अभी तो बेटी बाप की है। –  अनु अग्रवाल

“ये लड़की भी न………ब्याह को बस कुछ ही दिन रह गए हैं……और ये अभी तक घोड़े बेचकर सो रही है……भगवान जाने क्या होगा इसका तो”- सुलक्षणा जी सुबह-सुबह गौरी के कमरे की खिड़की खोलते हुए बोले जा रहीं थीं। “माँ मैं ये शादी नहीं कर सकती”-जैसे ही गौरी के ये शब्द सुलक्षणा जी के कान में पड़े…..मानो पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो….सिर चकराने लगा….ह्रदय गति बहुत तेज हो गयी। उन्होंने पलटकर गौरी की तरफ देखा “ये तू नींद में….क्या बकवास किये जा रही है?” बस ये समझ लो नींद से ही अब जागी हूँ माँ- गौरी की आँखें सुर्ख लाल थीं जैसे रात भर सोयी ही न हो लेकिन चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास और आवाज में दृढ़ता थी। आइये मिलते हैं गौरी से…….गौरी एक खुशमिजाज, ज़िंदादिल, स्वतंत्र ख्यालों वाली, थोड़ी सी झल्ली, बेफ़िक्र, आज में ही जीने वाली लड़की है। देखने में बहुत गोरी तो नहीं लेकिन नैन नख्श बहुत तीखे हैं। चेहरे पर आकर्षण इतना कि कोई उसकी तरफ खिंचे बिना न रह पाता। अभी 2 महीने पहले ही तो अमन अपने परिवार के साथ उसे देखने आया था और अपना दिल दे बैठा था।

2 दिन बाद सगाई का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ और ढाई महीने बाद शादी का शुभ मुहूर्त निकाला गया। और फिर शुरू हुआ था फ़ोन पर लम्बी बातों का सिलसिला। लेकिन 2 ही महीने में ऐसा क्या हुआ जो अब वो शादी करने के लिए मना कर रही थी। आइये जानते हैं… क्या हुआ….कुछ हुआ है क्या? अमन ने कुछ उल्टा- सीधा तो……कुछ अनिष्ट की आशंका से सुलक्षणा ने कंपकपाते हाथों से गौरी का हाथ अपने हाथों में लेकर पूछा। “नहीं…. नहीं माँ ऐसी कोई बात नहीं है”….. तो फिर क्या बात है…..देख मेरा दिल बैठे जा रहा है…..कुछ निमंत्रण पत्र भी बंट चुके हैं……कितनी बदनामी होगी…. सोचा है तूने….कौन ब्याह करेगा फिर तुझसे। हमारी हैसियत तो पता ही है तुझे….उसके बाद भी इतने रहीस खानदान से सामने से रिश्ता आया है…मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था…




और कल ही तो तुझे उन लोगों ने तेरी पसंद की शादी की सारी शॉपिंग करवायी है। माँ मेरी पसंद की शॉपिंग….तो दूर की बात है उन लोगों ने मेरी पसंद नापसंद जानने की कोशिश तक नहीं की. जब भी मैंने बोलना चाहा बस ये कह कर चुप करवा दिया कि हमारे घर की बहुएं ये सब नहीं पहनतीं। यहाँ तक कि मुझे बोलने भी नहीं दिया जा रहा था। इनके बड़े भैया की धर्मपत्नी भी आयीं थीं…..अजीब सा डर देखा मैंने उनकी आंखों में…….एक साड़ी उन्हें बेहद पसंद आयी थी तो धीरे से उन्होंने कहा “देवर जी की शादी के लिए मैं ये ले लूँ क्या….तो अमन की मम्मी ने यह कह कर डाँट दिया कि “छोटे घर की लड़की इसलिए नहीं ली कि वो हम पर अपनी पसंद थोपे….” तब मुझे उन लोगों का सामने से रिश्ता मांगने का कारण समझ आया। इतने दिनों से अमन फ़ोन पर भी ऐसी ही बातें करते थे…कि लड़की की अपनी कोई पहचान नहीं होती….उसकी पहचान तो सिर्फ पति और बच्चों से ही होती है। औरतों का आत्मनिर्भर होना उन्हें कतई नहीं सुहाता है। ऐसी बातों से मुझे घुटन होती थी लेकिन फिर वही डर जो आपने अभी कहा…बदनामी हो जाएगी…

.ये सोचकर मैं चुप हो जाती। लेकिन माँ कल जो कुछ भी हुआ उसके बाद मैं ये शादी नहीं कर सकती। तभी विवेक जी (गौरी के पिता) कमरे मे आ जाते हैं….. और सारी बात सुन लेते हैं। “पापा मेरा ये फैसला यूँ अचानक से नहीं लिया गया है……बहुत सारी बातें हैं….और बहुत सोच समझ कर मैं इस फैसले पर पहुँची हूँ।” ये सारी गड़बड़ फ़ोन पर इतनी सारी बातें करने से हुई है…..ये आजकल के बच्चे भी न घन्टों फोन पर चुपके रहते हैं….और छोटी छोटी बातों का बतंगड़ बना लेते हैं। पहले के जमाने में बस माँ बाप ने रिश्ता तय कर दिया और शादी के बाद ही बात होती थी- सुलक्षणा जी ने परेशान होते हुए कहा। “छोटी सी बात……तुम इसे छोटी सी बात कहती हो……जहां औरत को औरत नहीं बल्कि पैर की जूती समझा जाता है…..

उसकी पसंद कोई मायने नहीं रखती……जिस घर में बहुओं का कोई स्वाभिमान नहीं…..उसका अपना कोई वजूद ही नहीं है। मैं तो शुक्रगुज़ार हूँ आजकल की टेक्नोलॉजी का….कि वक्त रहते हमें सब पता चल गया…….अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है……..अभी तो बेटी बाप की है….सोचो अगर शादी के बाद ये सब पता चलता तो क्या होता? तू बिल्कुल चिंता मत कर…. मेरे होते हुए……मेरी गौरिया को कोई भी पिंजड़े में कैद नहीं कर पायेगा….चाहे वो पिंजड़ा सोने का ही क्यों न हो….मेरी गौरिया तो खुले आसमान में उड़ने के लिए ही बनी है कहकर विवेक जी प्यार से अपना हाथ गौरी के सिर पर रख देते हैं। तो दोस्तों… क्या गौरी का फैसला सही था? और विवेक जी ने उसका साथ देकर ठीक किया? क्या सुलक्षणा जी की सोच ठीक थी कि शादी से पहले बातचीत ठीक नहीं। कमेंट में बताइएगा जरूर। एक नयी कहानी के साथ जल्दी ही हाजिर होती हूँ.

आपकी ब्लॉगर दोस्त

अनु अग्रवाल

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