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अधूरी ख्वाहिश – डी अरुणा

“कितना काम बताती हो मां….आर्या झूठ मूठ का गुस्सा दिखाती बोली।

 अब तक तुमने किया क्या है ? देर से उठी, नाश्ता किया, अब टीवी के सामने बैठी हो।

 ओ….मेरी प्यारी मां …पीछे से मां से लिपट बोली ,”मां उठना…ब्रश करना …नाश्ता खाना… इतना सब तो किया ….

 मां हंसती मीठी सी झिड़कन के साथ बोली,” थोड़ा सा रसोई का भी काम सीख ले …वरना तुझे ही तकलीफ होगी ।

 अरी मां ,होटल जिंदाबाद…. कहती चली गई फिर से टीवी देखने ।

 हॉस्टल से छुट्टियों में आई थी आर्या।मां चाहती थी कुछ काम काज सीख ले ।

 आजकल के बच्चे बाहर के काम दिखाने में जितनी फुर्ती दिखाते हैं किचन के काम के नाम से ही बिदकते हैं। आज नहीं तो कल गृहस्थी  के जंजाल में जाएगी पर आर्या के कान पर जूं नहीं रेंगती और उसका साथ देते हैं पति रामचंद्र जी ।

 ससुराल की बात तो दूर, पर खुद के लिए भी काम चलाऊ रसोई तो आनी ही चाहिए। नौकरी के सिलसिले में बाहर रहेगी…. तब मालती सोचती ।

 




सास की स्पोंजिंग कर ,उनके कपड़े बदल ,सिर में तेल डाल कंघी कर ,चादर बदल किचन में गई आर्या।  उनके लिए नरम दलिया बना खिलाई ।दवा दिया और उनके मनपसंद चैनल लगा किचन में फिर से आई खाना बनाने। अभी पांच/छः महीने पहले ही लकवा ग्रस्त हो सास बिस्तर पर आ गई थी।

 2:00 बजे तक दोनों बच्चे और पति आ जाते हैं ।फिर सभी मिल भोजन करते हैं पर उससे पहले सास को खाना खिला देती है आर्या। दिन भर में कितने छोटे बड़े काम निपटाती है। एक सहायिका है उसकी सहायता के लिए। जो दोनों वक्त काम कर जाती है।

     बिस्तर पर लेटे लेटे उसकी आंखों से आंसू बह निकले ।आज मां का जन्मदिन था । सास बनने वालीएक पराई स्त्री जिसके साथ रक्त संबंध नहीं,शादी के बंधन से जुड़ने वाले पति ,उसके अपने खून…. दो बच्चे ….सभी के लिए कितना काम करती है ,सब की सेवा करती है ….पर अपनी मां की सेवा उसने कभी नहीं की। इस बात का मलाल उसे जीवन पर्यंत रहेगा।

      हमेशा बातों में या हंसी में टाल जाती थी। जब भी मां कुछ बोलती। जिसका आज बेहद अफसोस हो रहा। मां को हमेशा काम करते देखा था। उनकी भी कभी सेवा करनी चाहिए …दिमाग में आया ही नहीं….छी छी  खुद को कहने लगी ।मैं एक अच्छी बेटी भी साबित ना हो पाई।

       अब जब उनके बारे सोच उनकी भरपूर सेवा करना चाहती है… उनसे माफी मांगना चाहती है …वे नहीं रही ।असमय उनकी मृत्यु ने आर्या को माफी मांगने का भी मौका ना दिया । बहुत पछताती है आर्या।

       मां की सेवा करने की चाहत… ख्वाहिश अधूरी ही बनी रह गई। प्रतिदिन सास की सेवा के बाद जी भर रो लेती है क्यों नही उसने मां की सेवा की?

        जीवन में ईश्वर सा उच्च स्थान माता-पिता को दिया गया है ।जब भी अवसर मिले माता पिता की सेवा का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। बाद में, बुढ़ापे में करने की कभी न सोचें। क्या पता …ईश्वर आपको वह मौका दे भी या नहीं? अपनी गलती की माफी मांगने के लिए व्यक्ति मौजूद होगा भी या नहीं?

         स्वत: ही उसके आंसू निकल आते हैं  अपनी अधूरी ख्वाहिश, माता पिता की सेवा करने की चाहत.. को याद कर।

धन्यवाद

#चाहत 

डी अरुणा 

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