ऐसी औलाद भगवान किसी को ना दे – मीनाक्षी सिंह 

विनय – माँ ,कहाँ हो आप ?? 

सीमा जी (विनय की माँ ) – बोल विनय ,क्या हुआ इतनी जोर से आवाज क्यूँ लगा रहा हैँ ,बहरी नहीं हूँ मैं ! खाना बना रही थी ! 

विनय – माँ ,कोर्ट से नोटिस आया हैँ ! आपको कल जाना हैँ ! 

सीमा जी -किस बात का नोटिस ,सब कुछ तो दे दिया उस कलमुंहे को ! अब क्या मेरी चमड़ी भी लेगा ! 

विनय – जो भी हो माँ ,कल कोर्ट में ही  देखते हैँ अब !आप टेंशन मत लो ! मैने ऑफिस से कल की छुट्टी ले ली हैँ  ! आपके साथ चलूँगा मैं ! 

सीमा जी – ए रे ,विनय ,किस मिट्टी का बना हैँ रे तू! तुझे कितनी गाली दी ,तेरे साथ मार पीट की उस प्रेम ने ! बड़े प्यार से मैने और इनने उसका नाम रखा था प्रेम! पर वो तो बिल्कुल अपने नाम के विपरित निकला ! पता नहीं क्या कमी रह गयी मेरी परवरिश में ! पर कुछ तो अच्छे कर्म थे मेरे जो तुझ जैसा इतना सुलझा हुआ ,सभ्य बेटा दिया मुझे ! धन्य हैँ तेरी माँ जिसने तुझे जन्म दिया ! तू मेरी कोख से क्यूँ नहीं जना रे ! एक तेरे लिए ही जिए जा रही हूँ विनय  ! नहीं तो उसी दिन ट्रक के नीचे आ जाती ,मेरी जीवन लीला समाप्त हो जाती ,अगर तू मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ ना खींचता ! उस दिन फरिश्ता बनकर आया तू ! तब से तुझ पर बोझ बनकर रह गयी हूँ ! अपने आंसू रोक ना पायी सीमा जी ! 




विनय – चुप भी कर माँ तू ! खबरदार दुबारा ऐसा बोला तो कि तू मुझ पर बोझ हैँ ! तू नहीं होती तो मुझ अपाहिज को कौन अपना कहता ! जबसे जन्म लिया ,खुद को अनाथ ही पाया ! माँ ने किसी और के लिए मुझे छोड़ दिया ! बाप नशे में धुत रहता ! एक दिन उसने भी मुझे धक्के मारकर निकाल दिया ! एक भिखारी मुझे अपने साथ ले आया ! मुझे एक पैर से अपाहिज कर दिया ताकि लोग मुझ पर तरस खाकर अच्छी भीख दे ! किसी तरह वहाँ कुछ साल गुजरे ! एक दिन मैने जूते ले लिए अपनी भीख की कमाई के पैसों से ! ठंड बहुत लगती थी ! उसी दिन मालिक ने कम पैसे लाने के लिये इतना मारा मुझे ! मैं भी गुस्से में उसे पत्थर मारकर भाग आया ! फुटपाथ पर रहने लगा अकेले ! दिन में मजदूरी करता ! कभी कभी दिन में सरकारी स्कूल में पढ़ने चला जाता ! सब मजाक उड़ाते मेरा ! मैने भी पढ़ने की ठानी ! और कुछ नहीं तो छोटी मोटी नौकरी तो पा ही लूँ पढ़े लिखों वाली ! रात में कमाता ,दिन में पढ़ता था माँ ! किसी तरह 12वीं हो गयी ! स्कूल में ही कोई आया था पूछने कोई बच्चा बिजली का काम कर लेता हैँ ! मैने झट से हाँ कह दी ! उन्होने ही मुझे छोटी सी कम्पनी में लगा दिया ! उस दिन ऑफिस से ही निकल रहा था मैं माँ कि देखा कोई बूढ़ी औरत ट्रक के आगे आगे चली जा रही थी ,उसने पीछे देखा ही नहीं ! तभी मैने उसका हाथ अपनी तरफ खींच लिया ! वो तू थी माँ ,ज़िसे मैं अपने साथ घर ले आया क्यूंकी तू अपने घर  जाने को तैयार ही नहीं थी ,तूने मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशी के रंग भर दिये ! आता हूँ तो तू मेरा इंतजार करती हैँ ,मेरे लिए खाना बनाकर रखती हैँ ! अब मैं अनाथ नहीं हूँ ! वैसे छोटा हूँ पर फिर भी पूँछता हूँ तू उस दिन अपने सगे बेटे प्रेम के पास वापस क्यूँ नहीं जाना चाहती थी ?? बता तो सही ! 




सीमा जी – तो तू जाने बिना मानेगा नहीं ,तो सुन उस दिन उस प्रेम और उसकी बीवी यानी  मेरी बहू ने मुझसे बहुत लड़ाई की ,वो भी मेरे गांव के दो कमरे को लेकर ! बाकी सब तो मैं उसके बापू के जाने के बाद उसके नाम कर ही चुकी थी ,शहर वाला घर ,जमीन ,जेवर ये सोचकर कि मेरा ही तो बेटा हैँ ! अच्छे से तो भी रखेगी बहू मुझे ! पर उन दोनों ने तो गिरगिट की तरह रंग बदला ! मुझे नौकरानी की तरह रखते ! कोई आता तो कहते बाहर मत निकलना ! बच्चों से भी दूर रखते ! बासी रखा जो बचता वो मुझे खाने को मिलता ! मैं बस अपनी टूटी चारपाई पर पड़ी रोती रहती ! तेरी कसम विनय जितने दिन वहाँ रही ऐसा कोई दिन नही गया जब मैं रोती ना  होऊँ ! एक दिन तो इतना बिमार हो गयी ,बुखार से तप रही थी ,खून की उल्टियां होने लगी ! पर इन दोनों ने मेरी तरफ देखा भी नहीं ! मैं रोती रही ,हाथ जोड़ती रही कि दवाई तो दिलवा दो ! पर मुझे घर में बंद कर चले गये घूमने ! ऐसा लगता था कि चाहते थे की मैं मर जाऊँ ! उस दिन तो हद हो गयी ! दोनों मुझ पर चढ़ बैठे कि गांव का घर भी उनके नाम कर दूँ ! मैने कहा – यहाँ मन ना लगे तो वहाँ जा सकती हूँ ,इसलिये उसे बचा रखा हैँ ! तू तो इसे बेच देगा !इतनी बात पर बहू मुझ पर आग बबूला हो गयी ! मैं अपना सामान लेकर भागती हुई सड़क पर आ गयी ! दौड़ती रही ! बस यहीं सोचा अब वापस वहाँ नहीं जाऊंगी ! मर जाऊंगी ! कोई नहीं हैँ मेरा  दुनिया में !फिर  तू मिल गया ! बाकी तो तू जानता ही हैँ ! कितनी बार तुझे भी मारने आया  कि तू मुझे क्यूँ साथ रखता हैँ ! 

विनय – चल छोड़ माँ ,जल्दी से खाना दे ,भूख लगी हैँ ! कल जल्दी चलना हैँ ! आराम  कर फिर ! 

रात भर सीमा जी सोयी नहीं ! कुछ सोच विचार में लगी थी ! 

सुबह उठ चाय नाश्ता कर दोनों माँ बेटे कोर्ट पहुँचे ! 




वहाँ पहले से ही उनका सगा  बेटा विनय ,अपनी पत्नी के साथ मौजूद थे ! 

प्रेम – माँ ,रोज रोज की कलेश खत्म करो ,गांव का घर मेरे नाम कर दो ! आराम से अपने बच्चों के साथ घर पर रहना फिर ! बहू भी पति की हाँ  में हाँ मिलाने लगी ! 

बिना कुछ बोले सीमा जी बेटे विनय के साथ कोर्ट के अंदर प्रवेश कर गयी ! 

अंदर जज के सामने बेटा प्रेम बहस कर रहा कि मैं इनका एकलौता बेटा हूँ ! मेरे पास आजीविका का कोई साधन नहीं ! मैं बिमार रहता हूँ ! मेरी माँ से कहिये मुझे मेरा  हक़ दे ! आपसे विनती हैँ !

 जज – माँ बाध्य नहीं हैँ किसी को डर दबाव में अपनी सम्पत्ति किसी के नाम नहीं कर सकती ! वो अपनी मर्जी से देना चाहे तभी आपको मिल सकती हैँ ! सीमा जी हाजिर हो ! 

सीमा जी – जज साहब ,इसने सही कहा मेरा एक ही बेटा हैँ ! वो जो सामने आपको जो  मुझे ही निहारे जा रहा हैँ ,वो हैँ ! उसका नाम विनय हैँ ! उस से मेरा खून का रिश्ता नहीं ! पर सात जन्मों तक मैं अपने बेटे विनय को ही पाना चाहूँगी ! मैं इस प्रेम को सब दे चुकी ! अब मेरे पुरखों की निशानी गांव का घर बचा हैँ ,उसे मैं अपने बेटे विनय के  नाम करती हूँ ! आपसे हाथ जोड़कर अनुरोध हैँ – आज के बाद मुझे दुबारा कोर्ट ना बुलाया जायें ! 

अपने साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछते हुए सीमा जी कटघरे से बाहर आ गयी ! जज  साहब ने केस खारिज कर दिया ! 

प्रेम और बहू बस सीमा जी को देखते रह गए ! 

बेटा विनय माँ को लेकर बाहर आ गया ! 




माँ ,आपने ऐसा क्यूँ किया ,प्रेम भईया कैसे भी हो हैँ तो आपके बेटे ही ! अपने पाल पोषकर बड़े किये बच्चें को ऐसे अलग मत कीजिये ! 

सीमा जी – जब बेटा जननी माँ के साथ ऐसा व्यवहार करें तो ऐसा करना बिल्कुल गलत नहीं हैँ ! अब मेरा एक ही बेटा हैँ तू ! अब जल्दी से मेरे लिए बहू लेकर आ ! मुझे सास बना ! गांव के घर से धूम धाम से तेरा ब्याह करूँगी ! ऐ रे ,सही कह रही हूँ ना ! 

विनय ने अपनी माँ के हाथों को चूम लिया और उसके गले लग गया ! 

#औलाद 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

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