अंग्रेजी बोलने पर अहंकार क्यूं? – ऋतु गुप्ता 

“हिंदी और हम हिंदुस्तानी” 

 

काफी समय हुआ हम चारों सहेलियों (सपना,चारू, ज्योति और मैं अनु )को मिले क्योंकि आज सभी अपनी अपनी गृहस्थी में मग्न हो गई हैं, किसी को अपने घर परिवार से  छुट्टी नहीं तो, किसी को नौकरी की चक चक से। यानि पूरी तरह हम लोग भूल चुके हैं कि हमारी भी कोई जिंदगी है।

 

पर इस बार हम चारों ने ही यह तय किया कि एक दिन अपने अपने पति और अपने बच्चों के साथ सभी मिलने आएंगे। जल्दी ही जगह और समय निश्चित किया गया कि हमें किस तरह मिलना है।

 

सभी लोग निर्धारित समय पर पहुंचने लगे, क्योंकि सभी को बचपन की सहेलियों से मिलने का बहुत चाव था।सभी के बच्चे लगभग 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष के बीच में रहेंगे। बच्चे भी जल्द ही आपस में घुल मिल गए, और पति लोग भी आपस में अपने अपने क्षेत्र और इधर उधर की बातें करने लगे। 

 

हम सहेलियां भी आपस में बचपन से लेकर अब तक की  गुटर गुटर  में व्यस्त हो ग‌ईं। तभी सपना ने अपने 7 साल के बेटे लक्ष्य को कहा बेटा अंकल के फीट टच करो, सुनकर बहुत अजीब लगा एक बार को तो समझ नहीं आया, पर जब समझ आया तो तो लगा कि क्या सपना सीधे-सीधे हिंदी में नहीं बोल सकती थी कि बेटा अंकल के पैर छूं लो, कितनी सरस सरल और समृद्ध भाषा तो है हमारी हिंदी, पर हम ना जाने क्यों अंग्रेजी के अनर्गल शब्द हिंदी भाषा पर जबरदस्ती थोपने में लगे हैं।

 

मैं अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा का विरोध नहीं करती,लेकिन हमें अपनी मातृभाषा को मान देना  ही चाहिए,। मेरा एक प्रश्न है सभी से कि हिंदी भाषा की अपनी एक मिठास है तो फिर हमे क्यों ही इसे बोलने और लिखने में शर्म महसूस होती है, और अंग्रेज़ी बोलने पर अंहकार क्यूं?

 

देश की आजादी के साथ साथ ही 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने ये निर्णय लिया था कि हिंदी केंद्र सरकार की अधिकारिक भाषा होगी।क्योंकि भारत में अधिकतर क्षेत्रों में ज्यादातर हिंदी भाषा बोली जाती है, इसलिए हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया और इस निर्णय को व्यवहारिक तौर पर लागू करने के लिए वर्ष 1952 से पूरे भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसका मुख्य उद्देश्य वर्ष में 1 दिन इस बात से लोगों को परिचय कराना है कि जब तक वह हिंदी का प्रयोग पूरी तरह से नहीं करेंगे तब तक हिंदी भाषा का विकास नहीं हो सकता।



 

तभी चारु की बेटी आध्या आगे आकर हम सभी को कविताएं सुनाने लगी ,आध्या बहुत ही नटखट और होशियार बच्ची है। उसने लगातार  पांच कविताएं अंग्रेजी की ही सुनाई तो इस पर मैंने आध्या से कहा बेटा ,बहुत अच्छा अब एक कविता हिंदी में भी तो सुनाओ ।इस पर चारु ने बहुत  ही गर्व से बताया कि उसकी हिंदी जरा कमजोर है, उसे हिंदी की कविता नहीं आती, क्योंकि शहर के सबसे बड़े स्कूल में आध्या पढ़ती है, जहां सभी चीजें इंग्लिश में  ही लिखी पढी और बोली जाती है।

 

मुझे सुनकर बहुत दुख हुआ की हिंदी का नही आना क्या सचमुच गर्व का विषय है? गर्व तो तब होना चाहिए जब हम आज के परिवेश में भी अपने बच्चों को हिंदी भाषा का ज्ञान दे  सके,उसका महत्व समझा सकें। अंग्रेजी या अन्य भाषाओं के साथ हिंदी भाषा का पूर्ण ज्ञान हमें हमारे बच्चों को देना ही चाहिए, यह हमारा, हम माता-पिता का, अध्यापक और समाज का परम कर्तव्य है।

 

किसी भी देश को अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए और फिर हिंदुस्तान तो हिंदी से ही बना है।

 

तभी ज्योति की 12 वर्ष की बेटी मणि ने आकर अपनी एक लिखी कहानी  हम लोगों को सुनाई और वो भी हिंदी में,तो मन को बहुत अच्छा लगा कि अभी भी कुछ लोग हैं, जो हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता ,हमारे संस्कारों की विरासत की शैली को संजोकर रखे हैं।

 

जिससे कि हमारा हिंदुस्तान पूरे विश्व में हिंदी  पर लगी बिंदी के जैसा चमक रहा है।

 

हिंदी को तुम दो सम्मान 

तभी बढ़ेगा देश का मान।

हिंदी सरस मिठास की बोली,

जिसने बोली उसकी ही हो ली।

हिन्दुस्तान बना हिंदी से,

बोलो हिंदी भाषा की जय।

#अहंकार 

जय हिन्द 

जय भारत 

 

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलंदशहर

उत्तर प्रदेश

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