Moral stories in hindi: ऑंसू क्या है? ऑंखो से बहता हुआ पानी जो खुशी में भी बहता है और गम में भी, ऐसा कुछ लोग कहते हैं। किसी के ऑंसू किसी के मनोरंजन का साधन होते हैं तो। किसी के ऑंसू किसी के लिए सिर्फ एक नाटक। हर ऑंसू की अपनी एक कहानी होती है।
सागर की ऑंखो से टपकी अश्रु की बूंदे, उस दर्द को बया कर रही थी, जो उसे गंगा की कहानी को सुनकर हुआ। गंगा से वह कभी मिला नहीं, बस घर की छत से सांझ ढले सामने के मकान की छत पर अक्सर उसे टहलते हुए देखा था उसने। । एक शालीन, सांवली सी सौम्य छवि। घनी केशराशी के मध्य दमकता उसका चेहरा।
उसकी ऑंखों में छुपी उदासी, उसकी मुस्कुराहट के पीछे छिपा दर्द सागर की पैनी नजरों से छिप नहीं पाया। एक अजीब सा आकर्षण था गंगा में जो उसे अपनी ओर खींचता था।
सागर छुट्टियों में अपने मामा के यहाँ आया था। वह एक बैंक में नौकरी करता था। एक दिन उससे रहा नहीं गया और उसने अपनी मामी जया जी से पूछ ही लिया। ‘ मामी ये सामने के मकान में जो लड़की रहती है, हमेशा गुमसुम रहती है, मुझे उदास सी लगती है। यह कौन है ?’ मामी ने एक ठंडी सांस भरकर कहा -‘बेटा यह बहुत प्यारी बच्ची है।
नि:श्छल और पवित्र हृदय है इसका, किसी का दु:ख देख नहीं सकती, सबके ऑंसुओं को मूल्यवान समझती है, कहती है -‘ऑंसू इतने सस्ते नहीं, उन्हें इस तरह न बहाओ।’ सबके ऑंसू अपने दामन में समेटने के लिए तत्पर रहती है। किसी के ऑंसू बहते देखती है तो द्रवित हो जाती है, उसका दु:ख दूर करने की हर सम्भव कोशिश करती है, बहुत दयालु है।
इतना दु:ख झेला है इसने पर किसी के आगे ऑंसू नहीं बहाती है, पता नहीं इतने ऑंसुओं को कहॉं छिपा रखा है इसने। जब भी इसे देखती हूँ, दिल से इसकी खुशी के लिए प्रार्थना करती हूँ। मेरी तबियत ठीक नहीं रहती थी, तेरे मामाजी को भी ऑफिस के काम से कई दिन दौरे पर जाना पड़ता था। तब नीरा और रोमा को भी इसने बहुत प्यार से सम्हाला।
बेटा एक समय था जब सामने के मकान में बहुत रौनक रहती थी। कैदारनाथजी और उनकी पत्नी सामली अपने तीन बच्चों के साथ रहते थे।
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हंसी खुशी का वातावरण रहता। मगर एक दिन उनकी खुशियों पर ग्रहण लग गया। सामली जी की अचानक हृदयाघात से मृत्यु हो गई। उस समय गंगा १२ साल की थी कान्हा ८ साल का और आरती सिर्फ ५ साल की थी। घर में हाहाकार मच गया था, कैदारनाथजी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे?
