अद्भुत चाहत – भगवती सक्सेना गौड़
- Betiyan Team
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- on Dec 26, 2022
गुप्ता जी अपनी बेटी माधुरी को बुला बुला कर परेशान हो रहे थे, कहाँ हो, देखो तो दरवाजे की घंटी कोई बजा रहा है, लीना आयी होगी, कोई खोल ही नही रहा। भागते भागते दूसरे कमरे से माधुरी आई, और फिर वही रोज वाली बात से परेशान होकर अपने काम में लग गयी। वो अपने प्रोफेसर पापा की इकलौती संतान थी, 2 साल पहले माँ के गुजरने के बाद, उसी शहर में पापा के अकेले रहने के कारण वो उन्हें अपने पास ले आयी।
प्रोफेसर साहब उम्र कीे 72वी सीढ़ी किसी तरह पार करने को मजबूर थे, कई बीमारियां थी, जो टेबलेट्स के सहारे उनके साथ आंख मिचौली खेल रही थी । इसी बीच उनकी याददाश्त भी कमजोर हो चुकी, डॉक्टर ने भी डिमेंशिया का मरीज बताते हुए, बहुत ध्यान रखने की हिदायत दे दी । अपनी पत्नी का नाम पूरी तरह भूल चुके थे । अब माधुरी की परेशानी बढ़ गयी थी, रोज कहते हैं, लीना आयी है, उसने पूरे जीवन में घर में कोई ऐसी महिला का नाम नही सुना। कई बड़े रिश्तेदारों से भी उसने पूछताछ की, पर पता नही चला।
मंदिर में गणेश पूजा का उत्सव चल रहा था, माधुरी उसदिन पापा को मंदिर ले गयी, वहां पकड़ पकड़ कर सब देवता के दर्शन कराए और मंदिर के बाहर दोनो बैठ गए। कुछ ही देर में पापा खड़े हो गए, और एक महिला को देखकर आवाज़ देने लगे, लीना लीना देखो, पहचानो मुझे। अब माधुरी की बारी थी, जल्दी से दौड़ के उस महिला से उसने पूछा, आप लीना है क्या?
अचानक वो महिला चौक गयी, “मैं आपको नही जानती।” माधुरी ने उनसे कहा प्लीज आइये, साथ लेकर पापा के पास आई। प्रोफेसर साहब ने कहा , “लीना गौर से देखो, पहचानो, मैं अवधेश गुप्ता हूँ, किसी अवधेश को तुम जानती हो “। अब चौकने की लीना की बारी थी, हे भगवान, तुम अवध, कभी सोचा भी नही था, बुढ़ापे में भी कभी मुलाकात होगी। माधुरी हक्की बक्की सी सारा खेल देख रही थी, कि जो बीच के वर्षो की हर बाते भूल चुके थे, उनको अपनी जवानी की दोस्त याद थी, शायद यही पहला प्यार कहलाता है। वो भी समझ चुकी थी, चाहत इसी को कहते हैं।
अब लीना जी के भी बहु बेटे ढूंढते हुए पहुचे और उन्हें जाना पड़ा । माधुरी पापा को घर ले आयी । और उस रात प्रोफेसर साहेब जो चैन की नींद सोए तो उठे नही।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर