आज्ञा का पालन – रीता मिश्रा तिवारी

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योग दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं

“दादो आपकी उम्र क्या होगी”?

 

“पंचानबे (95) साल।”

 

“Omg पर दादो लगती तो सत्तर की हो ।बताओ कैसे? राज  क्या है?”

 

“अब तुमलोग के जैसे तो हैं ना..की दो तीन बजे रात तक जागे और दस बजे दिन तक सोए। ना कसरत ना योगा

तो तंदुरुस्ती कहां से आवेगी।”

 

“अच्छा तो तुम्हारा कहना है कि तुम योग करके इतनी यंग  हो…? ह ह ह ह ह क्या बात है दादो। अच्छा करती कब हो ? मैने तो कभी ना देखा वो सो कॉल्ड योग करते “।

 

“सोया रहबेगा तो कैसे देखेगा। चार बजे भोर में नित्य क्रिया से निपट कर  बैठ जाती हूं योग करने… सबसे  पहले ओंकारा प्राणायाम फिर अनुलोम विलोम, कपाल भांति..”

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“कब से कर रही हो “?

 

“जब कॉलेज में पढ़ती थी तब से”।

 

“दादो ! एक सवाल पूछें, सच सच बताना……?”

 


“पुछ”

 

“क्या दादु भी योगा करते थे…..? “

 

“हां”    क्यूं?

 

“तब तो पक्का तुमने या फिर दादु ने एक दुसरे को पटाया होगा है न…?”

 

“तुम्हारे दादू से हम पार्क में योगा करते हुए मिले थे…. फिर हमलोग दोस्त बन गए फिर….”

 

“फिर क्या दादो बोल न चुप क्यों हो गई “?

 

“बदमाश,,और एक चपत लगा दी।”

 

“ओय होय देखो कैसे शर्मा रही कुड़ी … गाल देखो लाल टमाटर हो गया।”

 

“नालायक! दादी से मशखड़ी करता है ” कह उसके कान मडोड़ दी।

 

“दादो…. दर्द हो रहा छोड़ो … चल बता न फिर क्या हुआ ?”

 

“फिर क्या.. दोस्ती प्यार में बदला उसके बाद शादी हो गई ।हम साथ में ही रोज योगा करते और,बच्चों को भी सिखाया। 

दादु तो मुझे छोड़….कहते गए, स्वस्थ रहना है तो कभी भी योग करना नहीं छोड़ना… कह चले गए ।

आज भी उनकी आज्ञा का पालन कर रही हूं.. तभी स्वस्थ और तंदरुस्त हूं।

तुमलोगों का तो कोई रूटीन नहीं… ना सोने का ना जागने का नाही खाने का…. सब के सब बेरूटिन हो ।”

 

“दादो ! कल से हम सब आपके रूटीन से चलेंगे और योग भी करेगें….आपकी तरह चुस्त दुरुस्त तंदरुस्त बनेंगे , और आपकी आज्ञा का पालन भी करेगें अब खुश।”

 

मौलिक स्वरचित

रीता मिश्रा तिवारी

भागलपुर

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