अखिरी फैसला – रीमा महेंद्र ठाकुर

चित्रकथा

घर आज खुशियों  से भरा था, मेहमानों के जमघट के बीच, माधुरी के पति आलोक, अपनी नन्ही सी बच्ची को बाहों में उठाए, बेतहाशा चूमे जा रहे थे! 

पिता का प्रेम,  पांच साल हो गये विवाह को अब जाकर पिता का सुख मिला था! 

माधुरी बडी ममता भरी निगाहों से बच्ची को देखे जा रही थी! 

भगवान ने अखिर उसकी सुन ली थी “

कितना इंतजार किया था उसने “

अखिर  बडी धूमधाम से नामकरण हुआ, 

श्यामली, नाम रखते हुए पंडित जी , बोले बडी भाग्यवान बच्ची है, 

आपके तो वारे न्यारे हो जाऐगे जजमान, 

आलोक जी खुशी से फूले न समाये, 

पूरे एक महिने की कमाई न्यौछावर कर दी “

धीरे धीरे समय अपनी गति अपने समय से बढने लगा “

और श्यामली भी”

अब श्यामली सात साल की हो गयी! 

उसकी बडी बडी आंखे सबको बरबस अपनी ओर खीचती “

वो आम बच्चियों से अलग थी! 

फिर वो एक भयवाह रात भी आ गयी, जब आलोक जी अपनी पत्नी के साथ अपनी सब्जी की दुकान बंद कर घर की ओर बढ गये! 


घर पहुंचते ही चौंक उठे “

साॅकल बाहर से खुली थी, दरवाजा खोलते ही उनके पैरो के नीचे से जमीन खिसक गयी! 

अभी दस मिनट पहले ही तो श्यामली को सुलाकर, घर के बाजू वाली दुकान पर अपनी पति की मदद करने पहुंची थी, 

दस मिनट मे बच्ची को कौन ले गया होगा “

माधुरी बेतहाशा इधर उधर पूछताछ करने लगी “

काफी लोग इकट्ठा हो गये! 

कुछ लोगों ने आलोक जी को थाने जाने की सलाह दी “

वो थाने की ओर बढ गये! 

उनके जाते ही, माधुरी, घर से सटे स्कूल की ओर, 

उस स्कूल के एक शिक्षक से उसकी अनबन चल रही थी! 

वजह उसकी सब्जी की ठेला गाडी थी! 

वो स्कूल के बरमदे में पहुंची, तो उसे महसूस हुआ की जैसे पास वाले कमरे में कोई तेजी से हांफ रहा हो”

वो बिना रूके उस कमरे में दाखिल हो गयी “

सामने का नाजरा देखकर उसकी आंखे फटी रह गयी! 

उसकी बच्ची बेजान सी पडी थी, 

वो आदमी उसके हृदय के टुकड़े को नोच खसोट रहा था! 

वो दौडकर पास चली गई “

और उस दरिन्दे को धक्का देकर, अपनी बच्ची से परे कर दिया! 

उसने बच्ची को गोद में उठाया उसमें जान न थी! 

माधुरी की आंखो मे खून उतर आया, 

उसके नजरें इधरउधर कुछ तलाशने लगी! 

सामने ही उसे, हासिया नजर आ गया! 

और कुछ ही देर में, उसने कई वार कर दिए, 

कुछ ही पल में उस पिशाच के प्राण पखेरू उड चुके थे!

मौके वारदात पर ही, पुलिस ने मार्ग कायम कर दिया था! 

कोर्ट में केस शुरू हो चुका था! 

बच्ची कौ खोने के बाद माधुरी मौन हो चुकी थी! 

वकील, माँ बाप की लापरवाही और नारी के पहनावे को दोष दे रहे थें! 

अखिर माधुरी ने अपनी खमोशी तोडी “और वो चीख उठी”

भरी अदालत मे माधुरी चीख चीख कर कह रही थी , हाँ मैने मारा उसे ,,,,साहब ‘मुझे फांसी चढा दो साहब “बडी मन्नत के बाद एक बेटी दी थी , भगवान ने “ये पिशाच उसे  भी खा गये ,ये समाज कहता है। पूरे कपड़े पहनाओ बेटी को ,”साहब सात साल की बच्ची को क्या साडी पहनाऐ,इनकी आँखो की दरन्दगी किसी को नहीं दिखती ,”इसलिए मैने खुद ही, इसाँफ कर लिया।

अब जो भी सजा हो मै भुगतने के लिए तैयार हुँ। सारी अदालत मे सन्नाटा ,छा गया। जस्टिस  ,वैभव ताम्रकार की आँखे भर आयी ,वो भी निरूतर हो गये। किसी की समझ में कुछ न आया। सब बगले झाँकने लगे। तभी एक आवाज़ सन्नाटे को चीरती हुई गूँजी  ।दलील की कमी की वजह से आगे की  तारीख बढाई जाती हैं। अगली सुनवाई ,पाँच दिन बाद!! समाप्त 

रीमा ठाकुर

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