आज फिर जीने की तमन्ना है ” – अनिता गुप्ता 

 

24 वर्षीय विभा कैंसर अस्पताल के जनरल वार्ड के पलंग पर लेटी है। अभी दो दिन पहले ही विभा को आईसीयू से जरनल वार्ड में शिफ्ट किया था। एक हफ्ते पहले उसका ब्रेस्ट कैंसर का ऑपरेशन हुआ था।

विभा एकटक छत की ओर देख रही है। पास में उसकी मां ललिता जी बैठी हैं। जो उससे बात करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन विभा का उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं है। बस गुमसुम आंखों में घोर निराशा भरे छत को निहार रही है। तभी डॉक्टर के राउंड का टाइम हो गया और डॉक्टर उसके बेड के पास आकर खड़े हो गए लेकिन विभा अभी भी चेहरे पर निर्विकार भाव लिए हुए थी।

डॉक्टर- “अब कैसी तबियत है  विभा?” विभा कोई जवाब नहीं देती। तब डॉक्टर उसको झकझोरते हैं और कहते हैं- “विभा! तुम्हारा ऑपरेशन अच्छा हो गया है। तुम उन खुशनसीबों में से हो जिनको जिंदगी दुबारा मिली है। जिंदगी मिलने का स्वागत करो उसे गले लगाओ। अगर तुम इस तरह से रूठी रहोगी तो जिंदगी भी तुमसे रूठ कर चली जायेगी। शारीरिक रूप से तुम्हारी जल्दी रिकवरी तभी होगी जब तुम मानसिक रूप से स्वस्थ रहोगी। इसके लिए तुम्हारा सकारात्मक होना जरूरी है। अगर तुम खुश नहीं रहोगी तो तुम्हारे घर वालों की और डॉक्टर्स की टीम की सब मेहनत बेकार हो जाएगी । जीवन में कभी खुशी और कभी गम तो लगा ही रहता है। अब तुम गम का दामन छोड़ कर खुशी का स्वागत करो।”

“लेकिन डॉक्टर! इस कैंसर ने मेरी जिंदगी तहस नहस कर दी। कितने ख्वाब देखे थे मैंने अपने करियर को लेकर और जब वे सच होने लगे तो मुझे इस बीमारी ने जकड़ लिया।” विभा दुखी स्वर में बोली।

“लेकिन अब तुम इस बीमारी से आजाद हो। ऑपरेशन की रिकवरी और कीमोथेरेपी के बाद तुम बिलकुल नॉर्मल लाइफ जी सकती हो। बस तुमको अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। भगवान का शुक्रिया अदा करो कि तुम कैंसर की जंग जीत गई हो।” डॉक्टर ने समझाया और रिया को आवाज लगाई। 

एक 12 साल की बच्ची डॉक्टर के पास आकर खड़ी हो गई।



“विभा! ये रिया है। जब 10 साल की थी तब इसे ब्लड कैंसर हो गया था। आज इसकी उम्र 12 साल है 2 साल से ये इस बीमारी से लड़ रही है लेकिन हिम्मत नहीं हारी है और जिंदगी को जिंदादिली से जी रही है। जबकि इसको नहीं पता है कि इसकी जिंदगी कब तक है और ये ठीक भी हो पाएगी या नहीं। लेकिन अपनी तकलीफ भूलकर सामान्य जिंदगी जी रही है। दो महीने में अपने टेस्ट करवाने आती है और किसी ना किसी मरीज को प्रेणना देकर जाती है। तुम भी इससे बात करो  तुम्हें अच्छा लगेगा।”डॉक्टर ने कहा और अगले बेड पर चले गए।

इधर रिया ने विभा से बात करना शुरू कर दिया।

“विभा दीदी! आप मेरी बनाई हुई पेंटिंग्स देखेंगी?” और विभा के बिना जवाब का इंतजार किए रिया दौड़ कर अपनी बनाई हुई एक पेंटिंग ले आई।”

“दीदी! ये मैंने आज ही बनाई है। देखो।”

“ना चाहते हुए भी विभा उसकी पेंटिंग देखने लगी।

रिया ने बहुत ही सुंदर बोलती हुई सी पेंटिंग बनाई थी। पेंटिंग में रिया डॉक्टर बनी हुई एक बच्चे का ऑपरेशन कर रही थी और ओटी के बाहर उस बच्चे के माता पिता आंखों में एक उम्मीद लिए ओटी की तरफ देख रहें थे।

“तुम बड़ी होकर डॉक्टर बनोगी? “विभा ने पूछा।

“अगर इतनी जिंदगी मुझे मिली तो मैं जरूर डॉक्टर ही बनूंगी ।”रिया बोली।

“जिंदगी कितनी भी लंबी हो या छोटी लेकिन उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए। अगर मेरी जिंदगी ना रही तो मेरी पेंटिंग मुझे जिंदा रखेंगी।”रिया आत्मविश्वास के साथ बोलती जा रही थी और विभा उसकी बातों को मंत्र मुग्ध होकर सुन रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि “कितना आत्मविश्वास है  इस छोटी सी बच्ची में। जबकि मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हो जाऊंगी फिर भी दुखी हो रही हूं। आज रिया ने मुझे जिंदगी की बहुत बड़ी सीख दे दी है।”

विभा ने रिया से कहा  “धन्यवाद रिया! तुमने मुझे जीने की नई राह दिखा दी। मैं अपना जीवन बेकार समझ रही थी  लेकिन तुमने फिर से मुझमें जीने की तमन्ना उत्पन्न कर दी।”

#कभी_खुशी_कभी_गम

 

अनिता गुप्ता 

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