मालती अपनी आदत के अनुसार रसोई में चाय बनाने के लिए गई। यह उसकी पुरानी आदत थी वह दो कप चाय बनाकर पति को उठाती उठिए चाय बन गई है और दोनों मिलकर बालकनी में बैठकर बातें करते हुए चाय पीते थे।
आज उसने एक कप चाय अपने लिए बनाई और बाहर बालकनी में बैठने के लिए जाते हुए सामने पति के फ़ोटो को देखकर रुक गई थी जिस पर फूल माला पहनाई गई थी । उसके दिल में एक हूक सी उठी और बीस दिन पहले की बात याद आई। उनकी आँखों से आँसू बह निकले। उनके इस दुख को कोई नहीं समझ सकता था।
मेरा कितना ख़याल रखते थे । मेरी हर ज़रूरत को पूरा करते थे। आज मुझे अकेला छोड़ कर चले गए हैं। पैंसठ साल की मालती एक सरकारी स्कूल में पढ़ाती थीं। वह हमेशा सोचती थी कि रिटायरमेंट के बाद पति और दोनों बेटों के साथ आराम की ज़िंदगी बिताऊँगी।
मालती की सोच में रिटायरमेंट काम के लिए है ना कि ज़िंदगी के लिए है। वह हमेशा सोचती रही कि स्कूली जीवन से रिटायरमेंट मिल गया तो क्या होगा। ज़िंदगी मेरी अपनी है इसमें मैं खुद को ख़ुश रख सकती हूँ जीवन में कैसे मोड़ आ जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता है। हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ है। इस उम्र में वह अकेली हो गई है किससे मदद की उम्मीद करें ।
इतने सालों से बच्चों का सहारा है सोचा था पर दोनों बेटे अपने माता-पिता को छोड़कर अपने परिवार को लेकर विदेश चले गए हैं।
इसलिए मालती इस ख़ालीपन को अपनी ज़िंदगी में ढो रही हैं । इसका दुख वे ख़ुद जानती हैं। मालती बालकनी में यह सब सोचते हुए आँखें मूँद कर बैठी हुई अपनी ज़िंदगी की ख़ूबसूरत पलों को याद करने लगीं।
जगमोहन जी की अपनी एक कपड़ों की दुकान थी। वह अच्छे से चलती थी उनके परिवार का पालन पोषण आराम से हो जाता था। उनके दो बेटे थे हैं अजय और विजय । अजय बड़ा बेटा था जिस पर माँ की जान बसती थी विजय छोटा सा प्यारा सा पिता का दुलारा था।
दोनों पति पत्नी मस्ती में एक दूसरे को बच्चों के नाम से ही पुकार लेते थे। जगमोहन जी दुकान से आते समय बाहर से ही पुकारते हुए आते थे कि अजय की माँ चाय बन गई है क्या ?
उनकी इस हरकत से हँसते हुए मालती बोलतीं थीं कि हाँ विजय के पापा ला रही हूँ। बच्चे उनका मजाक उड़ाते थे। इसी तरह से हँसी ख़ुशी उनका जीवन चल रहा था । दोनों बच्चों को उन्होंने अच्छी शिक्षा दी अब दोनों की नौकरी लगते ही शादी कराना चाहते थे।
जगमोहन जी को लगता था कि अजय उनके कपड़ों के व्यापार में हाथ बँटाएगा लेकिन अजय को इस व्यापार में कोई रुचि नहीं थी। उसे तो विदेश में जाकर नौकरी करना था। उसकी बातों को सुनकर जगमोहन जी ने कहा भी था कि बेटा मैंने तो सोचा था कि मेरे बाद दुकान की ज़िम्मेदारी तुम ले लोगे अब तुम विदेश चले गए तो इसे कौन सँभालेगा। अब तुम खुद सोचो कि नौकरी करोगे तो हज़ारों रुपयों से गुज़ारा करना पड़ेगा । वही मेरे व्यापार को सँभाल लोगे तो करोड़ों रुपये कमा सकते हो। मैंने तुम्हें इसलिए भी पढ़ाया था कि तुम अपनी सूझबूझ से व्यवसाय को आगे बढ़ाओगे।
अजय ने कहा कि आपके कपड़ों की दुकान में काम करने के लिए मुझे इतना पढ़ने की ज़रूरत नहीं है उसे तो थोड़ी सी पढ़ाई करके भी सँभाल सकते हैं। मैंने पढ़ाई इतनी मेहनत से की थी क्योंकि मैं बाहर जाकर नौकरी करूँ। सॉरी मैं आपकी बात नहीं मान सकता हूँ।
