अन्नपूर्णा  – पूजा मनोज अग्रवाल

जून जुलाई की झुलसाती दोपहर मे चलती लू के गर्म थपेडों के बीच, कमजोर सी देह वाले एक वयोवृद्ध व्यक्ति पसीने मे लथ-पथ,,, घर के बाहर खड़े थे । उनकी उम्र कुछ साठ – पैंसठ वर्ष के आस पास रही होगी ,,,,वे बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से हमारे घर की ओर देख रहे थे ।  

 

उम्र के इस पड़ाव पर जहाँ हम अपने घर के बड़े बूढ़े – बुजुर्गों को आरामदायक जिंदगी देना चाहते हैं,,,,उनका हर सम्भव ध्यान रखा करते हैं ,,,,वहीं अपने पिता की उम्र के एक वृद्धजन को कड़ी दोपहर में सड़क पर खड़े देख मुझसे रहा ना गया और मैने उनसे पूछ ही लिया , ” क्या हुआ बाबा ,,,आप इतनी तेज धूप मे यहाँ क्यों खड़े हैं,,,, “? 

 

वे कुछ देर निरूत्तर रहे ,,, हाथ के इशारे से उन्होने मुझे संकेत दिया कि वे कल से भूखे हैं ,,। उनके  भाव – भंगिमा से उनकी मानसिक पीडा स्वतः ही दृष्टिगोचर हो रही थी  ,,, भूख से व्याकुल बुजुर्ग की दुर्दशा देखकर मेरा रोम – रोम करुणा से भर उठा  । मैने उन्हें बिल्डिंग मे अन्दर आकर छाया मे बैठने का प्रस्ताव दिया और किचन मे आ गई ।

 

 मैने कुछ रोटियाँ दाल – सब्जी के साथ पैक कर दी और घर मे रखी कुछ मिठाइयों का अलग पैकेट बना कर उन्हें दे दिया । खाने की पैकिंग खोल कर वे बार बार डिब्बों को उलट पलट कर देखते रहे  ,,, उनकी खुशी देखने लायक थी । पेट भर खाना पाकर उनकी आंखों मे अश्रु आ गये,,,,वे अपनी भावनाओ पर नियंत्रण  करते हुए बोले , ” बिटिया मैं कोई भिखारी नहीं ,,,,पेट की इस भूख ने मुझे रोटी मांगने पर मजबूर कर दिया है । यह खाना मै अभी खा लूंगा ,,,और यह मिठाई जो गर्मी मे जल्द खराब ना होगी इससे मै अपनी रात की भूख मिटा लूंगा ” ।

 

बाबा के यह शब्द सुनकर मुझे धक्का सा लगा ,,,,। ” रात मे भोजन ना मिलने पर इस मिठाई से रात के भोजन का काम चला लेगे “। उनके यह अन्तिम शब्द मेरी अंतरात्मा को भीतर तक झकझोर गये थे । वे रुपयों की मदद लेने को तैयार ना थे ,,, परंतु रात के खाने का बन्दोबस्त करने के लिये मैने कुछ रुपए जबरदस्ती उन्हें दे दिये।

 

 बाबा ने एक वक्त का खाना पाकर जाने कितनी दुआएं मेरी झोली में डाल दी थी । किसी भूखे व्यक्ति को भोजन देने से दिल जो सुकून मिलता है ,,,वैसा सकून शायद ही कहीं और प्राप्त होता हो  । 

 



किन्तु बहुत से लोग रोज ही रोटी की समस्या से दो- चार होते हैं ,,,,उनका क्या ,,,? उनके लिये विचार कर मेरा मन अकुला उठा  ।  यह घटना दिलो-दिमाग मे चल ही रही थी,,, कि तभी बच्चे स्कूल से वापस आ गये ,,। दोनों बच्चों ने बताया कि आज उनके स्कूल ने रोटी बैंक नामक एक सर्कुलर जारी किया है ,,,। सर्कुलर में रोटी बैंक का नाम सुनकर मेरी इस बारे मे जानने की उत्सुकता और भी तीव्र हो गई थी ,,, जल्दी ही मेरी जिज्ञासा दूर करने के लिये बेटी ने उसे पढ़ कर अपने स्कूल का उददेश्य मेरे समक्ष रखा  ।

 

अरे वाह ! यह तो स्कूल संचालक श्री प्रद्युम्न आहूजा जी की तरफ से  किया जा रहा एक सराहनीय प्रयास था,,,,जिसमे  विवेकानंद स्कूल एक  गैर लाभकारी संस्था (रोटी बैंक) के साथ मिलकर गरीब , लाचार , अनाथ और भूखे व्यक्तियों तक शुद्ध व ताजा भोजन पहुंचाने की एक नई मुहिम चलाने जा रहा है । विवेकानंद स्कूल ने अपनी दो अन्य शाखाओं  के साथ मिल कर इस परोपकारी संस्था को अपनी पूर्णरूपेण सहभागिता प्रदान करने का विचार किया है ।

 

इस मुहिम के अनुसार सभी इच्छित अभिभावक अपने  घर से कुछ रोटियाँ , सूखी सब्जी और अचार के साथ फायल मे पैक करके , रोटी बैंक के लिये स्कूल  मे भेज सकते हैं । रोटी भेजने के लिये स्कूल ने सभी कक्षाओ के लिये दिन निर्धारित कर दिये हैं । स्कूल और रोटी बैंक संस्था ने हमे घर से ही यह परोपकार करने का सुअवसर प्राप्त करवाया है ।

 

इस व्यस्ततम जिन्दगी मे हम खुद गली – गली जा कर किसी भूखे को भोजन तो उपलब्ध नही करवा सकते,,,परंतु स्कूल के इस मानवता से भरे प्रयास को ,,,अपनी अधिक से अधिक सहभागिता प्रदान कर ,,, सफलता के उच्चतम शीर्ष तक तो पहुंचा ही सकते हैं ।  हर बच्चे के अभिभावक की तरफ से मात्र दो या चार रोटी का यह सहयोग जाने कितने भूखे लोगों की क्षुधा शान्ति कर सकता है ,,, ।

 

यह बात अटल सत्य है ,,, कि हमारे बच्चे उन्हीं बातों का अनुसरण करते हैं , जो वे अपने आस – पास , समाज और घर परिवार मे देखते है  ,,,। हम सभी अभिभावकों  की यह छोटी सी कोशिश हमारे बच्चों के समक्ष एक उदाहरण बनेगी । और यह उदाहरण उनके भीतर दया , करुणा , सहानूभूति के समस्त सदगुणो का विकास करेगा । जो प्रयास विवेकानंद स्कूल ने किया है , वही प्रयास यदि सभी स्कूल करें तो शायद हमारे देश मे व्याप्त भूखमरी की समस्या का जड़ से अंत किया जा सकता है ।

 

हमारा यह समाज हम सभी माओं , बहनों और बेटियों को माँ अन्नपूर्णा का दर्जा देता है । हर घर की यह अन्नपूर्णा ,,,रोटी बैंक और विद्यालय की इस साझा मुहिम को अपने योगदान से सफल बना सकती हैं ,,,, ताकि कोई भी व्यक्ति भूखा ना सोये ,,,,,,, ताकि भूख से दुखी होकर किसी भी व्यक्ति को अपने प्राण ना गवाने पड़ें ,,,,ताकि कभी किसी वृध्दजन को भूख से व्याकुल हो कर रोटी की भीख ना मांगनी पड़े ।

 

विवेकानंद स्कूल व रोटी बैंक को इस परोपकारी मुहिम चलाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ।

 

स्वरचित मौलिक 

पूजा मनोज अग्रवाल

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