अकेलेपन के दर्द को क्या बच्चे समझेंगे..?- निधि शर्मा 
- Betiyan Team
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- on Jan 17, 2023
मम्मी जी आपने बताया नहीं कि आपके ग्रुप के लोग हरिद्वार और ऋषिकेश घूमने जा रहे हैं.! कब जाना है बता दीजिएगा उसी हिसाब से आपकी पैकिंग करूंगी, अगर गुड्डू (बेटा)नहीं होता तो मैं भी आप लोगों के साथ चलती पर क्या करूं उसकी परीक्षा और विभोर (पति) का ऑफिस सच में बच्चे और पति के चक्कर में औरतें बंध कर रह जाती है। अच्छा है एक उम्र हो जाने के बाद घूमना फिरना फिर से शुरू करना चाहिए तो बताइए कब जा रही है..?” नेहा अपनी सास सुनीला जी से कहती है। सुनीला जी उदास मन से बोलीं “बहू मैं नहीं जाऊंगी उसमें बहुत सारे लोग जा रहे हैं कुछ तो पति पत्नी है और कुछ अकेले मर्द भी हैं, मैं अकेले जाकर क्या करूंगी। जब विभोर के पापा थे तब की बात अलग थी उस वक्त मुझे घूमना फिरना बहुत अच्छा लगता था, नई नई जगह पर जाकर तस्वीर खिंचवाना और उस जगह की कुछ खास चीजों को अपने घर में इकट्ठा करना मुझे बहुत पसंद था। उनके जाने के बाद वो शौक भी मानो कहीं खत्म हो गए..। नेहा बोली “मम्मी जी किसी के चले जाने से जिंदगी रुक नहीं चाहती और दोस्त तो हर उम्र में बनाए जा सकते हैं। मैं जानती हूं पापा जी के साथ सिर्फ आपका पति पत्नी जैसा रिश्ता नहीं बल्कि दोस्तों जैसा रिश्ता भी था।
अपनी पुराने दर्द को भूलकर आगे बढ़ना ही जिंदगी होता है, अगर ये सुविधा होती कि साथी के चले जाने के बाद दूसरा साथी उसे संपर्क कर सकता तो पापा जी आपसे जरूर कहते जा सुनीला जी ले अपनी जिंदगी और बना ले ढेर सारे दोस्त..।” नेहा के इतना कहते ही सुनीला जी के चेहरे पर दर्द की जगह हंसी छा गई। नेहा बोली “मम्मी जी आप यूं ही मुस्कुराते रहिए घर का पुराना वृक्ष अगर हरा भरा रहता है तो उसकी छत्रछाया में छोटे पौधे भी हरे भरे रहते हैं। किसने कहा कि इस उम्र में दोस्त नहीं बनाया जा सकता, उम्र के हर सफर में साथी की जरूरत तो होती है, अब चाहे वो बचपन का हो या 55..।” नेहा इतना कहकर अपने काम में लग गई इधर सुनीला जी सोचने लगी कि क्या बहू जो कह रही है वो संभव है। अगले दिन जब सुनीला जी पार्क में हम उम्र साथियों के साथ बैठी थी तो वहीं 68 साल के विनोद जी बोले “सुनीला जी आप भी हमारे साथ चलती तो अच्छा लगता। मैं भी तो अकेला हूं पर देखिए जीने की ख्वाहिशों को छोड़ा नहीं हूं, जीवन साथी का साथ छूट गया पर संगी साथी का साथ बना रहे यही सोच के जिए जा रहा हूं।” वो मुस्कुराने लगी तो उनकी सहेली कमला जी धीरे से बोलीं “सुनीला बहन ऐसा तो नहीं है कि आपकी बहू ने मना कर दिया..?”