जगमोहन जी अभी भी हार नहीं मानना चाहते थे। उन्होंने फिर से अजय को समझा कर कहने लगे कि देखो बेटा पढ़ाई लिखाई सिर्फ़ नौकरी के लिए नहीं है व्यवसाय में आओगे तो नए नए तरीक़े अपनाकर उसे आगे बढ़ा सकते हो। हमारे पास दुकान में काम करने के लिए बहुत सारे वर्कर हैं तुम सिर्फ़ अकाउंट देख लो।
उन्होंने कहा कि अगर तुम्हें यह कपड़ों का व्यापार करना पसंद नहीं है तो तुम कुछ और व्यवसाय शुरू करो अगर वह भी नहीं पसंद है तो नौकरी ही कर लो पर यहीं इंडिया में हमारे आँखों के सामने रहो बाहर मत जाओ।
जगमोहन जी ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर वह टस से मस नहीं हुआ।
विजय ने कहा भाई आप पापा से ऐसे कैसे बात कर रहे हैं उन्होंने हमें पाल पोसकर बड़ा किया है पढ़ाया लिखाया है। उनकी बात मान सकते हो ना। इतनी बड़ी गलती आप कैसे कर सकते हो।
अजय ने भाई की तरफ़ मुड़कर व्यंग से कहा कि हाँ तुम तो ऐसा ही कहोगे क्योंकि तुम माँ पापा के पीछे दुम हिलाकर फिरते रहते हो।
वे जो भी कहते हैं उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहते हो।
तुम्हारे जैसे लोग कभी भी जीवन में कुछ नहीं कर सकते हैं। तुम कुएँ में मेंढक की तरह यहीं रहो परन्तु मैं यहाँ नहीं रह सकता हूँ मुझे तो यहाँ से बाहर जाना ही है।
माता-पिता को लगा कि यह तो बात सुनने से रहा इसलिए वे चुप हो गए।
अजय ने सारे फॉरमालटीस पूरा करके वीसा पा लिया और अमेरिका के लिए रवाना हो गया । इस दौरान उसे माता-पिता या अपनी ज़िम्मेदारी याद नहीं आई।
अजय के जाते ही मालती उदास हो गई थी जगमोहन उसकी उदासी दूर करने के लिए कहने लगे थे कि मालती दुखी मत हो आजकल के बच्चों को अपने तरीक़े से जीने के लिए सोचते हैं ।
वह सब तो ठीक है जी। हम माता-पिता प्रति पल उनके लिए ही जीते हैं उनके भविष्य के बारे में ही सोचते हैं बच्चे हमारे बारे में क्यों नहीं सोचते हैं। मालती चिंता मत करो अजय को अपने रास्ते जाने दो विजय है ना वह हमारी देखभाल कर लेगा।
तुम्हें मालूम है ना बचपन से ही विजय हमारी बात मानता है हमारे आगे पीछे घूमता है वैसे भी वह अजय के समान स्वार्थी नहीं है। विजय भी उनके हाथ पकड़कर कहा माँ पापा मैं आप लोगों को कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा इसके बदले में चाहे मुझे कोई बहुत सारा पैसा ही क्यों ना दे दे। विजय ने माता पिता से वादा तो किया था लेकिन उसे ज़्यादा दिन तक निभा नहीं पाया क्योंकि उसे श्वेता बहुत पसंद आ गई थी । उसकी सुंदरता पर वह लट्टू हो गया था। उसके सामने उसे माता पिता की याद ही नहीं आ रही थी।
श्वेता को भी विजय पसंद आया था क्योंकि उसे भी ऐसा ही लड़का पसंद था जो उसके आगे पीछे घूमता रहे।
श्वेता अपने दो भाइयों की लाडली बहन थी।
उसके पिता भुवन शहर के बहुत बड़े बिज़नेसमैन थे । विजय के पिता की बिज़नेस भुवन जी की बिज़नेस के आगे बहुत छोटा सा था। उनके दोनों बेटे पिता के बिज़नेस में साथ देते थे। श्वेता और भुवन एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। श्वेता के पीछे बहुत सारे लड़के पड़े हुए थे लेकिन श्वेता को विजय ही पसंद आया था।
श्वेता ने देखा कि विजय उसे बहुत पसंद कर रहा है तो उसने उसका फ़ायदा उठाया और कहा कि शादी के बाद वह ससुराल में नहीं रहेगी मायके में रहेगी और विजय को उसके साथ चलना पड़ेगा। विजय पहले तो झिझका कि माँ पापा को छोड़कर कैसे जाऊँगा पर श्वेता को देखकर उसका दिल उसकी तरफ़ मुड़ गया और वह उसकी बात को राजी खुशी मान गया।
