अमर-प्रेम – पुष्पा जोशी

  ‘बस माँ , अब और नहीं, आप कब तक सहेंगी यह सब  ? तीन दिन से देख रहा हूँ, पापा रात को देर से आते हैं ,खाना नहीं खाते और सो जाते हैं | फिर आप भी कुछ नहीं खाती | आज तो हद ही कर दी घर पर ही नहीं आए | कब तक चलेगा यह सब ?’ फिर कुछ रूक कर शुभम बोला- ‘अब आप यहाँ नहीं रहेंगी, मेरे साथ चलेंगी हैदराबाद |’

               ज्योति मुस्कुराई और बोली- ‘बेटा, तुम बेकार चिन्ता करते हो। मुझे भूख भी नहीं है, रात ज्यादा हो गई है, तुम जाकर सो जाओ |’ शुभम ने कहॉ – ‘नहीं माँ, आज आपको निर्णय लेना ही होगा, आप यह नहीं सहेंगी, आप मेंरे साथ चल रही हैं | जब पापा को हमारी चिन्ता ही नहीं है, तो आप क्यों परेशान होती हैं |’

                   ज्योति जो अभी तक शांति से सुन रही थी, एकदम तैश में आ गई, बोली – ‘कैसे कह सकते हो कि उन्हें हमारी चिन्ता नहीं है | उन्हें हमारी चिन्ता नहीं होती, तो आज हम इतने आराम से नहीं रह रहै होते | शोभा की P.H.D. की पढ़ाई, तुम्हारी हैदराबाद में कम्पनी, सब उनके खून – पसीने की कमाई का परिणाम है | वे दिन‌ – रात मेहनत करते हैं, ताकि हम आराम से रह सके और तुम….।’ 

           वह गुस्से से भनभनाती अपने कमरे में चली गई |शीतल भी चली गई, उसे अपनी सास का इस तरह बोलना रास नहीं आ रहा था | शुभम अपनी माँ को जानता था, कि माँ का गुस्सा ज्यादा देर का नहीं है | उसे मालुम है, कि माँ पापा के बारे में कुछ भी गलत नहीं सुन सकती है | शुभम घर का बड़ा बेटा है, उसने माँ – पापा के मधुर सम्बन्धों को करीब से देखा है | मगर, कुछ दिनो से उन दोनों के बीच एक दरार नजर आ रही थी , जो बढ़ती जा रही थी | माँ का मन दु:खाने का शुभम का कोई आशय नहीं था, वह अपने कहै, शब्दों पर पछता रहा था |

              वह चुपचाप आँगन में एक कुर्सी पर बैठा रहा |शोभा आकर बोली – ‘भैया, आप परेशान न हो, इस समय माँ गुस्से में हैं, वे हमारी एक न सुनेंगी | कुछ देर बाद उनका गुस्सा शांत होगा, तो मैं उन्हें दूध गरम करके पिला दूंगी। वैसे भी माँ रात को एक या दो रोटी खाती है |आप सो जाइये | ‘




              उसने शोभा की ओर देखा, शुभम की आँखे नम थी,और उसमें बैचेनी के भाव थे | कुछ देर वह शोभा के हाथ थामे,  बैठा रहा, फिर अनमने मन से कमरे मैं चला गया |

              ज्योति को इतनी ठंड में, पसीना आ रहा था, वह धम्म से पलंग पर बैठ गई, उसनें कूलर, पंखे सब चालू कर दिए, मगर उसको शांति नहीं मिली | सच है, जब अन्तस में आग लगी हो, तो सुख – सुविधा के बाह्य उपकरण बैमानी लगते हैं | वह उठी, उसने अलमारी से अपनी डायरी और पेन निकाले, और अपने मन की सारी भड़ास डायरी में उतार दी | मन कुछ शांत हुआ, तो हाथ मुंह धोकर सोने का प्रयास करने लगी |

            शोभा सब देख रही थी, वह अपनी माँ के गले में बाहें डाल कर सो गई | ज्योति ने उसके सिर पर हाथ फेरा, और पूछा – ‘भैया सो गया क्या ?’

                    ‘हाँ माँ, अब क्या करना है ? भोजन को तो आपने नाराज कर दिया, वह तो आप खाऐंगी नहीं | बेचारा यह दूध का गिलास आपका रास्ता देख रहा है, इसे नाराज मत करना |’

         ज्योति मुस्कुराई बोली – ‘चुप शैतान तू मानेगी नहीं, ला दूध का गिलास दे,और बिस्किट लेकर आ।’अब ज्योति का मन शांत था | वह सो गई तो शोभा भी अपने कमरे में,पढ़ाई करने के लिए चली गई

