बड़ी बहू यानी जेठानी की तबीयत कुछ अधिक ही ख़राब हुई तो छ: साल पुरानी देवरानी ने बहुत सेवा की ।घर का हर काम सँभाल लिया और जेठानी को पूरा आराम दिया । जेठानी को हैरानी थी कि कभी मुझ से ठीक से बात ना करने वाली , घर के काम में मदद ना करने वाली देवरानी कैसे बदल गई । पर उसे अच्छा लगा कि समय पड़ने पर बहू ने हर काम सँभाल लिया ।
पर स्त्रियाँ तो बिना बोले रह नहीं सकतीं हैं तो स्वास्थ्य कुछ बेहतर होने पर जेठानी ने देवरानी को पास बिठाकर बड़े स्नेह से कहा – तुमने मेरी बड़ी सेवा की इन दिनों प्रिया । दवा से ज़्यादा तुम्हारे प्रेम से मैं जल्दी ठीक हो रही हूँ पर यह बताओ कि हम पिछले छ: साल से साथ हैं पर हमारी यूँ दोस्ती कभी क्यों नहीं हुई ?
‘ भाभी – मैं जब शादी होकर आई तो आप सब नए थे मेरे लिए ।मैं तो किसी के बारे में कुछ जानती ही नहीं थी ,आपके देवर की पोस्टिंग भी तब बाहर थी तो मुझे आप सबको समझने का अवसर भी कम मिला ।मेरी सास आपको हर समय बुरा – भला कहतीं रहतीं थीं तो मुझे भी यही लगने लगा कि आप मेरे आने पर घर के काम से बचने के लिए कभी अपने मायके ,
कभी बाज़ार या कभी सिरदर्द का बहाना करतीं हैं । तो मैं ने भी आपको हमेशा माँजी के चश्मे से देखा । पर धीरे धीरे मुझे समझ आया कि आप पर तो यहाँ आने वाले हर मेहमान के स्वागत की ज़िम्मेदारी थी ,यहाँ तो काम कभी ख़त्म ही नहीं होते ।ननद की और हमारी शादी की ज़िम्मेदारी भी आपने ही निभाई ऐसे में यदि आप कभी बीमार होती हैं
तो आराम करने का या बाज़ार जाना चाहतीं हैं तो बाहर जाने का हक़ है आपका और बहुत स्वाभाविक सी बात भी । ऐसे में हम सबको आपका साथ देना चाहिए । परिवार वाले हमेशा आप को काम करते हुए देखने के आदी थे , आपके ज़रा आराम या मन का करते ही उन्हें परेशानी हो जाती थी और वे कुछ न कुछ कह बैठते थे ।
‘ सही समझा तुमने …जेठानी ख़ुश थीं और संतुष्ट भी कि कोई उन्हें समझने वाला आया , ‘ फिर …?’
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‘फिर क्या ! पिछले एक साल से आपके साथ मतलब परिवार के साथ रहते हुए मुझे समझ आया कि गलती कहाँ है ,किसकी है ! अब मुझे यही सही लगा कि आपका साथ देने , आपको समझने में ही समझदारी है । मैं घर की थोड़ी ज़िम्मेदारी सँभालूँ तो आपको भी अपने लिए समय निकालकर अच्छा लगेगा ।
भाभी…परिवार के बड़े लोग जिस तरह से एक दूसरे से व्यवहार करते हैं नया व्यक्ति तो वही सीखेगा और हर सदस्य के प्रति अपनी राय बनाने में समय लगता है पर मुझे ख़ुशी है कि देर लगी पर मैं सही राय बना सकी ।’ प्रिया के स्वर में बहुत अपनापन था ।
जेठानी का मन ऐसी बातें सुनकर प्रिया के प्रति प्रेम, स्नेह और शीतलता से भर गया । बड़ी संतुष्टि के भाव से उन्होंने प्रिया के सिर पर आशीर्वाद का हाथ फिराया और दोनों देवरानी – जेठानी मुस्कुरा उठीं ।
लघुकथा
( रेनू अग्रवाल )