अनोखा नशा – रणजीत सिंह भाटिया

इंडिया जाने से पहले छोटे भाई हरजीत को फोन पर  बताया कि  ” मैं और तुम्हारी भाभी आ रहे हैं घर की सफाई अच्छी तरह से करवा देना ” उसने कहा ” भाई साहब आप फिकर ना करें मैं सब करवा दूंगा

घर पहुंचकर देखा तो हैरान रह गया…!! सारा घर शीशे  की तरह चमक रहा था l हर चीज ठिकाने पर थी l पंखे बिल्कुल नए लग रहे थे l  फ्रंटयार्ड और बैकयार्ड एकदम साफ-सुथरे थे l ऊपर चांदनी पर जाकर देखा तो वह भी एकदम साफ थी l जो कि पहले सूखे पत्तों से भरी रहती थी l

मैं सिर हिला के मुस्कुराया तो हरजीत ने बताया कि ” यह सब काम एक बुजुर्ग जिनको हम बाबा बोलते हैं l उन्होंने किया है l वह पिचिय्यासी वर्ष  के हैं l एम.पी.ई.बी से रिटायर  हुए  हैं  l लाइनमैन थे l सुबह चार बजे उठकर कई घरों में शाम तक काम करता रहता है l आटा पिसा लाता है पानी भर देता है l

और फिर यहां आकर अपने पांच घरों में साफ सफाई और झाड़ू पोछा करता है ” l तब मैंने हरजीत से कहा ” इतने बुजुर्ग आदमी से काम क्यों करवाते हो l उसकी क्या मजबूरी है ” l तो हरजीत ने बताया कि ” वह अपनी खुशी से यह सब करता है l अच्छी पेंशन भी मिलती है l जो डायरेक्ट बैंक में जमा हो जाती है l और उसका एटीएम कार्ड उसकी पत्नी के पास है l


तीन मंजिला मकान भी है l पैसे कभी नहीं मांगता, फिर भी हम सब  उसे अच्छी रकम दे देते हैं l अच्छा नाश्ता भी करवा देते हैं, और खाना भी खिला देते हैं l लेकिन यह जितने भी पैसे कमाता है, सब इसकी पत्नी इससे ले लेती है l और ठीक से खाना भी नहीं खिलाती और बच्चे भी इसका ध्यान नहीं रखते l मकान भी इसकी  पत्नी के नाम है l नीचे एक छोटा सा कमरा दे रखा है l यह उसी में पड़ा रहता है l इसकी कोई पूछ परख नहीं करता,

फिर भी यह कभी उनकी बुराई नहीं करता, बस अपने आपको काम में व्यस्त रखता है l सारे काम करके ये अपने आप को व्यस्त रखता है और मगन रहता है और बिना किसी पर बोझ बने आत्मसम्मान से जीता है l

दूसरे दिन सवेरे जब मैं सोकर उठा तो वह बाबा अपनी पुरानी सी साइकिल लेकर आया, सावला सारंग पैरों में कोई पुराने से जूते, सिर पर मंकी कैप और एक पुराना सा स्वेटर पहने हुआ था साइकिल एक तरफ रख के वह अपने काम में लग गया I

थोड़ी देर बाद वो आंगन में झाड़ू लगाने आया  ” नमस्ते साहब ” बोल के अपने पोपले से मुंह से मुस्कुराया पीठ थोड़ी सी झुकी हुई थी l

मैंने कुर्सी आगे बढ़ाते हुए कहा ” बाबा पहले चाय नाश्ता कर लो उसके बाद में काम करना ” तो वह जमीन पर बैठने लगा मैंने कहा  ” नहीं बाबा ऊपर कुर्सी पर बैठो ठंड है ” वह कुर्सी थोड़ी दूर सरकार कर बैठ गया l  


मैंने कहा ” बाबा अब तो आपके आराम करने के दिन है  l इतना काम क्यों करते हो…?  ” तो वह कहने लगा ” साब में काम करता हूं तो जिंदा हूं जिस दिन काम करना बंद कर दूंगा उस दिन मर जाऊंगा ” और छाती पर हाथ ठोक कर कहने लगा ” मैं पिचिय्यासी साल का हूं, ना मुझे शुगर है l ना मुझे ब्लड प्रेशर है l

 कोई दवा नहीं खाता ” उसके चेहरे और आंखों में एक अनोखी से चमक थी l मैंने पूछा ” बाबा तुम्हारे बीवी बच्चे तुम्हें मना नहीं करते इतना काम क्यों करते हो ” तब उसने कहा ” करते हैं ना पर मैं किसी की नहीं सुनता घर की बाई ( पत्नी ) मुझे बहुत चाहती है मेरे लिए करवा चौथ का व्रत भी रखती है l जब शादी हुई थी तभी घोड़ी  पर चढ़कर ससुराल गया था l

मेरे ससुर ने मुझे पांच रूपये भी दिए थे l मेहनत करता हूं पर कभी किसी से कुछ मागता नहीं, जो भी लोग मुझे खुश हो कर देते हैं वह मैं जाकर घर के बाई को दे देता हूं, उसी में मुझे बहुत खुशी मिलती है


उसकी ये भोली भाली बातें सुनकर मैं सोचने लगा कि, लोग तरह-तरह के नशे करके अपने आप को बीमार कर लेते हैं l और यह बंदा काम के नशे में चूर रहकर एक तंदुरुस्त जीवन जी रहा है l जिसकी डॉक्टरों के साथ कोई अपॉइंटमेंट नहीं होती,  ना ही कोई दवाई खाता है l यह कैसा अनोखा नशा है..? जिसके नशे में  ये दिन रात चूर रहता है l

#आत्मसम्मान  

मौलिक एवं स्वरचित

लेखक रणजीत सिंह भाटिया 

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