ज्योति अंबर के विषय में, कुछ भी गलत नहीं सुन सकती थी | उन दोनों का प्रेम विवाह हुआ था, दोनों कॉलेज में साथ में पढ़ते थे, एक दूसरे की भावनाओं को समझते थे। उनका प्रेम उथला नहीं, दिल की अतल गहराइयों में छिपा था | यह सही था कि अम्बर के व्यवहार में आए परिवर्तन से वह हैरान थी | वह पास होकर भी पास नहीं होता, कारण ज्योति की समझ में नहीं आ रहा था | ज्योति को लग रहा था, कि अम्बर कुछ परेशान है | परेशानी क्या है, वह. समझ नहीं पा रही थी | उसने कई बार पूछा, मगर अम्बर हँस कर टाल देता | आज उसने निश्चय किया कि वह अम्बर की उलझन को जान कर रहेेगी | सुबह जब सब भोजन कर चुके, ज्योति ने शोभा, शुभम और शीतल को ऑंख के इशारे से उनके कमरे में भेज दिया | फिर बोली- ‘ क्या बात है ?  तुम परेशान क्यों हो ? मुझे बताते क्यों नही ? अगर कोई गुत्थी है तो, दोनों मिल कर सुलझाएंगे.’




             ‘कहा ना कोई बात नहीं है, काम की अधिकता है बस’ ‘तो काम कम करदो ना, किस चीज की कमी है हमें | कुछ आराम करोगे तो तबियत ठीक रहेगी |’  ‘बस अब आराम ही करूँगा, कुछ दिन और काम कर लूँ |’

                 ज्योति ने कहॉ- ‘डॉक्टर को बताया या नहीं ?’  ‘हाँ बाबा कल ही बताया, दवाई भी बराबर ले रहा हूँ |’ अम्बर को अस्थमा की बिमारी थी, और ब्लड प्रेशर भी ज्यादा रहता था |

              अम्बर बोला – ‘और कुछ कहना है ? ज्योति ने अपनी बड़ी – बड़ी आँखों से अम्बर की आँखों में झांका जैसे उसकी सच्चाई परख रही हो | फिर बोली – ‘कुछ तो छिपा रहै हो, खाओ मेंरी कसम |’

               ‘तुम पगला गई हो, कोई अपनी जान की कसम खाता है ? अगर मेंरी जान निकल गई तो …|’ ज्योति ने अम्बर के होटो पर उंगली रख दी |

             अम्बर कार्य की अधिकता का बहाना बनाकर, ज्यादा समय ऑफिस में बिताने लगा | ज्योति ने डॉक्टर से भी पूछा – ‘अम्बर को क्या परेशानी है ?’  मगर डॉक्टर ने कहॉ – ‘ सब ठीक है, सारी रिपोर्ट सही है, कोई परेशानी की बात नहीं है |’ ज्योति ने रिपोर्ट को देखा, तो उसे विश्वास हो गया कि सब ठीक है |

          उड़ती – उड़ती ये खबरें भी कानों में पड़ रही थी, कि अम्बर का उसकी सेक्रेटरी के साथ सम्बन्ध है,और वे शादी करने वाले हैं | ज्योति यह मानने को तैयार नहीं थी, उसे विश्वास था अपने प्यार पर |

            दिन रात कटते जा रहे थे, उसे इन्तजार था,अपने पहले वाले अम्बर का, उन लम्हों को एक बार फिर से जीने का, जो उसने अम्बर के साथ हँसते खेलते गुजारे थे। 




               एक दिन वह ऐसी ही किसी सोच में खोई थी |अम्बर ने कहॉ – ज्योति आज तुम्हारे हाथ की सरसों की साग और मक्का की रोटी बनाओ ना, और मीठी लापसी और कढ़ी भी | बहुत इच्छा हो रही है, खाने की।’ अम्बर ने कई दिनों बाद , ज्योति से किसी चीज की फरमाइश की थी, वह खुशी से चहक उठी |उसने भोजन बनाया दोनों ने प्रेम से भोजन किया। अम्बर ने एक फाइल ज्योति को दी और कहॉ – ‘इसे बहुत सम्हाल कर रखना, बहुत जरूरी है, और तुम्हारे सिवा किसी और पर विश्वास नहीं है |’

                 ज्योति खुश थी, उसे लग रहा था, कि उसका अम्बर वापस आ गया है, उसके निकट, सारी दरारें भर गई है, और सब कुछ सिमट गया है एक बिन्दु में | मगर अम्बर के मन में तो कुछ और ही चल रहा था |

        अम्बर ने पूछा – ‘घर में किसी चीज की कमी तो नहीं है? कोई परेशानी तो नहीं है ना?’