आस पड़ोस के हम लोगों ने उनके रिश्तेदारों को खबर की, और सामली का चालचलावा करवाया।१२ साल की गंगा माँ के जाने के गम में बेहाल हो रही थी, तभी उसने देखा अपने छोटे भाई बहिनों को, जो लगातार रोए जा रहै थे। उसने अपने ऑंसुओं को कितनी मुश्किल से सहेजा होगा, हम सोच भी नहीं सकते ।
उसने दोनों भाई बहिनों को अपने सीने से लगा लिया, और उस दिन से जैसे वह उनकी माँ बन गई थी। उस दिन के बाद मैंने उसकी आँखों में कभी ऑंसू नहीं देखे। जैसे- तैसै सबके सहयोग से १३ दिन का कार्यक्रम निपटा। कुछ लोगों ने कैदारनाथजी को दूसरी शादी करने की सलाह दी,मगर वे तैयार नहीं हुए। घर में शान्ता बाई काम करने के लिए आती थी, वह सुबह ८ बजे आती और शाम को ८ बजे जाती। अच्छी महिला थी घर का पूरा काम करती, बच्चों को भी प्यार से सम्भालती।
गंगा भी उसकी हर काम में मदद करती। कैदारनाथजी भी बच्चों का और घर का ध्यान रखते और जीवन की गाड़ी चल रही थी। गंगा ने बी.ए.की परीक्षा पास कर ली थी और कान्हा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था। नन्ही आरती सातवीं कक्षा में पहुँच गई थी। कैदारनाथजी ने अच्छा घर वर देखकर गंगा का रिश्ता तय कर दिया।
वे चाहते थे कि नौकरी से सेवानिवृत्ति से पूर्व गंगा का विवाह कर दे। सब बहुत खुश थे, शादी की तैयारियाँ चल रही थी, १५ दिन बाद विवाह था। मगर ईश्वर को तो कुछ और मंजूर था, एक दिन कैदारनाथजी सीढ़ियों से गिर गए, पैर में फ्रेक्चर हो गया और साथ ही पेरालिस़िस का अटैक आ गया, पूरी तरह से बिस्तर पर आ गए, न बैठ सकते थे, न बोल सकते थे और न हाथों से कुछ खा सकते थे, एक करवट से सोए सोए उनकी ऑंख से बस ऑंसू बहते रहते।
विचित्र परिस्थिति हो गई। कान्हा और आरती का रोना रूक नहीं रहा था, उस समय भी गंगा ने हिम्मत से काम लिया। उन दोनों को सम्हाला और कहा- ‘तुम परेशान मत हो, पापा अच्छे हो जाऐंगे, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।’ ‘पर दीदी आप तो ससुराल चली जाओगी।’ गंगा ने दृढ़ता से कहा ‘ मैं कहीं नहीं जाऊँगी, जब तक पापा अच्छे नहीं हो जाते।
मेरी शादी पापा से बढ़कर तो नहीं है। तुम अपने ऑंसू पौछो और अपनी पढा़ई पर ध्यान दो।’ वह पापा के सिरहाने बैठकर उनके सिर पर हाथ रखती, उनके ऑंसू पौछती और कहती ‘पापा आप परेशान मत हो, आप जल्दी अच्छे हो जाओगे।’ वे कुछ कहना चाहते तो मुंह से आवाज नहीं निकलती।
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अपने आने वाले जीवन को लेकर गंगा बहुत खुश थी, उसकी खुशी उसकी आँखों से छलकती थी, इस अप्रत्याशित घटना से उसके ख्वाब जब टूटे होंगे, तो क्या उसे दर्द नहीं हुआ होगा? कैसे जब्त किए होंगे उसने इतने ऑंसू, सोचकर मुझे आश्चर्य होता है। शादी टूट गई, लड़के वालों को जल्दी थी, उस लड़के की शादी दूसरी जगह हो गई। कैदारनाथजी इतने लाचार थे, कि कुछ कर ही नहीं सकते थे,वे बोल भी नहीं पाए कि बेटा यह रिश्ता मत तोड़।
बस उनकी ऑंखो से बेबसी के ऑंसू झरते थे, जिन्हें गंगा जतन से रोकने का प्रयास करती। उन्हें खुश रखने की कोशिश करती। उसकी मेहनत का ही परिणाम है, कि कैदारनाथजी अब व्हील चेयर पर बैठ कर घर में घूम सकते हैं, अपने जरूरी काम कर लेते हैं, हाथ से भोजन कर लेते हैं। कुछ- कुछ बोल भी लेते हैं। वे जब भी गंगा से विवाह के लिए कहते हैं, वह मना कर देती है, कहती है ‘पापा मैं आपको छोडकर कहीं नहीं जाऊँगी।’
उसने कान्हा और आरती की शादी करवा दी है। आरती उसके परिवार में खुश है, यहाँ बहुत कम आती है। कान्हा की कम्पनी में नौकरी लग गई है, वो भी दूसरे शहर में अपनी पत्नी के साथ मस्त है। दोनों ने गंगा के उपकारों का यह सिला दिया, जब पिछले महिने गंगा बहुत बिमार हो गई थी, दोनों को खबर की मगर दोनों नहीं आए।
बड़ी मुश्किल से हम पड़ोसियों ने मिलकर उसे सम्हाला,अब उसकी तबियत ठीक है, पर कमजोर बहुत हो गई है। इतना होने पर भी उसने भाई- बहिन की बुराई नहीं की। मैंने भी उसे समझाया बेटा अभी तेरी पूरी जिंदगी पढ़ी है, विवाह कर ले, तू यहाँ आती रहना, भाईसाहब को हम सब मिलकर सम्हाल लेंगे,मगर वह तो अपने निर्णय पर अटल है कि अपने पापा को छोड़कर नहीं जाएगी।
अब तो कोई ऐसा लड़का मिले जो गंगा के साथ उसके पापा का भी ध्यान रखे, मगर ऐसा लड़का मिलना आज के समय में सम्भव नहीं है।’ कहते-कहते जया जी की आवाज नम हो गई थी,और ऑंखो में झिरझिरी तैर गई थी। गंगा की कहानी सुन सागर का मन व्याकुल हो गया, उसकी आँखों से अश्रु की बूंदे गिरी, उसने कहा ‘मामी ऐसा लड़का मिलना असम्भव भी तो नहीं है।’ जया जी की ऑंखे आश्चर्य से फैल गई थी, उन्होंने पूछा ‘क्या तुम्हारी नजर में कोई लड़का है?’
