गर्मियों के दिन थे। नीता अपने बच्चों के साथ ऑंगन में बैठी आम के मजे ले रही थी। प्लेट में पीले, मीठे,रसीले आम के टुकड़े रखे थे और वे सभी बहुत खुश होकर खा रहे थे।
मोनिका का छह साल का बेटा अंशु भी वहीं खेल रहा था। आम देखकर उसके छोटे-छोटे हाथ आम की प्लेट की ओर बढ़ चले और उसने आम की एक फाॅंक उठा ली। ये देखते ही नीता ने उसके हाथ से आम की फाॅंक छीन ली।
ये देख अंशु रो पड़ा और उसने रोते हुए नीता से कहा “बड़ी माॅं मुझे भी आम खाना है।”
यह सुन नीता ने उसे झिड़कते हुए कहा “आम खाने हैं। पता भी है, क्या भाव है। केले खरीद कर खाने की औकात नहीं और नवाब को आम के मजे लेने हैं। चल भाग यहाॅं से।” यह सुन अंशु रोते हुए वहाॅं से चला गया।
जब छत से कपड़े सुखाकर आ रही मोनिका ने यह सब सुना तो अपने बच्चे का ऐसा अपमान देख वह अंदर तक हिल गई “दीदी, यह आप किस तरीके से बात कर रही हैं अंशु से।आम की एक फाॅंक के लिए बच्चे को रुला दिया।”
“देख मोनिका, मैं तुम माॅं, बेटे को पाल रही हूॅं ।तुम दोनों का बोझ उठा रही हूॅंं ।यही बहुत है। यदि, उसे आम खाने का इतना ही शौक है तो अपने दम पर खिलाओ।”
यह सब सुन मोनिका अवाक रह गई। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि नीता अंशु को लेकर इतनी कड़वी बातें कह सकती है। वह अपमान का घूॅंट पीकर वहाॅं से चली गई। कमरे में अंशु रोते-रोते सो गया था। उसके गालों पर उभरी ऑंसुओं की सूखी रेखाऍं देख उसका दिल चीर उठा। उसके सिर पर हाथ फेरते-फेरते वह पुरानी यादों में खो गई। आज से सात साल पहले जब वह दुल्हन बनकर इस घर में आई थी तब नीता ने उसे गले लगाते हुए कहा था कि “तुम मेरी देवरानी नहीं, छोटी बहन हो।
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वे दोनों मिलजुल कर राजी-खुशी एकसाथ एक घर में रहती थी। सब कुछ सही चल रहा था। लेकिन, साल भर पहले मोनिका के हस्बैंड की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद नीता का व्यवहार बदलने लगा। छोटी-छोटी बातों पर वह मोनिका को ताने मारती, अपमानित करती। धीरे-धीरे करके उसने घर का सारा काम मोनिका के मत्थे मड़ दिया। वह सुबह से रात तक घर के कामों में पिसती रहती। लेकिन, यह सोचकर सब्र कर लेती कि “जेठ-जेठानी, बच्चे सभी उसके अपने हैं। अपनों का काम करने में कैसी शर्म?” लेकिन आज आम की एक फाॅंक के लिए अपने बच्चे का ऐसा अपमान देख उसकी आत्मा सुलग उठी।
दूसरे दिन सुबह-सुबह नीति चिल्लाते हुए मोनिका को खोज रही थी “अरे मोनिका! कहाॅं मर गई? अभी तक चाय नहीं बनी क्या?”
तभी मोनिका एक सूटकेस लेकर बाहर आई “भाभी, आज से आप अपनी चाय खुद ही बना लेना। मैं जा रही हूॅं।”
“कहाॅं जा रही है महारानी?”
“भाभी, मैं अपने बेटे के साथ ये घर छोड़कर जा रही हूॅं।”
“क्या! कल की जाती आज ही जा। जब जमाने की ठोकरें खायेंगी तो रोते हुए यहाॅं मत आ जाना।”
“नहीं आऊॅंगी।चल अंशु।” यह कह वह बेटे को ले घर से निकल पड़ी।
उसने अपनी थोड़ी-सी सेविंग से बगल के शहर में एक छोटा सा किराए का मकान ले लिया और मकान के पास ही एक प्ले स्कूल में नौकरी कर किसी तरह अपना जीवन-यापन करने लगी। उसके मकान के बगल में ही बच्चों का हॉस्टल था। जिसमें प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चे रहते थे। वे छुट्टी के दिन या शाम के वक्त अक्सर अंशु के साथ खेलने आ जाते थे। मोनिका का मधुर व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा लगता था। मोनिका कभी-कभी उन बच्चों के लिए खाने की कुछ चीजें भी बना देती थी।
एक दिन उसके हाथ के बने चूड़े और मठरी खाते हुए एक बच्चे ने कहा “आंटी, आप कितना टेस्टी खाना बनाती हो। बिल्कुल घर जैसा।जबकि, हम जिनसे टिफिन मॅंगाते हैं उनका खाना तो एकदम बेकार होता है। कई बार तो हमारी तबीयत भी खराब हो जाती है।”
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यह सुनते ही मोनिका के दिमाग में टिफिन सर्विस का ख्याल आया और वह बोली “बच्चों, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए टिफिन बना सकती हूॅं।” यह सुनते ही बच्चे उछल पड़े। मोनिका ने टिफिन बनाकर देना शुरू किया। वह बहुत ही कम कीमत में उच्च गुणवत्ता युक्त, स्वादिष्ट खाना बनाती। उसका खाना इतना स्वादिष्ट था
कि धीरे-धीरे उसके ग्राहक बढ़ने लगे। कुछ ही महीनों में मोनिका ने टिफिन सर्विस को क्लाउड किचन में बदल दिया। वह ऑनलाइन ऑर्डर लेने लगी और अपनी मेहनत और लगन से कुछ ही समय में उसने क्लाउड किचन को बहुत सफल बना लिया। कुछ सालों बाद उसने अपने रेस्टोरेंट की शुरुआत की। रेस्टोरेंट की ओपनिंग पर उसने अपनी जेठानी नीता को भी इनवाइट किया और भेंट स्वरूप एक आम की पेटी उपहार में दी।
“मोनिका, ये आम की पेटी!” नीता ने आश्चर्य से पूछा।
“भाभी, यह आम की पेटी मेरी ओर से आपके लिए भेंट है। यदि उस दिन आपने मेरे बेटे को आम की एक फाॅंक के लिए इतना अपमानित न किया होता तो शायद आज मैं यहाॅं नहीं होती। आपके द्वारा किया गया अपमान मेरे लिए वरदान बन गया। वो कहते हैं ना ‘अपमान बना वरदान’ यह सुनते ही नेता का चेहरा शर्म से झुक गया। लेकिन, मोनिका के चेहरे पर सुकून था खुद को साबित करने का।
धन्यवाद।
साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता#अपमान बना वरदान
लेखिका- श्वेता अग्रवाल, धनबाद झारखंड
शीर्षक-आम की एक फाॅंक