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अकड़ कर चलने वालों को वक़्त से समझौता करना ही पड़ता है   –   अर्पणा जायसवाल

“मैं तुम्हारे साथ हर समझौता करने को तैयार हूं लेकिन मेरी कुछ शर्ते हैं” नीलिमा ने प्रशांत से कहा तो वो आग-बबूला हो गया। “अच्छा! तुम्हारी अभी भी इतनी हैसियत है कि तुम मेरे आगे शर्त रखो” प्रशांत ने आंखें दिखाते हुए कहा। “ठीक है फिर! तुम खुद कर लो या फिर अपनी प्यारी बहना को बुला लो, मुझे तुम बख्श दो” नीलिमा ने भी शांत स्वर में कहा। प्रशांत ने तिरछी नज़र से अपनी मम्मी दामिनी जी की तरफ देखा तो उन्होनें हां का इशारा किया। प्रशांत ने धीरे से कहा, “ठीक है हमें तुम्हारी सभी शर्ते मंजूर हैं।” “ऐसे नहीं पति देव! पहले शर्तें तो सुन लीजिए” प्रशांत की आंखों में देखते हुए नीलिमा ने बेखौफ़ होकर कहा। “आपको सैलरी देनी होगी मुझे… अब क्योंकि दो मरीज हैं और उनकी जरूरतें भी अलग-अलग तो मुझे अपनी दिनचर्या उसी हिसाब से करनी होगी और क्योंकि मैं आपके मम्मी-पापा की नर्स बनूंगी तो घर के काम के लिए आपको मेड लगाना होगा और…” नीलिमा चुप हो गयी। “… और क्या?” प्रशांत अपने गुस्से पर नियंत्रण रखते हुए बोला। “और बाद में बताऊंगी” नीलिमा ने लापरवाही से कहा और वहां से चली गयी। प्रशांत ने अपने पापा अनिलजी और मम्मी दामिनीजी की तरफ देखा तो उनकी आंखें नम थीं या यूं कहा जाए कि पश्चाताप से आंखें नम थीं।

आज जिस बहू ने उनके आगे शर्तों की लिस्ट रख दी एक समय ऐसा था कि वो लोग उसे अपने इशारों पर नचाते थे। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी मेरी बेटी और दामाद से इस तरह बात करने की। तुम्हारे रहते हुए वो काम क्यों करेंगे? एक बात अच्छे से दिमाग में बैठा लो तुम्हारी छोटी-सी भी गलती को माफ नहीं किया जाएगा। बहू हो तुम बेटी बनने की कोशिश भी मत करना” दामिनी जी चिल्लाते हुए बोलीं। “लेकिन मम्मीजी, मैं अकेले कितना काम करूं और फिर आपके बेटी-दामाद कुछ दिन वाले मेहमान तो हैं नहीं। दो साल से यहीं डेरा जमा कर रखा है। अब अगर यहीं रहना है तो घर के काम तो करने ही पड़ेंगे और फिर मैनें सिर्फ सब्जी लाने के लिए ही कहा था। इसी बहाने इनकी सैर भी हो जाती वरना सोफे पर पड़े-पड़े फैल ही रहे हैं” नीलिमा ने भी हिम्मत करते हुए बोल ही दिया। नीलिमा का दामाद के लिए इस तरह बोलना दामिनी जी से बर्दाश्त नहीं हुआ और फिर उस दिन नीलिमा के लिए आफत की रात थी। प्रशांत ने भी उसे बहुत लताड़ा कि उसने कैसे घर की बेटी-दामाद के बारे में ऐसा कहा। नीलिमा को समझ ही नहीं आया कि बेटी के लिए प्यार इस कदर अंधा हो जाता है