‘मामी ! क्या मैं गंगा के लायक नहीं हूँ? अच्छी खासी कमाई है मेरी, मैं उसका और उसके पापा का ध्यान तो रख ही सकता हूँ। ‘ ‘तो क्या तुम गंगा से शादी करोगे? दीदी और जीजाजी नाराज नहीं होंगे?’ ‘आप उनकी चिंता मत करो मामी, उन्होंने मुझसे कहा है ,कि वे मेरी पसन्द की लड़की से ही मेरा विवाह करेंगे।
और मुझे अभी तक कोई लड़की पसंद नहीं आई, और मेरी शादी नहीं हुई। गंगा उन्हें पसन्द न आए ऐसा नहीं होगा। आप गंगा और उसके पापा से बात करके देखो। मामी !गंगा के ऑंसू पत्थर की शिला बन जाए, उससे पहले उन दर्द के ऑंसुओं को मैं खुशियों के मोती मे बदलना चाहता हूँ।’ जया जी ने कहा- ‘तू बहुत उतावला हो रहा है, मैं आज ही तेरे मामाजी से बात करती हूँ। हम दोनों कल गंगा के यहाँ जाऐंगे।’
दूसरे दिन सागर के मामा- मामी गंगा के यहाँ गए, कैदारनाथजी बहुत खुश हुए, उन्होंने कहा अगर गंगा तैयार है,तो मुझे यह रिश्ता करने में बहुत खुशी होगी।’ मैंने गंगा से पूरी बात की और कहा अगर लड़के से मिलना चाहो तो मिल लो, वह अभी यहाँ आया हुआ है।’ ‘क्या वही है,जो कल आपकी छत पर…..?’ कहते हुए वह शरमा गई। ‘तो तुम्हारी तरफ से हॉं समझू।’ उसने गर्दन झुकाकर कहा ‘जैसा आप ठीक समझे।’ दोनों की
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सहमति मिल गई थी। सागर ने अपने मम्मी -पापा को बुलाया। उन्हें गंगा का व्यवहार, उसके हाथ का बनाया भोजन सब बहुत पसंद आया। सब खुश थे। सबकी रजामंदी से शादी हो गई। और आई फिर वो रात….।गंगा गुमसुम बैठी थी, सागर ने कहा ‘कुछ बोलोगी नहीं गंगा, क्या तुम खुश नहीं हो?’ ‘नहीं ऐसी बात नहीं है,अचानक मिली इस खुशी को सहेज नहीं पा रही हूँ?’ उसकी ऑंखो में ऑंसू आ गए थे, उसने उन्हें पौछने का प्रयास किया,तो सागर ने उसका हाथ पकड़ लिया, और कहा इन्हें बाहर आने दो। सागर के दिल में और बाजुओं में इतनी क्षमता है, कि इन मोतियों को सहेज ले, नीचे नहीं गिरने दूंगा इन्हें।’ गंगा को सागर का स्नेहिल स्पर्श मिला और वह ढुलक गई सागर की बाहों में, मोती गिरते रहे सागर उन्हें समेटता रहा, कई दिनों के संचित ऑंसू थे। गंगा के ऑंसू जो दिल की गहराई में जम गए थे उनका मूल्य समझने वाला मिल गया था। गंगा सागर में समा रही थी और रात बीत रही थी।
अगले दिन नया सवेरा था।आज गंगा की ऑंखो में उदासी नहीं थी और न उसकी मुस्कुराहट के पीछे कोई दर्द छुपा था। उसके सारे ऑंसू मोती बनकर सागर की गहराई में समा गए थे।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित