अहमियत – के कामेश्वरी  : Moral stories in hindi

वीणा मंजु के कमरे में गई और रोते हुए मंजु को चुप कराने की कोशिश करने लगी मंजु मत रो बेटा रोने से कुछ नहीं होने वाला है मेरी बात मान अपने आँसू पोंछ ले ।

देखिए ना माँ रितेश ने कितनी बड़ी बात कह दी है । आप तो जानती ही हैं ना मैं सुबह चार बजे से घर के सारे काम करती हूँ फिर स्कूल की नौकरी भी करती हूँ फिर भी रितेश को मेरी अहमियत ही नहीं है ।

वीणा ने कहा इसका एक ही उपाय है मेरी बात मान और नौकरी छोड़ दे । वह बार-बार तुझसे कहता है ना नौकरी छोड़ दे तो अब तू नौकरी छोड़कर दिखा दे और सिर्फ़ घर का काम कर ले तुझे भी आराम मिल जाएगा । लेकिन माँ हर ज़रूरत के लिए मुझे उनसे पैसे माँगने पड़ते हैं । वे अपने लिए तो खूब दिल खोलकर पैसे खर्च करते हैं । लेकिन जब मैं पैसे माँगती हूँ तो तंगी का दुखड़ा सुना देते हैं।

आपको मालूम है ना उनकी इस आदत से ही तंग आकर मैंने नौकरी जॉइन की थी ।

देख बेटा आज तुम लोग पढ़ लिख गए हो और नौकरी करने लग गए हो पर पुरुषहंकार पुराने समय से ही चला आ रहा है । तुम्हारी बातों में सच्चाई है मैं मानती हूँ । मंजु को थोड़ा सा समय देने के लिए रोते हुए छोड़ देती है ।

वीणा आज की ही बात सोच रही थी कि मंजु को उठने में थोड़ी देरी हो गई थी क्योंकि रात को रितेश बहुत देर से आया था । रितेश को यह पसंद नहीं है कि उसके आने से पहले मंजु सो जाए और उसके आने पर दरवाज़ा खोले । वह चाहता है कि मंजु तब तक जागते रहे जब तक कि वह आ ना जाए।

देर से सोने के कारण मंजु की नींद नहीं खुली फिर भी बिचारी ने हड़बड़ी में ही सही सारा काम निपटाया । अभी लंच बॉक्स तैयार कर रही थी कि वह चिल्लाने लगा था कि मंजु मेरी चाय अभी तक क्यों नहीं आई है । मैं कबसे उठ गया हूँ तुम्हें मालूम नहीं है क्या? तुम्हें दस बार चाय के लिए पुकारना पड़ता है । मैं तो तंग आ गया हूँ सुबह से रसोई में पड़ी रहती है क्या करती है नहीं मालूम ? वह सोच रही थी कि इस तरह चिल्लाने के बदले रसोई में आकर चाय ले जा सकते हैं ना नहीं? बड़बड़ाते हुए आधे में ही अपना काम छोड़कर उसे चाय लाकर दी ।

मंजु ने जल्दी से काम निपटाया और  तैयार होकर बॉय कहते हुए चप्पल पहनने लगी थी कि वीणा ने पूछा मंजु बेटा तुमने नाश्ता किया कि नहीं तो उसने कहा कि नहीं माँ देरी हो रही है।  मैं निकलती हूँ वरना बस छूट जाएगी ।

रितेश के मुख से निकला नहीं खाई है तो कुछ नहीं हो जाएगा अच्छा ही है दुबली हो जाएगी। उसकी बात को मंजु ने तो अनसुना कर दिया था लेकिन उसे बहुत ग़ुस्सा आया था ।

मंजु के जाने के बाद मैं वैसे ही बैठी रह गई थी सोचते हुए कि रितेश के पिताजी ने भी मुझे अहमियत नहीं दी कुछ पूछो तो तुम्हें सब बताना ज़रूरी है क्या कहते थे । उन्हीं के नक़्शे कदम पर बेटा भी चल रहा है पुरानी बातों को सोचते हुए अपनी जगह पर बैठी रह गई थी कि उसी समय डोर बेल बजी । दरवाज़ा खोला तो देखा तो मंजु थी । अरे !! मंजु अभी गई और अभी वापस आ गई है कुछ भूल गई है क्या ?