कि सही और गलत का फर्क भी समझ नहीं आता। जिस बेटी ने उनके प्यार को छोड़कर एक शराबी निकम्मे से शादी कर ली। ससुराल में चार दिन भी निभा नहीं पायी और पति के साथ मायके आ गयी। दो साल होने जा रहा दोनों आराम से ढीट की तरह जमे हैं और जब से बेटा हुआ है तब से रोज जश्न मनाया जाता। नीलिमा को अपने लिए नहीं बल्कि अपनी पांच साल की बेटी गुनगुन के लिए बुरा लगता जब उसकी छोटी-छोटी खुशियों को नज़रंदाज़ कर दिया जाता और उसके हिस्से का सभी सामान बीना के बेटे चिन्टू को दे दिया जाता। गुनगुन के पांचवे बर्थडे को सेलेब्रेट करने के लिए उसने प्रशांत से पैसे मांगे तो प्रशांत के साथ ही अनिलजी और दामिनी जी ने उसे पैसे देने से इंकार कर दिया, “पैसे कोई पेड़ पर नहीं लगते… बेटी का जन्मदिन मनाने की कोई जरुरत नहीं है।” गुनगुन रोते-रोते सो गयी क्योंकि उसे समझ ही नहीं आया कि पिछ्ले महीने जब बुआ के बेटे का जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाया गया था तब पैसे कहां से आए थे। उस दिन नीलिमा ने प्रशांत से जब यही बात कही तो उसने कहा यह घर मम्मी के हिसाब से चलता है और वैसे ही चलेगा। उसे अगर यहां रहना है तो मम्मी और बीना के हिसाब से ही रहना होगा। हद तो तब हो गयी जब बीना ने गुनगुन को सिर्फ इसलिये थप्पड़ मारा क्योंकि उससे चिन्टू का खिलौना टूट गया था।

तब नीलिमा भी सहन नहीं कर पायी और उसने अपने हाथों से बीना के गालों पर अच्छे से जबाब चिपका दिया। बहुत हंगामा हुआ और फिर नीलिमा ने भी ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया लेकिन प्रशांत ने उसे अपने फैसले को बदलने के लिए मजबूर कर दिया और उसके आगे शर्त रख दी कि अगर तुम घर छोड़ कर गयी तो गुनगुन को लेकर नहीं जा सकती। गुनगुन के लिए नीलिमा सब ससुराल के जुल्मों सितम सह रही थी। अनिलजी और दामिनी जी के ऊपर बेटी-दामाद और नवासे का अंधा प्यार इस कदर हावी था कि धीरे-धीरे अपनी दौलत उन पर लुटा रहे थे। होश तो तब आया जब घर के कागजात और जेवर-पैसे बेटी-दामाद के हाथ में आते ही उन्हें किनारे कर दिया। अपने ही घर में अब उनकी हालत नौकरों जैसी हो गयी थी। जिस दामाद को सिर पर बैठा कर रखा अब वही दामाद उनसे गाली देकर बात करता। अनिल जी यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्हें वज्रपात हो गया। दामिनी जी भी अनिल जी की दशा देख कर अपने आपको संभाल नहीं पायीं और सीढ़ियों से गिर गयीं। अनिल और दामिनी जी असहाय हो चले थे बीना ने साफ मना कर दिया कि वो उनकी देखभाल नहीं कर सकती। तब प्रशांत ने नीलिमा की तरफ देखा लेकिन नीलिमा ने भी साफ इंकार कर दिया, “किस हक़ से मुझसे आशा कर रहे।

अगर आप लोग सोच रहे कि एक बहू का फर्ज मैं निभाऊं तो गलती से भी मत सोचिएगा। मैं यहां आपकी बहू या पत्नी नहीं अपनी गुनगुन की मां होने के नाते रह रही हूं। आपका और मेरा रिश्ता सिर्फ समझौते का रिश्ता है इसलिये मुझसे कोई उम्मीद मत रखिएगा।” अकड़ कर चलने वालों को वक़्त मजबूर कर ही देता है और वक्त से समझौता भी करना पड़ता है।नीलिमा को समझौतों और अपनी शर्तों के आगे झुकाने वालों को आज उससे ही समझौता करना पड़ा। सास-ससुर की हालत देख कर नीलिमा भी दुखी थी। वो जानती थी कि लोग तरह- तरह की बातें बनाएंगे लेकिन उसके दिल के जख्म नासूर बन चुके थे इसलिये उसने प्रशांत के आगे शर्तों की लिस्ट रख दी क्योंकि लोगों ने भी उसके दर्द को नहीं समझा था। आपको क्या लगता है कि नीलिमा ने शर्तों की लिस्ट रख कर गलत किया।

स्वरचित,

अर्पणा जायसवाल

#दर्द

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