अब भेदभाव नहीं सहूँगी – अर्चना कोहली “अर्चि”

जैसे ही सुमिता ने घर में प्रवेश किया, उसे बिठाकर बिना किसी भूमिका के दादी ने एक ही साँस में कई प्रश्न दाग दिए। मानो कोई परीक्षक परीक्षा ले रहा हो।

सभी प्रश्नों का मुख्य केंद्र सिर्फ़ शशांक ही था। “शशांक कैसा लड़का है? कब से तुम्हारे साथ काम करता है? स्वभाव कैसा है? कितनी तनख्वाह है? क्या रिश्ता है” आदि।

सुमिता ने एक मिनट चुप रहकर कहा, “मैं समझी नहीं। उसके बारे में इतनी जानकारी क्यों! ये सब बातें तो रिश्ता तय करते समय पूछी जाती हैं”।

“बिलकुल सही समझा। तू तो बहुत समझदार हो गई है। नमिता के साथ उसके रिश्ते की ही
तो बात चलानी है। एक-दो बार किसी काम से तुमसे कोई बात करने घर आया था। नमिता को वह पसंद है। कल से कह रही है, तुमसे बात करूँ”। पिताजी ने कहा।

अचानक सुमिता को लगा, अंदर कुछ दरक- सा गया है। मानो, कानों में किसी ने पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो। बड़ी बहन के अविवाहित होते, छोटी का ब्याह। एक बार भी नहीं सोचा, मुझे कैसा लगेगा। फिर शशांक तो मेरी जिंदगी है। कैसे उसे अपने से काटकर अलग कर दूँ। हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं। हमने मिलकर कुछ सपने बुने हैं। हमेशा की तरह फिर से नमिता बीच में आ गई।

अचानक लगा, चाय कड़वी हो गई है। चाय का कप मेज़ पर रखते हुए वह मन ही मन बुदबुदा उठी, बहुत भेद-भाव सहन कर लिया। अब नहीं। सच ही कहा है, चुप्पी को हर कोई हमारी कमज़ोरी समझ लेता है”।

क्या सोच रही हो सुमी, दादी ने चाशनी जैसे मीठे स्वर से कहा, बात करेगी न उससे। लगा, शिकार करने के लिए कोई शिकारी जाल लेकर बैठा है।

“यह रिश्ता नहीं हो सकता”। भावनाशून्य होकर सुमिता ने कहा।

“पर क्यों। क्या उसका रिश्ता तय हो गया है या होने वाला है”। नमिता ने पूछा।

“बिलकुल सही सोचा। उसका रिश्ता मेरे साथ होने वाला है। वह मेरी जिंदगी है। एकाध दिन में वह मिलने आने ही वाला है”।




“फिर तो कोई मुश्किल ही नहीं सुमी। तू अपनी बहन के लिए पीछे हट जा। आखिर तेरी छोटी बहन है। फिर तू तो बचपन से ही अपना सब कुछ उसे देती आई है। एक बार और सही”। दादी ने पैंतरा बदला।

“दादी। जो अब तक करती आई हूँ, ज़रूरी तो नहीं, हमेशा ही करती रहूँ। क्या मेरी अपनी कोई खुशी मायने नहीं रखती”। तल्खी से सुमिता ने कहा।

“कैसी बहन है, जो उसकी खुशियों के बीच आ रही है। इस बारे में शशांक को समझाएगी तो मान जाएगा। वैसे भी वह जब नमिता को इस नज़रिए से देखेगा तो खुद ही तेरी और बढ़ते कदम पीछे हटा लेगा। मेरी नमिता है ही इतनी सुंदर”। दादी ने व्यंग्य से कहा।

“मैं ही क्यों हटाऊँ अपने कदम पीछे। बचपन से ही नमिता मेरी हर खुशी छिनती आई है। भले वह छोटा-सा खिलौना हो या कोई ड्रेस। हर चीज़ को मुझसे लेने की ज़िद ही उसे उद्दंड बनाती गई। भले कोई भी तरीका अपना ले नमिता। इस बार उसकी यह इच्छा पूरी नहीं होने दूँगी। अब और भेद-भाव नहीं सहूँगी। भला ज़िंदगी को भी अपने से कोई अलग कर पाया है। भले ही मेरी किस्मत को काली स्याही से लिखा गया है, पर कालिमा भरी रात्रि के बाद भी उजाला आता है”, कहकर सुमिता उठ खड़ी हुई और आत्मविश्वास के साथ अपने कमरे की और बढ़ती चली गई।

दूर सुनाई देती बैंड-बाजे की आवाज़ भी मानो शशांक और सुमिता के रिश्ते का मौन संकेत दे रही थी।अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
#भेदभाव

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