सुनीला जी बोलीं “अरे नहीं बहु तो बार बार कह रही है कि आप सबके साथ घूम कर आइए पर मुझे अजीब लग रहा है। सब अपने जोड़ीदार के साथ रहेंगे मैं अकेली क्या करूंगी।” कमला जी हंसकर बोली चलिए तो सही रास्ते में शायद कोई जोड़ीदार मिल जाए।” सुनीला जी इधर-उधर देखी और बोलीं “क्या कमला बहन इस उम्र में भी आपको मस्ती सूझ रही है, कोई सुनेगा तो क्या कहेगा।” कमला जी हंसकर बोलीं “बोलने वाले को गोली मारो कौन क्या कहता है आखिर हम औरतें कब तक इस दर्द में जीते रहेंगे।” सबने मिलकर सुनीला जी को चलने के लिए कहा तो वो सोचकर बोलेंगी ये कहकर चली गईं। 2 दिन बाद नेहा बोली “मम्मी जी आपने क्या फैसला किया शॉपिंग करने चलें..।” वहीं विभोर बैठा था विभोर बोला “किस चीज की शॉपिंग..?” नेहा ने पूरी बात बताई तो विभोर बोला “सही तो कह रही है मां वहां अकेले जा कर क्या करेगी। कहीं कुछ हो गया तो लोग क्या कहेंगे।” नेहा बोली “लोगों को उन्हें कहना है वो कहेंगे ही और मम्मी जी अकेली कहां है इतने सारे साथी होंगे। अगर आपको इतनी ही चिंता है तो मैं चली जाती हूं या फिर मम्मी जी के साथ आप चले जाइए।”
विभोर बोला “औरतों से आज तक कोई जीत सका है जो मैं जीत लूंगा और यहां तो दो दो औरतें एक साथ है। ठीक है जाने दो मां को परंतु अगर कुछ हुआ तो जिम्मेदार तुम होगी..।” नेहा मुस्कुराकर बोली “बुरा तो कुछ नहीं होगा अच्छा होने की संभावना जरूर हो सकती है। मम्मी जी आप जाइए और नए दोस्त बनाइए और वहां से ढेर सारी खुशियां लेकर आइए।” नेहा ने सास के लिए शॉपिंग की और अगले दिन जब सुनीला जी सबको बताई कि “मैं भी आप लोगों के साथ चलूंगी।” तो सबसे ज्यादा विनोद जी खुश हुए क्योंकि उनकी पत्नी का भी 4 साल पहले देहांत हो चुका था वो भी अकेले थे। बस फर्क इतना था कि सुनीला जी को बहु अच्छी मिली पर विनोद जी की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी। कुछ रोज बात विनोद जी अपने पुराने बैग में अपने सामान को रख रहे थे और अपने बेटे कमल से बोले “बेटा मुझे कुछ खुले पैसों की जरूरत पड़ेगी तो बैंक से सौ पचास के कुछ नोट भी ला देना।” वहीं उनकी बहू अनीता बोली “पापा जी इस उम्र में ये खर्चे अच्छे नहीं लगते, कहीं कुछ हो गया तो लोग तो हम पर उंगली उठाएंगे।” कमल धीरे से अनीता को बोला “अनीता तुम भूल रही हो पापा को अच्छा खासा पेंशन मिलता है। ये घर और जिस घर का हर महीने किराया लेकर तुम शॉपिंग करती हो वो भी इन्हीं का है, आजकल बुजुर्गों के लिए बड़े सख्त नियम बनाए गए हैं और कब इनका मन बदल जाए और सब कुछ हमारे हाथ से चला जाए तो बोलने से पहले एक बार सोच लेना।” झूठी मुस्कुराहट चेहरे पर सजाए कमल ने पिता को हां में जवाब दिया। 2 दिन बाद नेहा अपनी सास को छोड़ने के लिए स्टेशन गई वहीं विनोद जी अकेले थे। उन्होंने आगे बढ़कर सुनीलाल जी का बैग लेना चाहा तो नेहा बोली “अरे अंकल जी अभी मैं हूं लाइए आप अपना भी बैग दे दीजिए, वहां आप सब मम्मी जी का ख्याल रखिएगा।” विनोद बाबू मुस्कुराकर बोले “बेटा सुनीला जी तुम्हारी बहुत तारीफ करती हैं बड़े भाग्य से अच्छी बहू मिलती है सदा खुश रहो।” नेहा मुस्कुराते हुए सबको विदा किया। सबके साथ सुनीला जी को बहुत अच्छा