उन दोनों की शादी धूमधाम से हो गई और श्वेता नाम के वास्ते एक बार ससुराल आई और फिर विजय को लेकर अपने घर लौट गई।
मालती ने जगमोहन से कहा कि देखिए विजय जो हमारा सहारा बनेगा सोचा था वह भी अपनी पत्नी का पल्लू पकड़ कर चला गया है।
मालती जाने दे अजय को रोक नहीं सके हैं तो विजय को क्यों रोकें। बच्चे जब तक घोंसले में रहते हैं तब तक साथ रहते हैं क्योंकि उन्हें हमारी ज़रूरत पड़ती है वे उड़ नहीं सकते हैं अब तो उन्हें उड़ना आ गया है इसलिए वे अब रुकना नहीं चाहते हैं।
श्वेता के पिता ने विजय और श्वेता को अमेरिका में जो बिज़नेस है उसकी ज़िम्मेदारी सौंप दी और वे दोनों भी अमेरिका चले गए।
दोनों बच्चों के जाने के बाद जगमोहन की तबीयत ख़राब हो गई और वे दुकान भी नहीं जा पा रहे थे। पति पत्नी बहुत ही मस्त रहते थे लेकिन आज एक दूसरे से सिर्फ़ बच्चों के बारे में ही बातें करते थे इतना बड़ा घर जो हमेशा बच्चों की ख़ुशियों से भरा होता था लेकिन आज पूरे घर में खामोशी छाई हुई है। बच्चों को और उनकी यादों से कितना दूर जाना चाहते थे परंतु जा नहीं पा रहे थे उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे।
जगमोहन जी ने अपनी दुकान बेच दी और घर पर ही रहकर डॉक्टर का ट्रीटमेंट कराने लगे। मालती अपना समय घर के कामों में लगाने लगी।
जगमोहन जी समाचार पत्र के समाचारों को जोर से पढ़कर मालती को सुनाते थे और मालती सुनकर अपने विचारों को व्यक्त करतीं थीं। एक दिन जगमोहन जी समाचार पढ़ते हुए रुक गए थे मालती ने दो तीन बार पूछा कि क्या बात है आप चुप क्यों हो गए हो जब वहाँ से कोई जवाब नहीं आया तो वह उन्हें देखने बैठक में पहुँची और देखा कि समाचार पत्र नीचे गिरा हुआ था । मालती ने उन्हें उठाने की कोशिश की देखा तो उनका शरीर ठंडा हो गया था और उनकी आँखें खुली हुई थीं।
वह जोर जोर से रोने लगीं थीं उनकी रोने की आवाज़ सुनकर पास पड़ोस के लोग आ गए। उनमें से ही किसी ने दोनों बच्चों को फोन करके ख़बर दे दी।
बच्चों ने पिता की मृत्यु पर दुख व्यक्त किया और कहा कि वे इस समय इंडिया नहीं आ सकते हैं इसलिए आप लोग ही उनके अंतिम संस्कार भी कर दीजिए।
उन्होंने मालती के बारे में पूछा कि उनके लिए क्या करें तो अजय ने कहा कि वे हमेशा कहती रहती हैं कि घर में लोगों से भरा होना चाहिए है और समाजसेवा पर लेक्चर देती रहतीं थीं ना तो उनसे कहिए कि वृद्धाश्रम में जाकर वहीं समाजसेवा करें और लोगों के बीच रहें।
जगमोहन जी की मृत्यु से मालती जी की दुनिया ही मानो रुक गई थी। ऊपर से लोगों की बातों से वह और भी टूट गई थी।
जगमोहन जी को गए हुए बीस दिन हो गए थे और मालती अकेली इतने बड़े घर में रह गई थी वह इस सदमे से उबर नहीं पाई थी। जगमोहन जी की कुर्सी पर बैठकर चाय पीते हुए उन्हें याद करके आँसू बहाने लगी दोपहर का समय हो गया था लेकिन उन्हें अपने खाने की चिंता भी नहीं हुई। उसी समय डोर बेल की आवाज़ हुई
तो वह वर्तमान में आकर आँसू पोंछते हुए दरवाज़ा खोलकर देखा तो उसकी सहेली रेखा खड़ी हुई थी उसे गले लगाकर रोते हुए कहती है कि देख जगमोहन मुझे अकेला छोड़कर चले गए हैं। रेखा की आँखों में भी आँसू आ गए थे। उसने कहा कि मैं शहर में नहीं थी आज ही आया हूँ और मुझे ख़बर मिली तो मैं भागकर आ गई।
मालती उसके लिए चाय बनाने के लिए उठी थी कि उसका सर चकराया और वह गिर पड़ी रेखा उसे डॉक्टर के पास ले जाने की बात कही तो मालती ने कहा कि कुछ भी नहीं हुआ है मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया है इसलिए सर चकरा गया है।
