अमर प्रेम – ऋतु गुप्ता

क्या बाबू जी अब तो मान लो कि मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं, कब तक यूं मां का फोटो लिए उसे दर दर ढूंढते रहोगे?

आज आठ महीने हो गए पर आप हैं कि मानने को तैयार नहीं की मां…….अपने पिताजी से इतना कहने के बाद प्रभात आगे ना बोल पाया, वह खुद मां का पता लगाना चाहता था पर नियति के आगे बेबस था। वह तो बस अपने पिता रामसरन को इस दुख से बाहर निकालना चाहता था।

थोड़ा रुक कर प्रभात ने अपने बाबू जी से कहा बाबूजी उत्तराखंड त्रासदी में हम अकेले नहीं थे जिन्होंने मां को खोया है, ना जाने कितने घर उजड़ गए, परिवार के परिवार खत्म हो गए बाबूजी।

ईश्वर के आगे किसकी चलती है ? मैं तो इसे भी ईश्वर का आशीर्वाद और चमत्कार ही मानूंगा कि आप हमारे साथ हैं,

आपका आशीर्वाद सदा हमारे सर पर बना रहे। बस अब आप इन जांचवाले लोगों को मां का नाम उन मृत लोगों में लिखवा दीजिए जो उत्तराखंड त्रासदी में से लापता हुए थे।

रामसरन आंखों में आंसूओं का सैलाब लिए किसी तरह उन्हें रोकते हुए अपने बेटे प्रभात से बोला, कैसे मान लूं बेटा मैं और तेरी मां दोनों साथ में ही थे, अच्छे भले बाबा केदारनाथ के दर्शन कर खुशी-खुशी नीचे  धर्मशाला में कमरे पर पहुंचने ही वाले थे कि अचानक मौसम बिगड़ने लगा,अचानक से मेरी आंखों के सामने ही पानी का सैलाब आया और तेरी मां पिट्ठू के साथ-साथ ही जलमग्न हो गई। उसने मुझसे वादा किया था कि मरते दम तक मेरा साथ निभाएगी, यूं अचानक मुझे छोड़कर वो नहीं जा सकती, और ईश्वर भी इतना निष्ठुर नहीं हो सकता, उसे मेरी फरियाद सुननी ही होगी।

रामसरन ने आगे कहा, मैं उसे लापता तो जरूर मानता हूं पर मृतकों मैं उसका नाम हरगिज नहीं लिखवा सकता, ना जाने किस हाल में होगी तेरी मां, कहीं तो वो मेरा इंतजार करती होगी। मैं मरते दम तक उसे ढूंढता रहूंगा और देखना एक दिन तेरी मां जानकी मुझे जरूर मिलेगी, कहकर रामसरन ने गले में पड़े हुए गमछे से अपने आंसू पौछें और फिर घर से बाहर निकल गया।

आसपड़ोस वाले भी अब उसे मानसिक मरीज समझने लगे थे, सब कहते कि रामशरण के दिल को अपनी पत्नी को खोने का जबरदस्त धक्का लगा है।




पर रामसरन ने हार न मानी,उसे पूरा विश्वास था कि एक दिन जानकी उसे जरूर मिलेगी,वो अपनी पत्नी की खोज में अपने गांव से कई कई महीने के लिए निकल जाता। 

आपदा के बाद फिर से बसे हुए गांवों में जाकर वहां के लोगों को अपनी पत्नी की फोटो दिखाता और पूछता कि क्या किसी ने उसकी पत्नी जैसी किसी औरत को देखा है, हर तरफ से ना सुनकर थोड़ा मायूस जरूर होता, पर उसका दिल मानने को तैयार ही नहीं था कि जानकी अब नहीं  रही। ना जाने कितने दिन वो यहां से  वहां, एक गांव से दूसरे गांव हाल बेहाल हुआ घूमता रहता।

लगभग डेढ़ बरस बाद एक दिन जब रामसरन थका हारा  चमोली गांव के किसी घर के बाहर चबूतरे पर बैठा था तो वहां चार पांच अन्य स्थानीय लोगों  की बातचीत से उसे पता चला कि गोपेश्वर गांव के आसपास कोई मानसिक विक्षिप्त सी महिला सूनी आंखें लिए बैठी रहती है ना कुछ कहती है ना ही  किसी से बोलती है, कोई खाने को दे दे तो थोड़ा खा लेती है,अपना नाम भी नहीं बताती कि कौन है कहां से आई है। उसकी मनोस्थिति इतनी खराब है कि कभी भी जोर जोर से रोने लगती है, शायद आपदा में उसका परिवार उससे बिछड़ गया या अपना कोई आपदा में तबाही की भेंट चढ़ गया, जिसका उसे गहरा सदमा लगा है।

इतना सुनकर रामसरन को कुछ आशा सी नजर आई उसने जेब से निकालकर अपनी पत्नी जानकी का फोटो उन लोगों को दिखाया, तो किसी ने भी पक्के तौर पर नहीं कहा कि ये वही औरत है क्योंकि एक अच्छी तस्वीर और एक मानसिक विक्षिप्त महिला किसी भी स्तर पर मेल न खाती थी।

पर रामसरन ने मन पक्का किया कि वो गोपेश्वर जरूर जाएगा और उस महिला से जरूर मिलेगा। वो अपनी आशा की पोटली बांधे तुरंत अपनी पत्नी जानकी की खोज में गोपेश्वर निकल गया।

 

गोपेश्वर पहुंचकर उसने लोगों से उस मानसिक विक्षिप्त महिला के बारे में पूछा तो किसी ने उसे बताया कि  वो सामने एक पत्थर पर बैठी हुई महिला वही है।जब रामशरण उस महिला के पास बैठा तो वो महिला बिल्कुल गुमसुम हुए शून्य में ताक रही थी।

पहली बार में तो रामसरन को भी वह महिला अपनी जानकी सी न लगी, पर वो महिला जो अभी कुछ देर पहले बिल्कुल शांत गुमसुम बैठी थी , रामसरन को देखकर जोर जोर से रोने लगी, उधर रामसरन ने महिला के हाथ पर वही गहरा कटा निशान देखा जो  पशुओं का चारा काटते समय एकबार उसकी पत्नी  जानकी के हाथ पर लगा था। रामसरन को अपनी आंखों पर विश्वास ना हुआ, उसने अपनी पत्नी जानकी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा अब सब कुछ ठीक हो जाएगा जानकी, चल अब अपने घर चलते हैं।अंत में ईश्वर पर रामचरण के अटूट विश्वास और उसके अमर प्रेम की जीत हुई।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

 

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