मंजु ने कहा कि नहीं माँ कुछ भूली नहीं हूँ लेकिन मेरा काम मशीनों की तरह हो गया है । मुझे पता ही नहीं चल रहा है कि कौन सा वार है या दिनांक है ।

आज सेकेंड सैटरडे है और मैं स्कूल के लिए निकल गई थी । रितेश ने कहा कि रसोई में बड़े बड़े अंकों वाला केलेंडर टंगा हुआ है दिखाई नहीं देता है क्या ? वह सिर्फ़ दूध का या नौकरानी का हिसाब लिखने के लिए नहीं है ।

वैसे भी कौन से ऐसे काम कर रही हो जो अपने आप की तुलना मशीनों से कर रही हो । ले देकर एक खाना ही बनाती हो और मंजु जी खाना बनाना कौनसी बड़ी बात है ।  पुराने ज़माने से औरतें ही खाना बनाती आ रही हैं । तुम कोई नया काम नहीं कर रही हो समझ गई हो ना एहसान मत जताया करो रही नौकरी की बात तो मैंने तुम्हें कभी नहीं कहा कि नौकरी करो ।

तुम्हारी नौकरी करने पर तुम्हें कितना तनख़्वाह मिल जाता है । सिर्फ़ साढ़े तीन हजार जो मेरे सालाना इंन्क्रिमेंट से भी कम है । तुम सोमवार को अपना इस्तीफ़ा दे देना । यह रोज रोज की चिकचिक घर में मुझे पसंद नहीं है ।

मंजु को उसकी बातों का बुरा लगा और वह अपने कमरे में आकर रो रही है । वीणा ने कहा मंजु उठ बेटा नाश्ता कर लेते हैं । अब घर आ गई है तो नाश्ता कर लेते हैं ।

मंजु उठी और बाहर आई । खाना और नाश्ता दोनों बन गए थे । इसलिए सास के साथ मिलकर नाश्ता किया क्योंकि रितेश और बेटे संदीप ने नाश्ता कर लिया था ।

मंजु सोमवार को इस्तीफ़ा देने वाली थी इसलिए सारी पुस्तकों को एक जगह रख लिया पेंडिंग काम को पूरा किया उसे डर लग रहा था कि प्रिंसिपल से कैसे कहूँगी क्योंकि दसवीं कक्षा की परीक्षाएँ शुरू होने वाली थी । उसने बच्चों से पूरी तैयारी करा दी थी फिर भी उसका रहना ज़रूरी था ।

सोमवार को सुबह अपने नियमित समय पर ही मंजु उठ गई थी ।  उसे रात भर नींद नहीं आई थी । अपना सारा काम बिना किसी से बात किए उसने पूरा किया और अपना सामान लेकर सिर्फ़ सास को बताकर वह घर से निकल गई थी ।

वहाँ पहुँच कर अनमने मन से ही उसने क्लासेस लिए । लंच के बाद उसकी दसवीं की क्लास थी । उन्हें क्या बताना है कैस बताना है यह सब मन ही मन सोचते हुए क्लास की तरफ़ बढ़ी तभी पीछे से आयम्मा ने पुकारा मंजु टीचर आपका फोन है । मुझे अभी किसने फोन किया होगा सोचते हुए ऑफिस में पहुँची तो क्लर्क सुजाता हँसते हुए कह रही थी आपके पति का फोन है ।

मंजु ने रिसीवर उठाकर कान पर लगाया और हेलो कहा ।

मंजु मैं रितेश तुमने इस्तीफ़ा दे दिया है क्या?

मंजु ने कहा कि नहीं अभी तक नहीं दिया है शाम को घर आने के पहले दूँगी ।

मंजु इस्तीफ़ा मत देना मेरी नौकरी छूट गई है दूसरी नौकरी मिलते तक तुम्हारी सेलरी से ही घर चला लेंगे ।

मेरी सेलरी तो आपके इनक्रिमेंट से भी कम है फिर आज मेरी नौकरी को इतनी अहमियत वाह रे रितेश आप तो बिन पेंदी के लोटे के समान लुढ़कते हो । यह सब उसने मन ही मन में सोचा था । मंजु ने ठीक है कहते हुए फोन रख दिया था और इतराकर चलते हुए बड़े ही उत्साह से कक्षा के अंदर गई ।

के कामेश्वरी

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