लग रहा था बीच-बीच में वो फोन करके संजना को अपनी यात्रा के बारे में बतलाती थीं। विनोद बाबू हर किसी का ख्याल रखते पर सुनीला जी का खास ख्याल रखते थे, ये बात किसी से छुपी हुई नहीं थी क्योंकि सुनीला जी भी अपनी मन की बातों को उनसे ही साझा करती थीं। सुनीला जी हर प्रसिद्ध जगह की छोटी-छोटी चीजों को इकट्ठा कर रही थी और तस्वीरें खिंचवा रही थी। विनोद बाबू भी बड़ी खुशी से उनकी तस्वीरें खींच रहे थे, धीरे-धीरे समय कब बीत गया पता भी नहीं चला सब वापस आने की तैयारी करने लगे। एक शाम सुनीला जी नदी के किनारे ढ़लते हुए सूरज को देख रही थी तो विनोद बाबू बोले “हमारा जीवन भी कुछ इसी ढलते हुए सूरज की तरह है। जितना वक्त यहां हमने एक साथ बिताया शायद वहां ना बिताएं, इंसान की उम्र चाहे जितनी भी हो जाए समाज का डर हमेशा बना ही रहता है।
कभी भी अगर आपको किसी मित्र की आवश्यकता पड़े तो निसंकोच आप मुझे आवाज लगाइएगा।” सब अपने अपने घर वापस आए सुनीला जी को देखकर नेहा बहुत खुश हुई और छोटे बच्चे की तरह सभी उपहारों को खोलकर देखने लगी। रात में सब खाना खाकर तस्वीरों को देखने बैठे विभोर बोला “मां हर तस्वीर में आपके साथ ये बुजुर्ग कौन है..?” सुनीला जी बोलीं “ये विनोद बाबू हैं इनसे मेरी अच्छी मित्रता हो गई है। इन्होंने मेरा बहुत ख्याल रखा और तुम्हारे पापा के जाने के बाद पहली बार मैं किसी से इतनी बातें की हूं।” न जाने क्यों विभोर को कुछ अटपटा सा लगा और वो उठकर चला गया। अब सुनीला जी ने धूप में तो अपने बाल सफेद नहीं किए थे उन्होंने तुरंत बेटे का चेहरा देख कर भांप लिया और नेहा से बोलीं “विनोद जी के साथ मुझे देखकर विभोर को अच्छा नहीं लगा ..!” नेहा बोली “मम्मी जी ऐसी कोई बात नहीं है अब आप आराम कीजिए कल बातें करेंगे।” इतना कहकर वो भी चली गई। नेहा अपने कमरे में गई और विभोर से पूछी तो विभोर बोला “जब वो तस्वीर मुझे अच्छी नहीं लग रही तो लोगों का सोचो वो कितनी बातें बनाएंगे।”
नेहा बोली “आपको लोगों की नहीं अपनी मां की चिंता होनी चाहिए। आपने कभी सोचा पापा जी के जाने के बाद वह किस दर्द से गुजर रही है और अकेली हो गई हैं उम्र के हर सफर में एक साथी की जरूरत होती है।” हर शाम सुनीला जी और विनोद जी मिलते थे कोई नीचे आए ना आए वो दोनों जरूर आकर आपस में बातें करते थे। उनकी दोस्ती अब एक दूसरे के दर्द को बांटने लगी थी हर वक्त दोनों साथ बैठने का बहाना ढूंढने लगे थे। अगर कोई ये कहे कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है तो गलत नहीं कहते हैं। जो कमला जी सुनीला जी की सहेली हुआ करती थी न जाने कैसी बाते फैलाई की ये बातें विभोर के कानों में भी चली गई। वो घर आकर नेहा पर बहुत नाराज हुआ और मां से बोला ” मां मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि बुढ़ापे में मुझे मेरी ही मां को ये बातें समझानी होगीं।” कुछ रोज घर में शांति का बसेरा हो गया बेचारी सुनीला जी नीचे नहीं जातीं बस छटपटाकर घर की चारदीवारी में रह जाती थी और यही सोचती थी कि क्या बेटा मां के इस दर्द को समझेगा।