रेखा जल्दी से रसोई में गई और मालती के लिए खाना बनाकर लाई और खिलाते हुए कहने लगी कि मालती तुम्हें हिम्मत से रहना है इस तरह टूट गई तो कैसे चलेगा।
मालती ने कहा कि कैसे हिम्मत दिखाऊँ रेखा । मेरे दो बच्चे हैं दोनों ही बाहर हैं और अब पति ने साथ छोड़ दिया है । इतने बड़े घर में अकेली कैसे जियूँगी यही सोचकर दिल दहल जाता है।
रेखा ने कहा कि देख मालती मन में दृढ़ संकल्प है तो सफलता जरूर मिल जाती है। सबसे पहले अपने बच्चों से एक्सपेक्टेशन छोड़ दो और उनके बिना ही आगे बढ़ो।
मुझे ही देख पंद्रह साल पहले ही मेरे पति ने मेरा साथ छोड़ दिया था। एक अकेले लड़के को पाल पोसकर बड़ा किया उसकी शादी की। अब आराम करूँगी सोचा तो बहू को मेरा साथ पसंद नहीं आया और वे अलग चले गए। मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपना समय बिताने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी और कुछ पैसे कमाने लगी हूँ ।
उसकी बातों को सुनकर मालती को लगा कि रेखा ने सही कहा है कि उम्र तो एक नंबर है । दूसरे दिन की सुबह उसके लिए एक नया संदेश लेकर आया था उसने सोचा मुझे भी कुछ करना है।
श्वेता के पिता के गुजरने के बाद उसके भाइयों ने विजय से व्यापार अपने हाथों में ले लिया और उन दोनों को थोड़ी सी प्रॉपर्टी देकर उन्हें घर से बाहर कर दिया था।
अब विजय की हालत धोबी का कुत्ते जैसी हो गई थी और इधर श्वेता भी उस पर दबाव डाल रही थी कि इंडिया जाकर माँ से प्रॉपर्टी में से हिस्सा माँग ले । विजय ने कहा कि जब से पापा की मृत्यु हुई तब से हमने एक बार भी अपने घर फ़ोन करके माँ के हालचाल नहीं पूछा है आज हिस्सा माँगने कैसे जा सकते हैं। श्वेता ने कहा कि यह सब सोचने लगोगे तो तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। एक काम करो अपने भाई को भी फोन करो और दोनों मिलकर जाओ और अपनी माँ से हिस्सा मांगो।
अजय की भी नौकरी छूट गई थी और दूसरी नौकरी मिल नहीं रही थी तो उसकी पत्नी ने भी उसे इंडिया जाकर प्रॉपर्टी में हिस्सा माँगने के लिए कहा था अब जब विजय भी पैसे की माँग कर रहा था तो अजय तैयार हो गया।
दोनों ने एक साथ जाने का निर्णय लिया। अजय आठ साल बाद और विजय छह साल बाद इंडिया आ रहे थे । इंडिया पहुँच कर उन्होंने टेक्सी लिया और घर की तरफ़ चल पड़े ।
घर के बाहर टेक्सी रुकी तो दोनों ने एक दूसरे को आश्चर्यचकित होकर देखा क्योंकि वहाँ कुछ फ़ंक्शन है शायद बहुत चहल पहल थी। गेट के पास एक बोर्ड लगा हुआ था जगमोहन मेमोरियल स्कूल । मालती ने अपने घर की मरम्मत कराई और वहाँ गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोला था।
उस दिन उस स्कूल का वार्षिकोत्सव समारोह था शहर के मेयर को बुलाया गया था फ़ंक्शन अच्छे से ख़त्म हो गया था । सब लोगों ने मालती को बधाई दी। सबके जाने के बाद मालती घर आकर अपने दोनों बेटों को वहाँ बैठा हुआ देख चकित हो गईं थीं। उन्हें यह सपना जैसे लग रहा था परंतु जब दोनों ने उनका पैर छुआ तब लगा कि यह सत्य है । उनकी आँखें नम हो गईं थीं। अपने आप को सँभालते हुए उसने कहा कि अरे बेटे रास्ता भटककर यहाँ आ गए हैं । बहुत ही व्यस्त रहते हैं आप दोनों इसलिए पिता की मौत पर भी नहीं आ सके थे।
उनकी बातों को वे दोनों सर झुकाए सुन रहे थे। मालती ने कहा ठीक है यह सारी बातें पुरानी हो चुकी हैं। आप दोनों कैसे हैं?
