अजीब दास्ताँ – पुष्पा जोशी

आज इतने वर्षों बाद सेठ ब्रजमोहन के घर खुशियों ने दस्तक दी है,उनके एकलोते बेटे मालव की पत्नी केतकी उम्मीद से थी, जैसे ही महिला चिकित्सक ने यह खबर दी घर में खुशी की लहर दौड़ गई। केतकी की उम्र ४४ साल थी,इस उम्र में शारीरिक परेशानी कुछ ज्यादा थी। डॉक्टर ने बेडरेस्ट की सलाह दी थी।घर के सभी लोग केतकी की तिमारदारी में लगे थे, मगर मालव का चेहरा कुछ मुरझाया सा रहता।वह ऊपर से खुश रहने का अभिनय करता,मगर खुशी तो हृदय से उद्भुत होती है, और कोई जाने न जाने मगर केतकी ने इस खुशी के पीछे छिपे दर्द को महसूस किया,क‌ई बार पूछा मगर  वह टाल देता । अपनी खुशी की पुष्टि के लिए, नित नये उपहार केतकी के लिए लेकर आता। खैर…….। प्रसव का समय आया,केतकी को लेबर पेन शुरू हो ग‌ए, उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, आपरेशन रुम के बाहर परिवार के सभी लोग थे,मालव को भी फोन कर दिया था,वह भी ऑफिस से निकल गया था, अस्पताल आने के लिए। तभी डॉक्टर ने बाहर आकर कहॉ- ‘ परेशानी बहुत बड़ ग‌ई है, हम किसी एक को बचा पाऐंगें, सभी का मन उदास हो गया।सेठ ने बहुत भारी मन से कहॉ- ‘आप केतकी को बचा …..ले।’ 

केतकी बेहोश थी, घर के लोग आसपास उदास खड़े थे।समझ ही नहीं पा रहै थे, कि केतकी को जब होंश आएगा तो वे उसे कैसे समझाऐंगें, डॉक्टर ने भी कह दिया था, कि जरा सा भी सदमा केतकी के लिए जानलेवा हो सकता है।

होंश में आते ही केतकी ने बच्चे के बारे में पूछा,सब मौन थे,सबके उदास चेहरे देख वह घबरा गई, वह बोली कोई कुछ कहता क्यों नहीं ?कहॉ है मेरा बच्चा…?’बोलते- बोलते वह बेहोश हो गई।  डॉक्टर भी घबरा ग‌ए। कमरे से सबको बाहर निकाल दिया, केतकी को जब होश आता, वह बच्चे को याद करती, एक नर्स से उसकी दशा देखते नहीं बन रहा था,उसने एक नवजात शिशु को उसके पास सुला दिया,वह बच्चा भूख से रो रहा था। केतकी ने उसे सीने से लगा कर स्तनपान कराया,तो वह चुप हो गया। केतकी की हालत में भी सुधार आ गया था।

डॉक्टर नर्स पर नाराज़ हुई, बोली – ‘तू किसका बच्चा ले आई?’ नर्स ने कहॉ- ‘इस मासूम की माँ इसे जन्म देते ही मर गई, मेडम! वह अकेली थी,उसके परिवार में कोई नहीं है।’

‘कोई नहीं है…….तो यह बच्चा?




‘मेडम इसके बारे बहुत पूछा मगर उसने कुछ नहीं बताया।वह दर्द से तड़प रही थी, और बस यही कह रही थी कि इस बच्चे को बचा लो। कुछ महिलाएं उसे यहाँ छोड़कर गई थी। उसका शव अभी अस्पताल से बाहर ले जाया जा रहा है।’ सेठ ब्रजमोहन और सेठानी की  आँखे चमकने लगी थी, उन्होंने मन ही मन मानो कोई निर्णय ले लिया था,वे केतकी को हर हाल में बचाना चाहते थे।      गेट से अन्दर आते समय मालव ने उस युवती के पार्थिव शरीर को देखा।उसके पैर वहीं जड़ हो ग‌ए। यह क्या ? यह तो वही है, जिसके साथ उसने, उस रात के अंधेरे में…….। उसे पूरी घटना स्मरण हो गई,उस दिन ऑफिस में कोई पार्टी थी, मजाक-मजाक में दोस्तों ने उसकी दु:खती रग पर हाथ रख दिया, कुछ ऐसा कहा कि मानो उसके पुरुषत्व को चुनौती दी गई हो। निसंतान होने  का ग़म उसे सालने लगा,पार्टी में ज्यादा पी ली और घर आते समय रास्ते में एक महिला के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध होकर जबरजस्ती उसके साथ…..।वह गरीब महिला कॉलोनी से झाडू पौछा और बर्तन का काम करके घर जा रही थी।उसने छूटने का बहुत प्रयास किया, मगर उस समय मालव के अन्दर हैवान बस गया था। इस कुकृत्य को करने के बाद नशा उतरने पर वह घर आया, और उसे खुशखबरी मिली  कि वह बाप बनने वाला है।मगर उसे अपने घिनौने कृत्य पर ग्लानि हो रही थी, वह सहज नहीं रह पा रहा था। इसलिए इतनी बड़ी खुशी भी उसे फीकी लग रही थी। बाद में उसने उस  महिला को ढूंढने की बहुत कोशिश की, मगर वह नहीं  मिली, इतने दिनों बाद आज उसकी मृतक देह देखकर उसका मन भारी हो गया, और आँखो में अश्रु की बूंदें आ गई। वह वहाँ बेसुध सा खड़ा था , उसका ध्यान तब टूटा जब शववाहन में उसका शव रखा जा रहा था।उसने अपने दोनों हाथ जोड़ कर मन ही मन उससे क्षमा मांगी।उसके कानों में लोगों की आवाज आ रही थी लोग कह रहे थे- ‘पता नहीं किस हैवान ने इसकी यह दशा की, बेचारी कुंवारी लड़की, कितने तानों को सुनकर, कितने दु:खो को सहन कर, उस नन्ही जान को जन्म देकर स्वयं चली गई।’

मालव ने हिम्मत करके पूछा – ‘वह बच्चा कहाँ है, एक व्यक्ति ने कहा कि उसे एक नर्स कमरा नंबर ११४ में लेकर गई है, सुना है उस कमरे में जो महिला है, उसका बच्चा मर गया है।’ मालव तेज कदमों से उस कमरे में जाने लगा मगर उसके माता-पिता ने उसे बाहर ही रोक लिया और कहॉ –  ‘बेटा तुमसे जरुरी बात करनी  है…..हम….केतकी को नहीं खो सकते।’  ‘तो, वो जो मैंने बाहर सुना, क्या वह हमारा बच्चा…….?’  ‘हाँ बेटा हमारा …….।मालव ने वाक्य पूरा सुना भी नहीं और वह कमरे में गया। सेठजी और उनकी पत्नी भी उसके पीछे-पीछे ग‌ए, उन्हें डर था कि कहीं मालव….. कुछ कह न दे।मालव ने उस बच्चे को देखा, बिल्कुल उस युवती सी आँखें थी,उसने उसे गोद में लिया, बालक उसे एकटक देख रहा था,उसे लग रहा था कि उस युवती की आँखें उससे न्याय की गुहार कर रही है।उसने कहा – ‘देखो केतकी कितना प्यारा है ना, हमारा बच्चा।’ सबके चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे थे। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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