चाय पर आफ़त – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“माँ तुम मुझे माफ़ कर पाओगी?” ये बात जब तब जयंत के मन में ज़रूर आता रहता  पर ज़ुबान पर लाने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी… और अब वो किस मुँह से किससे जाकर ये कहें ये भी वो समझ नहीं पाता था 

चलचित्र की तरह आज भी उसे दो साल पहले का सारा वाक़या ज्यो का त्यों याद आ जाता…

उसके पिता सर्वेश जी रिटायर होकर अपने रिश्तेदारों के बीच रहना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने अपने परिवार वालो के साथ रहने के लिये उस शहर में जमीन ख़रीद कर रख छोड़ा था जब रिटायर हो जाएँगे तब  जॉब वाले शहर को छोड़कर वहाँ घर बनवा कर रहेंगे… सब तय था कि कुछ दिन किराए के मकान में रहकर अपना घर रहने लायक़ बनवा कर उसमें रहने लगेंगे और रहते हुए बाक़ी काम करवाते रहेंगे उनका एक ही बेटा है जयंत जो ऐसे ही किसी कम्पनी में क्लर्क का काम करता था

जबकि पिता एक कम्पनी में ऑफ़िसर पद पर कार्यरत थे वो बहुत चाहते थे बेटा पढ़ाई करता तो उनकी तरह अच्छी नौकरी करता और अपना एक अच्छा लिविंग स्टैंडर्ड मेंटेन करता पर जयंत को पढ़ाई में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी हाँ बस जैसे तैसे पास ज़रूर हो जाता था …किसी तरह ग्रेजुएशन करके एक कम्पनी में क्लर्क का काम करना शुरू किया और पिता ने उसकी शादी अपने ही दोस्त के कहने पर अपनी बेटी से करवा दी।

पत्नी रूचिका को जयंत सिर आँखों पर रखता… सर्वेश जी बहू को बेटी मान उससे बातें करते और उसे भी प्रोत्साहित करते रहते जॉब करना हो तो कर सकती हो पर  उसने मना कर दिया… बेटे की शादी के एक साल बाद ही सर्वेश जी रिटायर होकर अपने सगे संबंधियों के बीच आ गए और अपनी जमीन के पास ही किराए का मकान लेकर रहने लगे….

अपने मकान का काम शुरू करवा दिए… बेटे ने एक पैसे की जरा मदद नहीं की…सर्वेश जी की पूंजी घर बनवाने में लगने लगी…दिन भर वो पूरा समय घर बनवाने में देते और चाय पीते रहते…चाय के शौकीन सर्वेश जी के पास कभी-कभी दूध लाने के पैसे नहीं बचते… पत्नी शोभा काली चाय बनाकर देती तो कहते जयंत को बोलो दूध ले आएगा… शोभा जी हाँ में सिर झुका देती पर भीतर से वो जानती थी सर्वेश जी तो पूरे वक्त घर बनवाने के चक्कर में उधर रहते हैं घर में बस सोने ही आते तो उन्हें क्या पता घर में बेटा बहू क्या खिटपिट करते रहते।

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एक दिन शोभा जी बिना चीनी की चाय बनाकर ले आई…

“ क्या बात है शोभा पहले दूध नहीं अब चीनी नहीं नमक की ही चाय पिला दो….अब ये हालात हो गये है कि चाय भी नसीब नहीं होती… जयंत को तुमने कहा नहीं घर के राशन का सामान लेकर आया करें?” 

“ मैं कहाँ से और क्या क्या लेकर आऊँगा… आपके पास तो खूब पैसे है फिर आप क्यों नहीं लाते… यहाँ मैं अपनी और अपनी पत्नी की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा आपको खालिस दूध की चाय पीनी रहती वो भी दिन भर में ना जाने कितने गिलास…अब ये सब छोड़ दीजिए और जो मिलता है वही खाइए ।” सर्वेश जी की बात सुन कर जयंत ने आकर कहा 

“ ये क्या कह रहा है सर्वेश… मुझे कोई पेंशन तो मिल नहीं रहा…बस ये घर बन जाए उसके बाद मैं कोई काम कर लूँगा पर तब तक तुम घर का खर्चा तो उठा लो….।” सर्वेश जी ने कहा 

“ देखिए पापा चाय पीने का शौक हम तीनों में से किसी को नहीं है… एक आपके लिए दूध चीनी चायपत्ती का खर्चा कुछ ज़्यादा हो रहा है…अब मैं यहाँ किराया भी दे रहा हूँ घर के लिए राशन भी ला रहा हूँ तो कहाँ से सब कुछ कर सकता हूँ आप चाय पीना बंद कर दीजिए ।” जयंत के ऐसे बोल सुनकर सर्वेश जी घबरा गए 

अभी तो रिटायर हुए चार महीना हुआ है और बेटा अपनी धौंस दिखाने लगा…उन्होंने तो यही सोचा था… रिटायरमेंट के पैसे से घर बनवा लेंगे और बाकी सब जयंत सँभाल लेगा पर यहाँ तो जयंत के तेवर ही अलग दिख रहे।

“ बेटा ये घर तो हमारे लिए ही बनवा रहा हूँ फिर तुमसे पैसे तो ले नहीं रहा क्या तुमपर हम अभी से बोझ हो गए है…. देखो बहू भी पढ़ी लिखी है क्यों ना वो भी कोई नौकरी कर लेती है इससे तुम्हारी गृहस्थी भी अच्छी चलने लगेगी और हमें भी सहारा मिल जाएगा ।” सर्वेश जी ने कहा 

