अधूरी खुशियां – प्रियंका मुदगिल

आज फिर से खाना बनाते बनाते कोमल का हाथ गर्म तवे से लग गया।और एकदम से उसके मुंह से चीख निकल पड़ी।उसकी आवाज सुनकर सासू मां (मीना जी) दौड़कर आई।

“क्या हुआ बहू?तुम ऐसे क्यों चिल्लाई..”

“वो…… मां जी…मेरा हाथ गर्म तवे को छू गया …इसलिए …..” हड़बड़ा कर कोमल ने कहा।

सासू मां ने गैस बंद की और कोमल को अपने साथ कमरे में लेकर गई और उसके हाथ पर प्यार से दवाई लगाने लगी।

ये देखकर कोमल को अपनी मां की याद आ गई जो कि उसे बचपन में ही छोड़ कर किसी बीमारी की वजह से उसे और उसके पिता को इस दुनिया में अकेले छोड़कर चली गई थी।

अपनी नई नवेली बहू की आंखों में आंसु देखकर मीना जी से रहा नही गया

“बहुत दर्द हो रहा है क्या बेटा…?”

“नहीं मां जी…वो आपका प्यार देखकर बस मां की याद आ गई… जब मुझे थोड़ी भी तकलीफ होती थी तो वो मेरे बिना बोले सब समझ जाती थी…उसकी गोदी में सिर रखकर मैं अपनी सारी तकलीफ भूल जाती थी…मैं सिर्फ आंठवी कक्षा में ही थी…. कि मां मुझे छोड़कर…..चली गई….”और ये बोलकर कोमल फफक फफककर रोने लगी।

रोते रोते कोमल अपने अतीत के गलियारों में खो गई।

कोमल अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी और बहुत सी मन्नतों के बाद दस वर्ष के पश्चात कोमल अपने पिता धीरज जी के आंगन में जन्मी थी। धीरज जी ने जैसे ही उसे गोद में लिया …तो बेहद नाजुक …छोटी सी मुकुराती हुई बच्ची को देखकर खुशी से झूम उठे….और बहुत प्यार से उन्होंने अपनी बेटी का नाम कोमल रखा था…..हरपल उसे अपने सीने से चिपकाए रहते।

घर पर उसके माता -पिता के अलावा उसके चाचा -चाची उनका 5 वर्षीय बेटा और दादी मां थे..।




कोमल के माता- पिता तो उसके आने से बेहद खुश थे लेकिन दादी मां ने बिना सोचे समझे उसकी मां को ताना मार दिया,” एक तो इतने साल इंतजार करने के बाद बच्चा जनी है….और वो भी लड़की….जोकि सर का बोझ ही रहेगी…”

उनकी ये बात सुनकर कोमल के पिता गुस्से से कहने लगे,”मां! मेरी बेटी के लिए मैं किसी से एक शब्द भी नहीं सुनूंगा…ये मेरे दिल का टुकड़ा है…आगे से इसके बारे में कुछ भी बोलने से पहले एक जरूर सोच लेना…”

खैर! समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। कोमल की मां उसके जन्म के बाद से काफी शारीरिक कष्टों  की वजह से अक्सर बीमार रहने लगी।

और इसी वजह से  जब कोमल आठवीं कक्षा में थी तो उसकी मां उसे छोड़कर हमेशा के लिए भगवान के पास चली गई।

मां के मरने के बाद कोमल की दादी ने उसके पिता धीरज जी के उपर दूसरा विवाह करने का दबाव डाला लेकिन धीरज जी न ही अपनी पत्नी की जगह किसी को देना चाहते थे और न ही अपनी बेटी के लिए सौतेली मां लाना चाहते थे….

जब धीरज जी ऑफिस चले जाते तो कोमल की चाची उससे घर का कामकाज कराने लगी। दादी तो उसे वैसे ही पसंद नहीं करती थी इसलिए वो सिर्फ अपने पोते को ही प्यार करती ,कोमल से उन्होंने कोई वास्ता नहीं रखा।

इससे उसकी चाची की हिम्मत और बढ़ गई।

अब उसने धीरे- धीरे घर का पूरा कार्यभार कोमल के नाजुक हाथों पर डाल दिया। और जब शाम को उसके पिता दफ्तर से वापिस आते तो कोमल को झूठा प्यार करने का दिखावा करती।

धीरज जी इन बातों से बिल्कुल अंजान थे।घर पर उपेक्षा की शिकार होती कोमल धीरे धीरे दब्बू बन गई। किसी से भी बात करने में डर जाती। पढ़ाई में भी पिछड़ गई। इसी तरह उसने अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की।

तभी एक दिन उसके पिता ने कहा,”कोमल बेटा! मैने तुम्हारा दाखिला एक बहुत अच्छे कॉलेज में करवा दिया है….खूब मन लगाकर पढ़ना…और मेरा और अपनी मां का नाम जरूर रोशन करना…””

कोमल अब कॉलेज जाने लगी लेकिन नए दोस्त बनाने और बाते करने में हिचकिचाती थी…लेकिन उसके पिता कदम कदम पर उसका हौसला बढ़ाते रहते थे.।




उन्होंने कोमल को कॉलेज के  पीजी में रहने की व्यवस्था कर दी…जिससे की वो अपने हिसाब से रहने लगी।

जब भी कोई परेशानी होती तो उसके पिता की कही बाते उसका मनोबल बढ़ा देती।

पढ़ाई पूरी होने के बाद कोमल की एक बड़ी कंपनी में नौकरी लग गई ।लेकिन फिर भी उसे अपनी खुशियां अधूरी ही लगती क्योंकि उसके जीवन में मां के प्रेम कमी उसे हमेशा खटकती..। जो चाहकर भी पूरा नहीं कर सकती थी ।

फिर एक दिन उसके साथ काम करने वाले मयंक ने उसे शादी के लिए प्रपोज किया…कोमल भी मन ही मन मयंक को बहुत पसंद करती थी लेकिन फिर भी वो बिना जवाब दिए वहां से चली आई।

घर आकर उसने अपने पिता को मयंक के बारे में बताकर पूछा,”पापा! क्या मैं मयंक को हां कह सकती हूं…”

ये सुनकर उसके पिता खुश गए और अपनी सहमति जताकर पूछा,”ऐसी क्या खास बात है मयंक में…जो तुम्हे वो पसंद आया..”

पापा..! जब भी मैं परेशान होती हूं  तो मयंक आपकी ही तरह हमेशा मेरा हौसला बढ़ाता है…और मैं अपना काम बेहतर तरीके से कर पाती हूं…सिर्फ यही एक वजह है”

और फिर उसके पिता कोमल और मयंक की धूमधाम से शादी करा देते है।

आज कोमल की शादी को 3 महीने ही बीते थे कि उसने कई बार अपनी सासू मां में अपनी मां की छवि देखी।

जब भी कोमल उदास होती थी उसकी सासू मां उसे झट से किसी भी तरीके से हंसा देती थी ।सासू मां उसमे एक मासूम सी बच्ची का रूप देखती थी जोकि एक मां के प्यार के तरसती थी।उन्होंने कोमल को अपनी बहु नहीं बल्कि बेटी के रूप में स्वीकार किया था।वो अपनी बहु के जीवन के अधूरेपन को अपनी ममता से पूरा करना चाहती थी।

अपनी सासू मां के रूप में मां को पाकर और मयंक जैसा समझदार और प्यार करने वाला पति पाकर कोमल की अधूरी खुशियां आज पूरी हो गई थी।

प्रिय पाठकगण! उम्मीद करती हूं कि आपको मेरी ये रचना पसंद आएगी।मेरी और भी रचनाएं पढ़ने के लिए आप मुझे फॉलो भी कर सकते हैं।

#वक्त 

धन्यवाद

प्रियंका मुदगिल

स्वरचित एवम् मौलिक

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