अनजान रिश्ता – नीलिमा सिंघल

राजुल ने बताना शुरू किया “वो एक ऐसी अनाथ है जिसके माता-पिता ने खुद उसको पालनाघर नाम के अनाथ आश्रम में छोड़ा, उसका नाम राजुल उसी अनाथ आश्रम की संचालिका ने रखा था, बचपन मे एक जोड़ा उससे मिलने आता था उसके लिए खिलौने लेकर आते थे साथ घुमाने की फ़रियाद लेकर आते थे पर,

पर रेणु मैडम ने कभी बाहर जाने की इजाजत नहीं दी वो 5 साल की हुई और वो जोड़ा मिलने आया  तो राजुल ने भोलेपन मे उनको आई बाबा बोल दिया उसके बाद वो कभी नहीं आए,

राजुल ने अपनी याददाश्त के हिसाब से उनकी पेंटिंग बनाई थी, इतना कहकर राजुल ने कहा आप मुझसे बड़ी दिखती हो क्या मैं आपको दीदी बोल सकती हूं?आपका क्या नाम है?”

उस लड़की ने कहा “मैं रचना हूं और तुम मुझे दीदी बोल सकती हो। क्या मैं तुम्हारी पेंटिंग देख सकती हूं “

राजुल ने कहा “हाँ , कल लेकर आऊंगी “

रचना ने कहा “क्या मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं?”

राजुल आंखे फाड़े हैरानी से उस 15 साल की लड़की को देख रही थी जिसने आज पहली बार उसको अपने घर के बाहर बुलाया था और अब राजुल के घर जाने की बात कर रही थी, राजुल ने खुद को सम्भाला और कहा” हाँ रचना दी आप कल मेरे साथ चलना “


कल रचना तैयार थी राजुल के घर जाने को पर आज राजुल आके नहीं दे रही थी, रचना रोज राजुल की प्रतीक्षा करती, पूरे एक हफ्ते बाद राजुल रचना को दिखाई दी जो जल्दी जल्दी रचना के घर ही आ रही थी,

उसके आते ही रचना ने सवालों की बौछार शुरू कर दी, राजुल ने कहा “माफी चाहती हूं दीदी बुखार मे थी “

रचना उसका कुम्हलाया चेहरा देखकर कुछ नहीं बोली स्कूटी की चाबी उठाई और राजुल के साथ उसके घर की तरफ चल दी।

राजुल ने रचना को घर पर नीचे बिछी चटाई पर बैठाया और अपनी सालों पहले बनाई पेंटिंग निकालने लगी, इतनी देर मे रचना ने पूरे कमरे रूपी घर का जायजा ले लिया।

पेंटिंग निकाल कर राजुल ने रचना के सामने रखी, रचना चौंक गयी क्यूंकि उसमे उसके पापा और मासी थे, क्या चक्कर था कोई बताने वाला नहीं था,

रचना के माता-पिता और मासी एक हादसे में दुनिया से चले गए थे, ।

रचना ने पूछा “अनाथ आश्रम से यहां कैसे आयी अभी तो बहुत छोटी हो,”

राजुल ने कहा ” आश्रम मे माई के मरने के बाद लड़कियों को रोज रात को कहीं भेजते थे बेला दीदी ने कहा तू यहां से भाग जा कहीं भी जा कैसे भी रह कुछ भी कर पर यहां से जा, बस उसी रात आश्रम छोड़ दिया,”

रचना राजुल को लेकर घर आ गयी और सारी जिम्मेदारी उठा ली, रचना ने राजुल को पढ़ाया लिखाया उसकी पेंटिंग मे रुचि देख कर उसको विदेश भेजा कोर्स करने और चुपचाप उसकी जिन्दगी से ओझल हो गयी।

आज राजुल की जिन्दगी का सबसे बड़ा दिन था उसका नाम बुलाया जा रहा था, उसने स्टेज पर चढ़ते ही एक बार नजर उठाकर हॉल की तरफ देखा तो साड़ी मे आँखों पर चश्मा लगाए उसको जो झलक दिखी वो उसकी रचना दी ही थी,


राजुल दौड़ते हुए अपनी दी के पास तक पहुंची और एकटक देखते हुए उन्हें गले लगा लिया और रचना का हाथ पकड़ कर अपने साथ स्टेज पर ले गयी।

उनकी मुलाकात वंहा बैठे लोगों से करवाई ” ladies and gentalmen ये हैं मेरी दीदी जो माँ से बढ़कर है इनकी ही मेहनत है जो मैं आज यहां हूं कहते हुए रचना को राजुल ने गले लगा लिया,

उसको समझ आ गया था कि रचना के पापा की सौतेली बेटी थी राजुल। ।

राजुल रचना को अवार्ड फंक्शन के बाद अपने घर ले गयी सदा सदा के लिए।

इतिश्री

शुभांगी

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