालत देख समझ गया था उसने भौंक   भौंक कर मुझसे दरवाजा खुलवाया और दौड़कर पास रहने वाले वर्माजी को खींच कर घर में ले लाया।

उन्होंने मेरी हालत देखी तो फौरन मल्टी में ही रहने वाले डॉ शाहू को बुलाया फ़ोन करके बुलाया उन्होंने देखा और कहा वायरल हुआ है और खुद के पास से ही दवाइयां जो डॉ के पास रखी रहती है मुझको दे दी और समझाने लगे की कब कब लेनी है शेरू सब कुछ पास खड़े होकर मायूस नजर से मुझको  और डॉ को देखता रहा था जैसे की वह बातों को समझ रहा हो।

लगभग पाँच दिन तक मेरी हालत ऐसी रही शेरू इन पांच दिनों तक ना तो बाहर गया न ही खेला बस मेरे सिरहाने बैठा रहा खाना भी बस वो थोड़ा सा खाता वह भी काम करने वाली अम्मा बना कर मुझको व उसको जबरन खिलाती तब। इस बीच वह कभी पंजो से मेरा सिर सहलाता,कभी पलंग पर चढ़कर मेरे बदन को सहलाता अपने पंजो द्वारा बदन को दबाने की कोशिश करता मेरे पलंग के सिरहाने ही सोता और तो और वो बेजुबान जानवर वक्त वक्त पर टेबल पर रखी दवाइयों के पास जाकर मुझको पंजो से इशारा करता मानो कह रहा हो कि दवाई का समय हो गया है।

पांच दिनों बाद जब मैं थोड़ा ठीक हुआ और उठकर मैने जब  उसको प्यार किया  तो वह खुशी के मारे मुझ पर चढ़ गया और किसी अपनो की तरह प्यार करने लगा ,अपनी पूंछ को हिलाकर  कभी पैरों पर लौट लगाता कभी जीभ से पैरो को चाटता मानो खुशी से बावरा हो गया ।

आज उसको देखकर मुझको लगा कि बेजुबान जानवर कितने वफ़ादार प्यार करने वाले और

केयरिंग होते है ।

अपने परिवार वालो से कही अधिक। वह सच मे एक प्यारा दोस्त रिश्तेदार और मेरा सहारा बन चुका है अब उसके बिना मेरी जिंदगी अधूरी है ।

धन्यवाद भगवान तुमने मुझको उससे मिलाया धन्यवाद शेरू तुम मेरी बेरंग जिंदगी में आयें हो दोस्त बनकर।

दोस्तों जानवर शायद मनुष्य से भी ज्यादा समझदार होते ही बस वह बेजुबान होते है पर जानते इतना है कितना हम जुबान वाले भी नही जानते ।

और वह परेशान करने वालो को काटते और भौंकते है,पर आजकल हम मनुष्य अपनी तीखी जुबान से हर वक्त एक दूसरो को काटते है और कड़वी बोली बोलते है।।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

मौलिक स्वरचित कहानी

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