आक्रोश ने दिलाया प्रमोशन  – सुषमा यादव

उस समय मैं छिंदवाड़ा जिले में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षिका थी। मेरे पति वहां एग्रीकल्चर में अधिकारी की पोस्ट पर थे ।

हमारा छोटा सा परिवार बहुत सुखी था। ज्यादा की हमने कभी कामना भी नहीं की थी।दो छोटी बेटियां, और हम दो। बहुत खुश थे हम सब।

छिंदवाड़ा शहर भी बहुत बढ़िया था और वहां के लोग, पड़ोसी बहुत ही मिलनसार और मददगार प्रकृति के थे। लगता ही नहीं था कि हम अपनों से दूर एक अनजान शहर में रह रहे हैं।

एक दिन ये आफिस से मुंह लटकाकर आये। मैंने पूछा, क्या हुआ? बोले, कुछ नहीं। आज़ प्रमोशन लिस्ट आई है फिर मेरा नाम नहीं है। एग्रीकल्चर के अन्य विभागों में मुझसे जूनियर का प्रमोशन हो गया,पर मेरा अब तक नहीं हुआ। मैंने कहा,धीरज रखिए, एक दिन आपका भी प्रमोशन जरूर हो जाएगा। 

गुस्से में बड़बड़ाते हुए चले गए,कब आयेगा, मुझे तो नहीं लगता, बिना जेब गरम किए बगैर आजकल कोई नहीं सुनता और मैं यह हरगिज नहीं कर सकता।

मैं खामोश सुनती रही।

लेकिन उस दिन के बाद से हमारा खाना पीना सब हराम हो गया।

रात दिन बस एक ही रटन। 

ना बोलना ना कहीं आना जाना।

मन हुआ तो थोड़ा बहुत खा लिया वरना मुंह बना कर लेटे रहना। हमेशा सोचते रहना,।

बहुत दुखी रहते थे,मन के अंदर तक उस पीड़ा ने झकझोर दिया था।

अब रात दिन किचकिच होने लगी, बच्चों को और मुझे बात बात पर झिड़कना, चिड़चिड़ाना रोज का काम हो गया।




एक तो मेरी नौकरी ऊपर से इनका ऐसा बर्ताव,भारी उपेक्षा से मन आहत होता जा रहा था। अब तो ताने उलाहने भी सुनने को मिलने लगा। मैं बस इस उपेक्षा से रोती ही रहती। हमारे सुखमय जीवन को किसी की बुरी नजर लग गई थी।

एक दिन इनके गुस्सा करने और चिल्लाने से मेरी सहनशक्ति जवाब दे गई। इनके ख़राब रवैये से तंग आकर मैं पूजा करते समय आक्रोश में चिल्ला पड़ी, दुनिया में केवल आप ही नहीं है,जिनका प्रमोशन नहीं हुआ है। आप भर ही नौकरी नहीं कर रहे हैं। अच्छा खासा सब चल रहा है, पता नहीं, कहां फेंक देंगे। क्या कमी है हमें।

इतना सुनते ही बोल पड़े, तुम तो चुप ही रहो, और बाहर चले गए बिना खाये। 

भारतीय नारी, बिना पति के खाये बगैर, कैसे मुंह में निवाला डाले।

शाम हो गई। अचानक मेरा आक्रोश रुपी नाग फन फैलाए जाग उठा, मैंने भगवान के पास जाकर कहा।आप सब देख रहें हैं,अब जब तक इनका प्रमोशन नहीं हो जाता, मेरे मुंह में अन्न का एक दाना भी नहीं जाएगा, इतनी ज़िल्लत भरी जिंदगी ज़ीने से क्या फायदा।

रात को ये आये, मैंने चुपचाप थाली परोस दी और कमरे में जाकर लेट गई। आकर पूछा, तुमने खाना खा लिया, मैंने मुंह फेर कर कहा, नहीं।अब जब तक आपका प्रमोशन नहीं हो जाता, मैं खाना नहीं खाऊंगी।

बहुत कहा पर मैंने नहीं सुना।

अब आपकी तमन्ना या फिर मैं। पड़ोस की दीदी आईं बहुत समझाया ,पर मैं टस से मस नहीं हुई।

तीसरा दिन अभी शुरू ही हुआ था कि आफिस से चपरासी लिफाफा लाकर पकड़ा देता है।

खोलकर देखा तो खुशी से मुझे उठाकर गोल गोल घुमा दिया।

चहकते हुए बोले, अरे बाप रे। तुम्हारे गुस्से से तो भगवान भी डर गए। मैं तो बिल्कुल निराश हो गया था। तुम्हारे आक्रोश ने तो मुझे प्रमोशन दिला दिया।

दौड़ कर गये , भगवान का धन्यवाद किया और मेरे मुंह में एक कौर रोटी सब्जी का ठूंस दिया।

उनके लिए तो आज खुशी का दिन था,पर मैं छिंदवाड़ा छोड़ने के ग़म में डूबी थी, मेरी आंखों में आंसू आ गए।मेरा प्यारा शहर मुझसे एक साल में छुट गया।

मुझे भी अपना ट्रांसफर करवा कर मजबूरी में आना पड़ा।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

#आक्रोश

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