दोनों ने एक साथ कहा कि हम ठीक हैं आप कैसी हैं?
एक समय था जब मैं ठीक नहीं थी बहुत दुखी थी लेकिन आज मैं बहुत खुश हूँ । तुम लोग बैठो तुम लोगों के लिए खाने का इंतज़ाम कर देती हूँ।
उनके जाने के बाद दोनों भाई शॉक में आ गए थे उन्होंने सोचा कुछ था पर यहाँ के हालात कुछ और निकले। उनके बचपन का घर अब पुराने जैसा नहीं रहा तीन मंजिला मकान बन गया है जहाँ स्कूल अच्छे से चल रहा है । माँ से अपनी बात कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
उन्हें डर इस बात का था कि बिना पैसे लिए गए तो दोनों की बीबियाँ चुप नहीं बैठेंगी उन्हें क्या जवाब देंगे यही सोच रहे थे।
इस बीच माँ ने खाना खाने के लिए बुलाया तो दोनों ने खाना खाया और कुछ सोचते हुए बैठक में बैठ हुए थे । माँ ने समझ लिया था कि वे कुछ कहना चाहते हैं । अजय ने हिम्मत करके कहा माँ आपसे कुछ कहना है।
मालती ने कहा कि मुझे मालूम है तुम दोनों यहाँ क्यों आए हो परन्तु वह तुम लोगों को नहीं मिलेगा। दोनों ने आश्चर्य चकित होकर मालती की तरफ़ देखा।
मालती ने कहा कि मैं तुम्हारी माँ हूँ तुम लोगों की दिल की बात बिना कहे ही समझ जाती हूँ । उस बात को सुनते ही दोनों को पसीने छूटने लगे । बात यह है कि तुम लोगों को इस घर में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। तुम लोग दुकान नहीं जाना चाहते थे और उसे हमने बेच दिया है उन पैसों से ही इस घर की मरम्मत कराई है और स्कूल खोल दिया है और इस भवन को स्कूल के ट्रस्टी के नाम कर दिया है। मैं रहूँ या ना रहूँ यह स्कूल यहाँ चलता रहेगा।
अजय ने ग़ुस्से में कहा कि आपको यह सब करने की ज़रूरत क्या है।
देखो मेरे लिए पैसा ही सब कुछ नहीं था परंतु जिन लोगों के लिए इतना बड़ा घर बनाया गया है वे तो विदेश में जाकर बस गए हैं।
तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद मैं अकेली रह गई थी कैसे रहूँगी समझ नहीं पा रही थी। हाँ अजय तुमने मुझे सलाह दी थी ना कि मैं अकेली रह नहीं सकती हूँ तो वृद्धाश्रम में जाकर रह लूँ ।
उस समय मेरे मन में ख़याल आया था कि मैं दूसरों की सहायता करूँ समाज सेवा करूँ । तुमने ही कहा था कि एक समय आने पर बच्चों को अकेले छोड़ देना चाहिए माता पिता को उन्हें अपने पास रोक कर रखना नहीं चाहिए।
मैं तुम्हारी ही पदचिह्नों पर चल पड़ी। उसी समय नौकर ने आकर कहा कि आपके लिए कोई आया है। वह बच्चों की तरफ़ मुड़कर देखती है और कहती है कि मुझे काम है । मैंने अपना आख़िरी फ़ैसला आप लोगों को सुना दिया है। आप लोगों को जब तक रहना है रहिए मैं चलती हूँ कहते हुए चल पड़ी।
के कामेश्वरी