अनकहा दर्द – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

मैंने भावना से कभी प्रेम नहीं किया था परंतु आज वह ही मेरी बिटिया रिया और अपने बेटे गौतम को बहुत अच्छे  से संभाल रही है। मेरी माता जी अब उसी के ही साथ रहती है। 

      भावना हमारे पड़ोस में ही रहती थी। मेरी माता जी उसको बचपन से ही बहुत प्यार करती थी। अपने छोटे कद और काले रंग के कारण वह अपने घर में भी बेहद उपेक्षित रहती थी। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई वह मेरी माता जी के ही साथ बैठी रहती थी। उसकी छोटी बहन और भाई जो कि बहुत ही सुंदर भी थे

उन दोनों का विवाह हो चुका था। मैं तो 12वीं के बाद इंजीनियरिंग करने बैंगलोर चला गया था। वहां से ही मेरी कैंपस सिलेक्शन हो गई थी और बेंगलुरु की ही मेरी सहपाठिनि प्रिया के साथ मैंने विवाह भी कर लिया था। हम दोनों को विदेश भेजने के लिए प्रिया के पापा ने पैसों के अतिरिक्त हमारे वीज़ा इत्यादि का भी इंतजाम किया था। उसके चाचा भी विदेश में ही रहते थे।

     विदेश जाने से पहले जब मैं घर आया तो मैं अपनी माताजी को अपने कोर्ट मैरिज करने की भी जानकारी देनी थी हालांकि मैं चाहता था कि हमारी शादी विधि विधान पूर्वक भी मां के सानिध्य में हो वह शादी तो हमको वीज़ा इत्यादि की औपचारिकताओं के कारण करनी पड़ी थी। घर आकर मुझे पता चला कि मां मेरी शादी भावना से करना चाहती है।

मुझे भावना की शक्ल सूरत से कोई खास फर्क नहीं पड़ता परंतु मैं उसे समय विदेश जाने के ख्यालों में ही था और कोर्ट मैरिज भी कर चुका था इसलिए मुझे मां को  भावना से विवाह करने के लिए मना करना पड़ा। पिताजी की पेंशन और घर के ऊपर के भाग को किराए पर देने के कारण मेरी माता जी को पैसों की तो कभी परेशानी नहीं हुई थी।

औपचारिक रूप से हम दोनों का विवाह जल्दबाजी में करवाने के  लिए भी मां ने मना कर दिया था। उन्होंने कहा था कि जब तुम विदेश से आओगे तभी हम तुम्हारे विवाह की रिसेप्शन पार्टी कर देंगे।

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         विदेश जाने के बाद मैं कुछ पैसे मां को भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहा था। भावना से विवाह को मना करने के उपरांत केवल मां का ही नहीं अपितु भावना का भी दिल टूट गया था।

      मां ने अपने घर के ऊपर वाले हिस्से में दो लड़कों को पी.जी के तौर पर रखा हुआ  था। एक दिन मां जब दलान में फिसल गई थी तू उनके पैर  हड्डी टूट गई थी और उनके पैर का ऑपरेशन भी हुआ था उस समय भावना माताजी के साथ ही रही। ऊपर  रहने वाले राजन ने भी मां का बहुत ख्याल किया था।

मुझे विदेश में मां की हड्डी टूटने की सूचना  तो मिली थी लेकिन मैं फोन करने के सिवाय उनके लिए और कर भी क्या सकता था। वैसे भी जब से मैंने भावना से विवाह के लिए मना करा था मेरी माता जी मुझसे ज्यादा बातें भी नहीं करती थी। 

        माताजी के पैरों के ठीक होने के उपरांत माताजी ने राजन से भावना के साथ विवाह करने के लिए बात चलाई तो राजन ने कहा मुझे भावना के साथ विवाह करने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन अभी मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मैं एक घर का खर्च उठा सकूं। माताजी ने कहा भावना मेरी बेटी के समान है और वह भी तो एक प्राइवेट स्कूल में पड़ा ही रही है। हम तीनों मिलकर दाल रोटी का खर्चा तो चला ही लेंगे। माताजी ने भावना को भी मनाकर उसका विवाह राजन से करवा दिया था। भावना के बेटे के होने के बाद तो वह सब नीचे ही साथ रहते थे। उस परिवार के बनने के बाद शायद माता जी को मेरी जरूरत ही कहां रह गई थी। 

    2 साल बाद जब मैं प्रिया के साथ घर आया तब तक मेरी बेटी रिया भी हो चुकी थी। मां ने हमारा स्वागत तो किया परंतु हम लोगों को ऊपर ही रहने के लिए दिया। प्रिया को वैसे भी दिल्ली का माहौल पसंद नहीं था और हम दोनों वहां पर रिसेशन के कारण नौकरी छूटने पर ही आए थे। यहां आकर प्रिया को मां का भावना और राजन के साथ रहना बिल्कुल नहीं सुहाता था।

कई बार वाद विवाद की भी स्थिति आ जाती थी लेकिन मां स्वयं को भावना के साथ ही सुरक्षित महसूस करती थी। हालांकि वह मेरी बेटी रिया को भी गौतम के जैसे ही प्यार करती थी। प्रिया को हैदराबाद में जौब मिल गई थी। मैं अभी जॉब ढूंढ ही रहा था। रिया को यहां माताजी अच्छे से संभाल रही थी तो मैं चाहता था

कि हमें दिल्ली के नजदीक नोएडा गुड़गांव में जॉब मिले तो हम यहां ही रहें लेकिन प्रिया अपने कैरियर के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं थी वह रिया को और मुझे छोड़कर हैदराबाद में अपनी जॉब ज्वाइन करने के लिए चली गई। मैं अभी भी जॉब ढूंढ रहा था

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और अब हैदराबाद या बैंगलोर कहीं भी जाने को तैयार नहीं था। नजदीक ही एक ऑफिस में मेरी सिलेक्शन भी हो गई थी। प्रिया के मुझे हैदराबाद बुलाने के लिए बहुत फोन आते थे परंतु मैं रिया की परवरिश मां के साथ ही करवाना चाहता था।भावना और राजन का सुखी परिवार, आपसी प्रेम और समर्पण देखकर मुझे कई बार माताजी का कहना न मानने के लिए आत्मग्लानि भी होती थी।

     माताजी से बात करते हुए कई बार उनकी आंखों में और मेरे ख्यालों में एक अनकहा दर्द उभर जाता था परंतु अब क्या हो सकता है?  मेरा भविष्य कुछ स्पष्ट नहीं था, लेकिन एक ही ख्याल सुकून देता था कि मां तो सुरक्षित हाथों में है।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

#अनकहा दर्द

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