सुंदरलाल और उसकी पत्नी रेखा दो बेटे रोहन और सोहन, एक प्यारी सी बिटिया सबसे छोटी रश्मि। कुल मिलाकर एक सुखी परिवार। सुंदरलाल की एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान थी जो की फैशन के हिसाब से बहुत बढ़िया चलती थी।
तीनों बच्चे पढ़ाई में बहुत बढ़िया नहीं थे। जैसे तैसे दोनों बेटों ने 12वीं कक्षा पास कर ली थी। और रश्मि अभी आठवीं में थी।
बड़ा बेटा रोहन अपने पापा के साथ दुकान पर जाता था और छोटे ने अपने घर के खाली पड़े कमरे में किरयाने की दुकान खोली थी। मकान अपना था इसीलिए कोई चिंता नहीं थी।
कुछ समय बाद रोहन की शादी हुई। उसकी पत्नी सीमा का स्वभाव ठीक-ठाक ही था। उसके बाद उन्होंने मध्यम वर्गीय परिवार में एक अच्छा लड़का देखकर रश्मि का विवाह करवा दिया। उसके पति का नामअजय था।अजय बहुत अधिक नहीं, लेकिन सही-सही कमा लेता था। उसकी माताजी जीवित थी लेकिन पिताजी नहीं।उसके 2 साल बाद सोहन का विवाह हुआ।
उसकी पत्नी काजल बहुत तेज और स्वार्थी स्वभाव की थी। वह इतनी तेज स्वभाव की थी कि सुंदरलाल और रेखा भी उससे घबराते थे। क्या पता किस बात की झूठी शिकायत अपने पति से कर दे और घर में झगड़ा करवा दे।
सोहन जब उसकी बातों में आता था तब वह किसी की कुछ नहीं सुनता था।
कभी-कभी तो वह अपनी जेठानी सीमा के इकलौते बेटे को पीट भी डालती थी बेचारा बच्चा चाचीचाची करते रोता रहता था।
एक बार उसे बच्चे को ऐसा बुखार आया कि उतरने का नाम ही नहीं लेता था। सीमा और उसका पति बहुत घबरा गए थे। तब सीमा को लगा कि काजल ने जरूर कुछ किया है। पढ़ी-लिखी होने के कारण वैसे तो उसे जादू टोने भरोसा नहीं था,लेकिन अपने बेटे का हाल देखकर वह भरोसा करने लगी थी। उसने अपनी सास से कहा कि मैं काजल के साथ नहीं रह सकती।
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काजल तो पहले से ही यही चाहती थी। दोनों जेठानी देवरानी अलग-अलग हो गई। सीमा किराए के घर में रहने लगी। अब काजलऔर रश्मि के भी दो दोबच्चे हो चुके थे। सासू मां बीमार रहने लगी थी।
धीरे-धीरे वह इतनी बीमार हो गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। काजल उनकी देखभाल नहीं करती थी। सीमा भी उनकी जिम्मेदारी सेबचना चाहती थी।
एक दिन जब दोनों बहुएं अस्पताल में अपनी सास के पास गई, तब उनकी सास ने कहा,,-” मुझे लगता है कि मैं अब बचूंगी नहीं, मुझे घर ले चलो, मैं अपने घर को एक बार देखना चाहती हूंऔर अपना जो मकान है और जो गहने हैं, उनको तीन हिस्सों में बांटना। अपनी छोटी बहन कोभूल मत जाना।”
दोनों बहू ने कहा,मम्मी जी यहां पर आपकी अच्छी देखभाल हो रही है। घर पर हम,उतना ध्यान नहीं कर पाएंगे। ऐसा कहकर दोनों ने सास को घर ले जाने से इनकार कर दिया और सास की अंतिम बार घर जाने की इच्छा अधूरी रह गई और वह चल बसी।
थोड़े दिनों बाद सुंदरलाल की तबीयत अचानक खराब हुई और वह भी चल बसे।
उनके मरने के बाद छोटा भाई दुकान में, और बड़ा भाई मकान में अपना हिस्सा लेने के लिए लड़ने लगे। दोनों ने फोन करके अपनी बहन को बुलाया और उसे दिलासा दिया कि हम तुझे तेरे बच्चों की पढ़ाई के लिए की एक लाख रूपये दे देंगे, तू हिस्से के कागजों पर साइन कर दे। टोटल जायदाद के तीन हिस्से करने हैं, यह बात उन्होंने अपनी बहन को नहीं बताई।
रश्मि की शादी मध्यम वर्गीय परिवार में हुई थी और बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसों की कितनी आवश्यकता होती हैयह किसी से छुपा नहीं है इतना होने पर भी अजय और उसकी माता जी को कोई लालच नहीं था। उन्होंने रश्मि को कहा कि अगर तुझे ठीक लगता है तो तू साइन कर दे।
रश्मि अपने भाइयों की बातों में आ गई और कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए। उसके बाद उसके भाई भाभी उसे भूल गए और ₹100000 भी भूल गए। रश्मि के बच्चे भी बड़े हो चुके थे। बच्चे भी सब कुछ समझने लगे थे।अजय और उसकी माताजी उन्हें अच्छे से अच्छी पढ़ाई करवा रहे थे।
अजय का बेटा अब सी ए बन चुका था और बेटी m.tech करके हैदराबाद में जॉब कर रही थी। किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। बच्चों को पढाने में मुश्किलों का सामना किया था लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया था। नानी का घर और मामा मामी, यह तो उन बच्चों ने कभी जाना ही नहीं था।
लेकिन कहते हैं ना कि चढ़ते सूरज को हर कोई प्रणाम करता है। इसी तरह दोनों भाई बहन की सफलता की खुशी के उपलक्ष में जब अजय ने एक शानदार पार्टी रखी, तब उसने रोहन और सोहन को भी बुलाया। वे दोनों आगे जाकर बढ़-चढ़कर सबसे कह रहे थे कि यह दोनों भाई बहन के हम मामा है और हमने हमेशा इनका साथ दिया है।
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यह सुनकर अजय के दोनों बच्चों को बहुत गुस्सा आ रहा था और उन्होंने आगे आकर अपने मामा मामीसे कहा -” हां जी, आपने हमारी मदद की, आप कौन, हमने पहचाना नहीं आपको। ”
इतने में अजय का इशारा पाकर दोनों बच्चेशांत हो गएऔर दोनों मामा मामी का मुंह देखने लायक था। तब अजय ने स्पीकर लेकर सबको संबोधित करते हुए कहा, ” यह तो जीवन का सत्य है कि गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता और अमीर की छत पर बैठा हुआ कौवा भी सबको मोर नजर आता है। आज जब मेरे बच्चे अपने जीवन में सफल हो गए हैं, तब जो रिश्तेदार हमसे दूर भागते थे, वे अब सगे बन रहे हैं।
अगर आज हमारे पास दौलत ना होती, तो पहले की तरह सब हमसे दूर ही रहते, यह तो जीवन का बहुत बड़ा सच है। हमने ईश्वर के अलावा कभी किसी से कोई आशा नही रखी और ना रखेंगे। ईश्वर बड़ा दयालु है, वह सब की प्रार्थना सुनता है। आइये सब मिलकर बच्चों की सफलता कोखुशी से मनाते हैं।”
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी
दिल्ली
#ये जीवन का सच है