बच्चों ने शर्मा जी के रिटायरमेंट को एक उत्सव का रूप देने की सोची , पता लगते ही शर्मा जी भड़क गए , अरे ये कोई खुशी का मौका है क्या… जो पार्टी रखी जा रही है । हां पापा …आज के जमाने में स्वस्थता के साथ रिटायरमेंट होना भी बहुत बड़ी खुशी की बात है । इस अवसर पर शर्मा जी के बेटे बहू , बिटिया दामाद सभी मौजूद थे ।अगले दिन पूजा पाठ के बाद शाम को कुछ मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के साथ एक छोटी सी पार्टी रखी गई थी ।
कार्यक्रम बीत जाने के बाद शर्मा जी मन ही मन सोच रहे थे …अब बच्चे भी अपने-अपने जगह चले जाएंगे ऑफिस के इतनी व्यस्तता के बाद एकदम से छुट्टी…. फिर वही अकेलापन … संध्या त्रिपाठी
अगले दिन नाश्ते की टेबल पर बैठते ही बहू ने कहा , मम्मी जी आज हम सब फिल्म देखने चलेंगे , फिल्म ? ना बाबा ,अब सिनेमा घर में जाकर भला कौन फिल्म देखता है …?
मैं तो चली भी जाऊं पर तुम्हारे पापा तो कभी न जाएं , सुशीला देवी ने कहा । अरे मम्मी जी चलिए ना , प्लीज और हम सब मिलकर चलेंगे… तो पापा जी मना नहीं कर पाएंगे !
उधर तुरंत ही बेटा पीयूष ने पूछा कितने बजे वाले शो का टिकट करूं..?
काफी मशक्कत के बाद शर्मा जी सपरिवार फिल्म देखने को राजी हुए । रास्ते भर अपने जमाने में फिल्म देखने जाने के दौरान हुई घटनाएं दोहराते रहे , पिक्चर में बीच-बीच में ठहाके मार मार कर हंसना , ताली बजाना , इंटरवल में पॉपकॉर्न का मजा लेना ,लौटते वक्त पूरी फिल्म की समीक्षा करना , सुशीला देवी आज पहली बार पति के इस रूप को देख रही थी । बेटा बहू ,बेटी दामाद सभी पापा के इस रूप को देखकर खुश हो रहे थे ।
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समय बीत गया…. बच्चे अपनी अपनी जगह चले गए । एक दिन बहू ने फोन कर पूछा ….मम्मी जी क्या कर रही है ? पिक्चर जाने की तैयारी , क्या ? आप और पापा फिल्म देखने जा रहे हैं ?
हां बेटा , तुम लोगों ने हमारे वर्षों से बंद पड़े , सूखे , बंजर सुप्त हुए इच्छाओं पर जो बीच बोकर गए हो ना , अब वो अंकुरित हो गए हैं । अब तो हम दोनों को इंतजार रहता है कब नई फिल्म लगे और हम देखने जाएं…. और हां अब तो इंटरवल में सिर्फ पॉपकॉर्न से काम नहीं चलता लौटते वक्त किसी रेस्टोरेंट में खाना खाकर ही आते हैं ।
और हमने कई अपने ऐसे शौक जिसे दिल में अब तक कैद कर रखा हुआ था उन छोटी-छोटी इच्छाओं , शौक को कभी बाहर आने का मौका ही नहीं दिया था…..पर अब हमारी छोटी-छोटी इच्छाओं शौक को पूरा करने का भी समय मिलने लगा है!
रिटायरमेंट के बाद मम्मी पापा को अकेलापन,एक भय जैसी नकारात्मक चीजें दूर कर , जिंदगी के प्रति सकारात्मक नजरिए को देख बच्चे बहुत खुश हुए ।
(स्वरचित और अप्रकाशित रचना)
संध्या त्रिपाठी