“अहंकार” – ऋतु अग्रवाल

   रूपल दिखने में बहुत प्यारी बच्ची थी। अपनी माँ के अनुशासित लालन-पालन में उसके तौर तरीके भी संयमित हो रहे थे। पढ़ने लिखने व अन्य गतिविधियों में भी अच्छी थी। इन्हीं सब गुणों के चलते स्कूल,रिश्तेदारी और पड़ोस में रूपल की बहुत तारीफ होती थी। सब लोग रूपल की प्रशंसा करते थकते ना थे।

             रूपल अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश होती और स्वयं को और अधिक निपुण बनाने की कोशिश करती। उसकी इस लगन से उसमें और भी निखार आने लगा पर तारीफ की अतिरेकता अपने साथ घमंड का बहाव भी ले आती है।

अपनी इतनी तारीफ सुनकर रूपल के भीतर अहंकार की भावना जागने लगी। अब उसके बात करने का अंदाज बदलने लगा। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह कुछ अजीबोगरीब व्यवहार भी करने लगी। तुनक मिजाजी उसके व्यवहार में शामिल होने लगी।

             रूपल की माँ आरती इस स्थिति का गंभीरता से अवलोकन कर रही थी। पानी सिर से गुजर जाए, उससे पहले ही स्थिति को संभालना होगा, ऐसा सोचकर आरती ने रूपल को बुलाया,”रुपल बेटा! यहाँ आओ। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”

        “जी, मम्मी!”रूपल ने माँ के पास बैठते हुए कहा।       

             “तुमने गुलाब का पौधा देखा है कभी? गुलाब के पौधे में फूल और काँटे दोनों ही होते हैं। गुलाब के फूल कितने सुंदर, खुशबूदार,चमकीले और कोमल होते हैं। देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है, मन करता है कि उन्हें देखते ही रहे और जब हवा चलती है तो मानो खुश होकर वे नाचने लगते हैं पर कभी उनके साथ लगे काँटो को देखो।

कितने सख्त, नुकीले, किसी को भी चुभजाए तो खून निकाल दें। हम गुलाब के नाजुक फूलों को छूते हुए अपने हाथों को उन काँटों से बचा कर रखते हैं।

इसी तरह हम इंसान भी होते हैं। भगवान हमें कुछ खूबियों से भर कर भेजते हैं और हम अपनी खूबियों को तराशते हैं पर कभी कभी अहंकार के रूप में कुछ काँटे हमारी खूबियों रूपी गुलाबों के साथ बढ़ने लगते हैं

तब जो लोग हमारी खूबियों को सराहते हैं, वही लोग हमारे अहंकार के कारण हम से दूरियाँ बनाने लगते हैं इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम गुलाब की तरह महके पर काँटो की तरह किसी को चुभे नहीं।”  आरती ने रूपल के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

       “मम्मी! मैं आपकी बात समझ गई। आज से मैं अपने आप को सरल एवं सहज रखने की कोशिश करूँगी।अपने अहंकार को मैं कभी भी बढ़ने नहीं दूँगी। मैं फूलों की तरह खूशबू फैलाऊँगी पर काँटों की तरह किसी को चुभूँगी नहीं।” रूपल ने आरती के गले लगते हुए कहा।

     आरती बहुत खुश थी कि अहंकार रूपी काँटे अब उसकी बिटिया की खुशबू को रौंद नहीं पाएँगे। 

स्वरचित 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

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