“ देखिए पापा जी..  मुझे नौकरी करने का कोई शौक नहीं है.. वैसे भी मेरे पापा ने कहा था कि सर्वेश जी के पास बहुत पैसे है तुम लोगों को कभी कोई दिक़्क़त नहीं होगी पर आप तो ऐसे कह रहे है जैसे हमारे हालात ठीक नहीं है… ऐसा है तो मुझे झूठ क्यों बोला गया?” रूचिका ने कहा 

“बहू कब कहा पैसे नहीं है बस जयंत के साथ जो बात हुई थी वो कह रहा हूँ… घर बनवाने की ज़िम्मेदारी मेरी थी और तब तक घर चलाने की ज़िम्मेदारी जयंत की ऐसे में वो इस तरह हिसाब किताब करेगा ये नहीं सोचा था ।” सर्वेश जी दुखी होकर बोले

“ बेटा तेरे पापा जी को चाय की आदत है तू तो जानता ही है फिर कुछ समय से सामान लाने में इतना आनाकानी क्यों करने लगा है… भूल गया क्या तेरे पापा ने तेरे लिए क्या क्या नहीं किया… और आज जब वो रिटायर हो गए तुम उनकी सेवा करने के बजाय उनके खाने पाने पर हिसाब लगाने लगा है कुछ तो सोच ।”बहुत देर से चुप शोभा जी बोल पड़ी 

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“ माँ तुम्हें तो सब पता है ना….मेरी तनख़्वाह कितनी है उसमें सब मैनेज करना मुश्किल है तुम अपने पति को क्यों नहीं बोलती हो चाय पीना बंद कर दे।”जयंत ने बहुत तेज आवाज में कहा 

“ तुम भी तो बहू को बोल सकते हो.. वो इतना मेकअप का सामान लेकर घर भर रही हैं… कपड़े पर कपड़े ख़रीद रही हैं…..अभी उसको उसकी इतनी जरूरत नहीं है फिर भी उसको चाहिए होता और तेरे पापा उधर धूल मिट्टी में बैठकर घर बनवा रहे वो तुम्हें नहीं दिखता।” शोभा जी भी सख़्त होकर बोली

“ बस हो गया… अब चाय नहीं बनेगी ।” सर्वेश जी बोले और उठकर अपने कमरे में चले गए 

तीन महीने बाद किसी तरह वो घर बनवा कर हवन करवा कर घर आ गए… 

अब जद्दोजहद शुरू हुआ काम खोजने का….. अनुभव की कमी नहीं थी बस उन्हें जल्दी ही एक काम मिल गया..किसी तरह फिर से ज़िंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगे।

एक रात अचानक सर्वेश जी को बेचैनी महसूस होने लगी…शोभा जी जल्दी से जाकर बेटे के कमरे का दरवाज़ा खटखटाने लगी.. 

“ क्या है माँ सोने दो ना ।” जयंत ने कहा 

“ बेटा वो तेरे पापा…जल्दी से आ।” शोभा जी कहते हुए वहाँ से भाग कर पति के पास आ गई 

जयंत उठ कर नहीं आया…और शोभा जी पति को सँभालने में असमर्थ हो रही थीं.. दिमाग काम नहीं कर रहा था करें तो क्या करें… वो भाग कर पड़ोस में गई और वहाँ से लोगों को बुला कर लाई और उनके सहयोग से सर्वेश जी को लेकर अस्पताल गई ।

अस्पताल पहुँचने से पहले ही रास्ते में सर्वेश जी दम तोड़ दिए शोभा जी को कुछ समझ नहीं आया ये सब क्या हो गया….सर्वेश जी का पार्थिव शरीर जब घर आया तो सबके रोने की आवाज़ सुनकर जयंत और रूचिका कमरे से बाहर निकले…

सामने का नजारा देखकर वो दोनों वहीं जम गए… ये क्या हो गया वो तो सोच रहे थे माँ ऐसे ही उन्हें उठा रही थी और वो उसे नज़रअंदाज़ कर मज़े से सो रहे थे ।

जयंत जब पिता के पास आया तो शोभा जी बोली,” छूना मत… इनकी मौत के लिए तुम दोनों ज़िम्मेदार हो… जब से रिटायर हो कर आए तुमने इनका जीना मुहाल कर दिया था…ये तब भी यही सोचते रहते जयंत की कमाई ज़्यादा नहीं है मुझे ही उसके लिए सोचना होगा क्या करूँ मेरा ही बेटा है न कोई और कैसे सोचेगा हर दिन तेरे तानों से आहत होते रहे फिर भी तेरे लिए ही सोचते रहे और तुमने क्या किया इतना उठाया तुझे और तू सोता रहा… बच जाते अगर तू जल्दी से इन्हें अस्पताल ले जाता।” शोभा जी रोते हुए कहती जा रहीं थी 

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जयंत वही जड़ हो गया…. अचानक क्या से क्या हो गया।

किसी तरह सब काम क्रिया निपटाया गया ।

शोभा जी एकदम चुप हो गईं थीं…जयंत से उन्होंने बात बंद कर दिया था…जयंत कैसा भी था पर था तो एक बेटा ही उसकी माँ की नज़रों में वो अपने पापा की मौत के लिए ज़िम्मेदार था…..शोभा जी पति के जाने के दुःख को सहन नहीं कर पा रहीं थीं वो जब भी जयंत को देखती एक आह निकल जाती… और उसका असर जयंत पर हो रहा था वो माँ के पास जाकर जब भी माफी मांगना चाहता शोभा जी उसे हिक़ारत भरी निगाहों से देखती और ऐसा एहसास करवाती कि वो अब उनकी भी जान ले लेगा ये सब सोचते सोचते एक दिन शोभा जी भी इस दुनिया से चली गई ।

जयंत अपनी माँ की नज़रों में गुनहगार था जिसका प्रायश्चित नहीं किया जा सकता था और शायद कही ना कही यही सच भी था ।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

#कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता

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