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अधूरे ख्वाब – कमलेश राणा

आज नील बहुत उत्साहित था उसका चिर प्रतीक्षित स्वप्न जो साकार होने जा रहा था आज। उसकी बरसों की मेहनत जो काव्य के रूप में संचित थी उसे दुनियां से रूबरू कराने का समय आ गया था। 

माँ आप तैयार नहीं हुई अभी तक, जल्दी कीजिये न और हाँ आज आप अपनी सबसे अच्छी वह पिंक साड़ी पहनिये न जो पापा आपकी बर्थ डे पर बड़े प्यार से आपके लिए लाये थे। 

हाँ, हाँ, समझ गई बाबा वही पहन लूंगी। जानती हूँ कि तुम चाहते हो दुनियां के सामने तुम्हारी माँ बहुत खूबसूरत लगे। है न, यही बात। 

हाँ माँ , आप मेरे लिए दुनियां की सबसे खूबसूरत और गुणवान महिला हैं। कवि बनने के लिए जो एक संवेदनशील दिल चाहिए वह आपसे ही तो मिला है न मुझे। छोटी छोटी खुशियों को महसूस करने और जीने की कला आपसे ही तो सीखी है मैंने। 

अच्छा बस पांच मिनट का वक्त दे मुझे अभी तैयार हो कर आती हूँ। 

आज नील की काव्य कृति “सफरनामा ” का विमोचन है । बहुत ही शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। बहुत सारे महान कवियों से मिलने का मौका मिला मुझे आज जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। नील मुझे चीफ गेस्ट की कुर्सी पर बैठा कर लोगों से मिलने में व्यस्त हो गया। 

सीट की पुश्त से सर टिकाये मैं अतीत में खो गई। उस समय मेरी उम्र यही कोई पंद्रह सोलह वर्ष रही होगी भावनाओं के पूर्ण उफान की उम्र, हर असंभव को संभव कर देने के जुनून की उम्र, हर पल उल्लास से भरी हुई आसमान को छूने की चाहत वाली उम्र, दिल में प्रेम की कोंपल फूटने और बहुत कुछ जान लेने उम्र । 



दिल करता था अपने हर ख्याल, हर अनुभव, हर उम्मीद को शब्दों में उतार दूँ और कॉपी के पिछले पन्ने मेरी इन हसरतों के मूक गवाह बनने लगे और मन सपना देखने लगा खुद को महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत की तरह कवि बनने का। हालांकि मैं जानती थी कि उनसे अपनी तुलना करना राजा भोज और गंगू तेली जैसा है पर सपने में देखने की कोई सीमा तो नहीं होती न। 

पर हाय री किस्मत!!! इस तुषारापात के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था कि मैं एक लड़की हूँ इसलिये प्रेम रस से परिपूर्ण कविताएं लिखना मुझे अपराधी के कठघरे में लाकर खड़ा कर देगा।

 एक दिन मेरी एक कॉपी पापा ने कुछ लिखने के लिए मांगी और जब उनकी नज़र उन कविताओं पर पड़ी तो तुरंत पूछताछ शुरु हो गई,, किसके लिए लिखी है यह। 

अब कोई हो तो बताऊँ न,, मन के भाव थे इसलिये लिख दिये। 

लाख दुहाई दी रो- रो कर पर अविश्वास उनके चेहरे से साफ झलक रहा था। मम्मी को सख्त हिदायत दी गई कि मुझ पर नज़र रखें। उस दिन से मेरा यह शौक और ख्वाब दोनों ही बुरी तरह चकनाचूर हो गये थे। उस दिन के बाद कभी हिम्मत ही नहीं हुई चाहकर भी कविता लिखने की। 

माँ चलिये न, विमोचन आप ही करेंगी मेरी कृति का। 

अचानक नील की आवाज़ से मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं उसके पीछे पीछे चल दी। आज मेरे बेटे ने मेरे अधूरे ख्वाब को पूरा कर दिया । 

कमलेश राणा

ग्वालियर

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