आखिरी विदाई – रश्मि प्रकाश

“अरे बेटा ध्यान से अपनी माँ को तैयार करो…. बिल्कुल सोलह श्रृंगार करना उसका… और हाँ उसकी शादी वाली चुनरी भी ज़रूर ओढ़ा देना।”अपनी बहुओं को हिदायत देते किशोर बाबू अपनी धर्मपत्नी को निहार रहे थे।

सुनंदा जी की आँखें ज़रूर बंद थीं पर चेहरे पर मुस्कुराहट विराजमान थी ….दोनों बहुएँ जया और हिना और बेटी नित्या पिता के कहे अनुसार उन्हें तैयार कर रही थीं….. पूरा आँगन लोगों की भीड़ से खचाखच भरा हुआ था सब किशोर बाबू को देख कर तरह तरह की बातें बना रहे थे ।

पर किशोर बाबू इन सब से इतर पत्नी की आख़िरी इच्छा कैसे पूरी नहीं करते सो लगे पड़े थे उसे पूरा करने में ।

कल रात की ही तो बात है सुनंदा जी किशोर जी से बोल रही थीं,“लगता है अब नहीं बचूँगी…. ये छाती में दर्द बढ़ता जा रहा है ऐसा कीजिए मेरी दवा दे दीजिए खा कर शायद चैन पड़े … आपने मेरी हर बात मानी बस एक आख़िरी बात और मान लेना…. जब मैं जाऊँ मुझे जैसे इस घर में दुल्हन बनाकर लाए वैसे ही विदा करना….. और जैसे हँसते हुए हम इस घर में प्रवेश किए थे वैसे ही हँसते हुए मुझे लेकर जाना…. जानते हो ना रोना धोना मुझे जरा भी पसंद नहीं है ।”किसी तरह धीरे-धीरे बोल रही थीं।

“ ये फ़ालतू बातें क्यों कर रही हो सुनंदा तुम्हें मैं जाने ही नहीं दूँगा…।” हाथ पकड़ कर पत्नी को सुलाने की कोशिश करने लगे।

हृदयघात कहाँ बता कर आता है सुनंदा जी सोई तो चैन से पर सुबह उठ ना सकीं….

आस पड़ोस वाले आपस में बातें कर रहे थे…,“ बड़ी भागों वाली निकली सुनंदा जी जितने अरमान से इस घर को बनाया ,बच्चों को सँभाला और अब अपने घर से बिना कलह विदा हो रही हैं।”

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सुनंदा जी की विदाई जैसे वो चाहती थीं हो गई…. घर में किशोर जी के दोनों बेटा बहू और बेटी रह गए थे।

किशोर जी ने सब को पास बुलाया और बोले,“ ये घर सुनंदा का सपना था…. बहुत जतन से सजाया संवारा…. नित्या की विदाई कर दी…. तुम दोनों को बहू बना कर इस घर में लाई…. बच्चों जानता हूँ इस घर में तुम्हें ज़रूर थोड़ी परेशानी भी होती होगी पर कभी इस घर का बँटवारा मत करना। हम माँ बाप एक घर बनाते अपने बच्चों के लिए… जिसमें साथ साथ प्यार से रहें। सुनंदा ने ये ध्यान में रखा की जब तुम्हारे बच्चे हो तो उन्हें भी दिक़्क़त नहीं हो…पर मैं सुनंदा के रहते कभी बोल नहीं पाया। दिल की मरीज़ थी उसके दिल को दुखाने की गलती नहीं करना चाहता था। तुम लोगों को यहाँ अगर दिक़्क़त होती है तो दूसरा घर ढूँढ लेना पर मैं इस घर का बँटवारा नहीं करूँगा ।”

“ पापा आप ये कैसी बातें कर रहे हैं… हमने तो कभी ये सोचा ही नहीं की अलग रहना है या बँटवारा करना है…. ये घर हमारे सपनों का घर है। वैसे ये बात आपके मन में कहाँ से आई …. किसी ने कुछ कहा है क्या?” बड़े बेटे ने आश्चर्य से पूछा

“ नहीं बेटा बस मैं सोच रहा था कहीं तुम लोगों को…।” किशोर जी बात बिना पूरी किए चुप हो गए क्योंकि दोनों बहुओं के चेहरे की रंगत उड़ गई थी कारण भी यही था ये बातें अक्सर दोनों बहुएँ किया करती थीं जिनकी वजह से ही सुनंदा जी परेशान रहा करती थीं पर बेटों तक कुछ नहीं पहुँचाती थीं, किशोर जी और सुनंदा जी आपस में बात कर मन हल्का कर लेते थे ।

” पापा हम कभी भी अलग नहीं रहेंगे, जब दिक़्क़त होगी तब देखेंगे। ये मिल कर रहना माँ ने ही सिखाया है। हम दोनों भाई सदा साथ रहेंगे जैसे बचपन में रहते थे….. झगड़ा होने पर मना लेंगे पर ना इस घर को छोड़ कर जाएँगे ना आपको। माँ हमें छोड़ कर चली गई आपको छोड़ कर हम नहीं जा सकते…।”दोनों बेटों ने पापा से कहा

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“ हाँ पापा हम भी कभी अलग नहीं होंगे….।” दोनों बहुओं ने समवेत स्वर में कहा जान गई थीं कि उनके पति के बीच प्रगाढ़ प्रेम को तोड़ने की गलती करने पर नुक़सान उनका ही है।

किशोर जी ऊपर की ओर ताकते अपनी सुनंदा को देख रहे थे। तुम्हारे सपनों का घर तुम्हारे बेटे टूटने नहीं देंगे सुनंदा। तुम्हें तो अभी जाना ही नहीं था बहुओं की बात में आ रही थी। जब बेटा साथ था तो क्यों डर रही थी…. हमने कहाँ कोई कमी रखी थी जो ये इस घर को छोड़ कर जाते या बँटवारे की सोचते।

किशोर जी की आँखों में आँसू ढुलक आए। बेटी नित्या जो सब कुछ से वाक़िफ़ थी पर परवरिश ऐसी की बीच में बोल कर कलह करना जायज कभी नहीं समझी…..।जानती थी माँ चली गई हैं पर मायके की आस पापा और भाई के साथ भाभियों से भी बँधी हुई है ।

क्या वाक़ई जिन भाई बहनों में पहले इतना प्यार होता कि कोई कुछ कह दें तो लड़ जाएं फिर बाद में ऐसा क्या हो जाता है कि तकरार या दूरियाँ बढ़ने लगतीं हैं… पहले सा प्रेम क्यों नहीं रह जाता…. जो बेटी अपने घर में सबको साथ देखना चाहती ….फिर शादी के बाद जिस घर आती उसमें दूरियों की वजह क्यों बन जाती है….क्यों नहीं मिल जुल कर रहना चाहती…. ये सब बातें एक घर को नहीं कई रिश्तों को भी तोड़ जाती हैं…. समय हैं इस बात को समझे और अपने आशियाने को बचा कर सँभाल कर रखें….।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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