                ‘सब ठीक है, कोई परेशानी नहीं | क्यों पूछ रहे हो?’  ‘बस वैसे ही, तुम्हें कोई परेशानी होने भी नहीं दूंगा | मैं हूँ ना।’ ज्योति ने अम्बर की आँखों में देखा, ऐसा लगा कि आँखे कॉफी कुछ कहना चाहती है, साथ ही न कहने की विवशता भी नजर आई | पहली बार ज्योति उन भावों को ठीक से पढ़ नहीं पाई, एकटक देखती रही उन्हें। 

               अम्बर ने नजरें नीची की और बोला अच्छा अब जा रहा हूँ | ज्योति ने सोचा ऑफिस जा रहे हैं | मगर अम्बर तो अपनी सेक्रेटरी के साथ फ्लाइट से अमेरिका चला गया |

                ज्योति को मालुम हुआ तो वह अवाक रह गई, उसे लगा अम्बर गिर गया है, जमीन धंस गई है | वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे ? उसे लगा, जीवन में कुछ बाकी नहीं रहा है| वह उन यादों और ख्वाबों का क्या करेगी | वह बदहवास सी अपने कमरे में गई, अपनी डायरी लेकर आई और आँगन में बैठ कर, उसके पन्ने फाड़ – फाड़ कर जलाने लगी, उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रह गया था | उसके दिल को झटका लगा था | शोभा ने बहुत रोकने की कोशीश की, मगर असफल रही | जैसे – जैसे डायरी के पन्ने जल रहे थे,उसकी आँखो से आँसुओं की धार बह रही थी |

             वह सूखे पत्ते सी काँप रही थी, अगर शोभा नहीं होती तो वे गिर जाती |शोभा ने उनका सिर अपनी गोदी में लिया और सहलाते हुए बोली – ‘माँ आप परेशान मत हो, मैं हूँ ना?’




            ‘यही तो कहा था उन्होंने भी।’ ‘हाँ तो, आप हिम्मत रखे, हम कम्पनी के ऑफिस चल कर देखते हैं|’  शोभा ने हिम्मत दी तो ज्योति उसके साथ ऑफिस गई | वहाँ जाकर देखा, तो सबके चेहरे लटके हुए थे, उदास थे। मैनेजर से पूछा तो वह कुछ बोल नहीं पाया | शोभा ने अम्बर के केबिन की चाबी ली, वहाँ जाकर देखा, टेबल पर ज्योति और अम्बर की तस्वीर रखी थी | पूरे केबिन में सन्नाटा पसरा हुआ था। कम्पनी के सारे लोग केबिन में आ गए थे |

           शोभा ने पूछा – ‘क्या बात है ? कोई बताता क्यों नहीं ? पापा अमेरिका क्यों गए हैं ? और सेक्रेटरी साथ में क्यों गई है ?’

             मैनेजर ने  दबी आवाज में कहॉ – ‘छोटी मालकिन, साहब हम सबको छोड़कर गये हैं। शायद अब कभी नहीं …….|’उसका वाक्य अधूरा रह गया, वह रोने लगा | फिर हिम्मत करके बोला – ‘डॉक्टर का कहना है, मालिक के पास अब ज्यादा समय नहीं है | सेक्रेटरी के रिश्तेदार डॉक्टर हैं, इसलिये वो साथ मैं गई है |

             वे नहीं चाहते थे, कि बड़ी मालकिन को उनकी बिमारी के बारे में पता चले | वे अपना सब कुछ बड़ी मालकिन के नाम कर गये है | हम सभी के जीवन यापन की भी पूरी व्यवस्था करके गये हैं | वे देव पुरूष हैं, मेडम जी |’ 

           शोभा ने कहॉ – ‘अभी दो दिन पहले तो डॉक्टर से पूछा था, सारी रिपोर्ट देखी थी |’  ‘मेडम जी डॉक्टर साहब उनकी जिद के आगे विवश थे, आपको सही रिपोर्ट भी नहीं बताई थी | वे बड़ी मालकिन को जानते हैं, उनका कहना था, कि अगर बड़ी मालकिन को बिमारी के बारे में मालुम हो जाएगा, तो जो जीवन वे जी रही है, वह भी नहीं जी पाऐंगी उन्हें हमेशा बड़ी मालकिन की चिन्ता रहती थी |’

                  ज्योति को सम्हालना मुश्किल था, न आँख में आँसू थे, न कोई चेतना। कम्पनी के लोगों  की मदद से शोभा उन्हें घर ले आई | शुभम को शोभा ने कॉल कर दिया था, वह भी आ गया| ज्योति को डॉक्टर की दवा का असर नहीं हो रहा था | दो दिन बाद अमेरिका से कॉल आया – ‘अम्बर नहीं रहै |’ शुभम और शोभा माँ के कमरे में गये, मगर वहाँ ज्योति भी नहीं थी, वह अम्बर में विलीन हो गई थी। उनके हाथ में वो फाइल  थी, जिसमें अम्बर अपना सब कुछ ज्योति के नाम कर गए थे | ज्योति ने भी अपना सब कुछ अम्बर के नाम कर दिया था। 

            इसे कहते हैं “अमर प्रेम”।

 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!