Moral Stories in Hindi : ” बस कीजिए बुआजी…अब एक शब्द भी और नहीं …।” आलोक अपनी देवकी बुआ पर चिल्लाया और अपने कमरे में चला गया।
कितना खुश था आलोक अपने छोटे-से परिवार के साथ।उसकी पत्नी आरती स्कूल में एक अध्यापिका होने साथ-साथ एक अच्छी माँ और ससुर का ख्याल रखने वाली अच्छी बहू भी थी।देवकी बुआ को भी वह कभी खाली हाथ नहीं जाने देती थी।लेकिन बुआजी आरती से इस बात से चिढ़ी रहती थीं कि आलोक ने उनके देवर की बेटी का रिश्ता ठुकराकर आरती को पसंद कर लिया था।इसलिए आरती की खुशी उनसे देखी नहीं जाती थी।जब आती तो उसके खिलाफ़ कभी अपने भाई के कान भरती तो कभी आलोक के।
एक दिन आरती को स्कूल से आने में देरी हो गई।बुआजी वहीं बैठी हुई थी, बस अनाप-शनाप बकने लग गईं।इधर -उधर के उदाहरण देकर आलोक को कहने लगीं कि स्कूल के बहाने कहीं गुलछर्रे उड़ा रही होगी।आलोक भी तो आखिर एक पुरुष ही था…।जब आरती आई तो उसकी बात सुने बिना ही उसे बहुत भला-बुरा कहा,अपशब्द कहे जो आरती को चुभ गयें और….।
अगले दिन ‘जानकी तलैया’ से उसकी लाश मिली तब तो आलोक उसकी लाश से लिपट-लिपटकर रोने लगा।खुद को कोसने लगा कि इतना समझदार होकर भी वह कान का कच्चा कैसे हो गया? क्यों वह बुआजी की बातों में आ गया.. क्यों उसने आरती की बात नहीं सुनी…।बेटे आरव को देखता तो उसकी रुलाई फूट पड़ती।
कुछ महीनों के बाद पिता के बहुत कहने पर उसने पूजा से ब्याह कर लिया।बुआजी अब पूजा की भी शिकायत करने से बाज नहीं आती थीं।
आज जब पूजा आरव को लेकर स्कूल से नहीं लौटी तो बुआजी ने अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया,” आलोक. …मैंने खुद अपनी आँखों से तेरी पत्नी को एक गैर मर्द के साथ स्कूटर पर बैठे देखा था…।” तब आलोक उनपर चिल्ला उठा।उनकी बातों में आकर वह पहले ही एक गलती कर चुका था..अब नहीं..।तभी फ़ोन की घंटी बजी।
” मिस्टर आलोक…,मैं स्कूल का प्रिसिंपल बोल रहा हूँ।स्कूल का एक बच्चा सीढ़ियों से गिर गया था।आपकी पत्नी ने आरव को यहीं छोड़कर उस बच्चे को लेकर हाॅस्पीटल चलीं गईं और उसकी मरहम-पट्टी कराईं थीं।आपकी वाइफ़ बहुत नेकदिल इंसान हैं।थैंक्यू सो मच!” आलोक को अपनी पत्नी पर गर्व हुआ।उसने मुस्कुराते हुए अपने पिता की तरफ़ देखा जैसे कह रहा हो ‘ सब ठीक है।’
तभी आरव का बैग-बाॅटल लिये हाँफ़ते हुए पूजा आई,” सुनिये ना…आज स्कूल में..।” तपाक-से आरव बोल पड़ा, ” पापा… ,माइ माॅम इज़ बेस्ट.!
” हाँ…मेरी बहू दी बेस्ट है।” ससुर के मुँह से सुनकर पूजा कुछ समझ नहीं पाई, उसने आलोक को देखा जो उसे ही निहार रहा था जैसे कह रहा हो- ‘हमें सब पता है’
देवकी बुआ ने वहाँ से खिसक जाना ही उचित समझा।बोली,” अच्छा आलोक…मैं चल..।”
” हाँ-हाँ बुआजी …जाइये…,अब यहाँ कान का कच्चा कोई भी नहीं है।” फिर तो सभी हा-हा करके हँसने लगे।
विभा गुप्ता
V Txt