एक शाम दरवाजे पर दस्तक हुई नेहा ने दरवाजा खोला सामने विनोद बाबू थे नेहा ने बड़े आदर के साथ बैठाया, अंदर से सुनीला जी निकल कर आई विनोद बाबू को देखते ही सुनीलाल जी के चेहरे पर एक खुशी का भाव आया। कुछ देर बाद विभोर आया विनोद बाबू को देखते ही उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया सुनीला जी उठकर वहां से जाने लगी तो नेहा बोली “मम्मी जी आप बैठिए जो भी बातें होंगी खुलकर होंगी।” विनोद बाबू हाथ जोड़कर विभोर से बोले “बेटा तुम अपनी मां के दर्द को समझो कुछ बातें मां बाप बच्चों से साझा नहीं कर पाते बस अपने साथी से ही क्या पाते हैं। तुम्हारे घर की स्थिति अच्छी है क्योंकि तुम्हारी मां ने तुम्हें अच्छे संस्कार दिए, मेरे घर में उसका विपरीत होता है पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता हां मेरी वजह से इन्हें कोई दिक्कत हो ये मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा।” विभोर बोला “पूछ सकता हूं क्यों..?” सुनीला जी विनोद बाबू को देख रही थीं विनोद बाबू बोले “क्योंकि मैं इन्हें दर्द में नहीं देख सकता हूं।
हम एक दूसरे का साथ अच्छा लगता है, जीवन का दिया कब बुझ जाए अगर तुम्हारी इजाजत हो तो हम दोनों बची हुई जिंदगी एक दूसरे के दर्द को बांटकर गुजारना चाहते हैं।” विभोर गुस्से में विनोद जी को बहुत कुछ बोला पर विनोद बाबू मुस्कुराते रहे तभी सुनीला जी बोलीं “विभोर मैंने तुम्हें जन्म दिया है तुमने मुझे नहीं तो मेरे जीवन का फैसला मैं खुद करूंगी। तुम क्या चाहते हो मैं घुट घुटकर दुनिया से चली जाऊं या फिर हंसते मुस्कुराते तुम मुझे विदा करना चाहते हो..?” मां की ये बात सुनकर विभोर चुप हो गया वही नेहा विभोर से बोली “इसमें गलत ही क्या है उम्र के हर सफर में नई उम्मीद और एक साथी की जरूरत होती है। हमें भी तो इस उम्र से गुजरना है सोचिए कल को मैं नहीं रहूंगी तो क्या आप इस दर्द से अकेले जी पाएंगे..?” विभोर बोला “मेरी मां की जगह तुम्हारी मां होती तब क्या करती..?”
नेहा बोली “अगर मेरी मां की इच्छा होती तो मैं ये कदम बहुत पहले उठा चुकी होती।” विभोर चुप हो गया। विनोद बाबू के घर में भी बहुत हंगामे हुए आस-पड़ोस के लोगों ने भी बहुत बातें बनाई। बरहाल सबके ना चाहते हुए भी नेहा ने उन दोनों का साथ दिया और विनोद बाबू और सुनीला जी ने भी लोगों की परवाह ना करते हुए कोर्ट मैरिज किया और उसी शहर में थोड़ी ही दूरी पर जो उनका दूसरा मकान था वो उसमें रहने चले गए। वक्त लगा पर धीरे-धीरे रिश्ते सुधरे अब सुनीला जी विनोद बाबू के साथ अपने बेटे के घर आती। कुछ रोज विभोर और विनोद बाबू में बातें नहीं हुई फिर धीरे-धीरे दोस्ती होने लगी और कब वो बाप बेटे के रिश्ते में बंध गए उन्हें पता भी नहीं चला और इधर उनके बेटे ने उनसे सारे रिश्ते तोड़कर अपना हिस्सा लेकर अपनी अलग दुनिया बसा ली। दोस्तों आप मानो या ना मानो उम्र के हर सफर में एक नई उम्मीद और एक साथी की जरूरत होती है। बस कुछ लोग इसे मान लेते हैं और कुछ अंदर ही अंदर अपने दर्द से लड़ते रहते हैं। क्या उम्र ढलने के बाद इंसान को दर्द नहीं होता अगर होता है तो सुनीला जी और विनोद बाबू का फैसला क्या गलत था..? अपनी राय दें बहुत-बहुत आभार
निधि शर्मा
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