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आईना –  हनी पमनानी

आजकल के रिश्ते डिजिटल हो गए हैं अच्छा किया तो लाइक बुरा किया तो ब्लॉक, बात करनी है तो कॉल रिसीव नहीं तो स्विच ऑफ। फेसबुक पर ओपन पब्लिक खोखले रिश्ते ।

 पर इस  डिजिटल युग में एक मन का रिश्ता जो सब से छुपा कर आज तक रखा था बड़ी हिम्मत करके इस मंच पर उजागर कर रही हूं उम्मीद है कि आप मेरी भावनाओं को समझेंगे।

इस एक रिश्ते में अच्छा करने पर लाइक भले ना मिला हो पर बुरा करने पर कभी ब्लॉक नहीं किया जब मैंने उससे बात करना चाही  तो वह हमेशा अवेलेबल ही रहा । इस एक रिश्ते में ब्लॉक, स्विच ऑफ और आउट ऑफ कवरेज का हक सिर्फ और सिर्फ मेरे पास ही रहा। 

जब मैं घर में अकेली होती हूं जैसा कि प्रायः एकाकी परिवार में होता ही है तो मैं उससे खूब बातें करती हूं अपनी उपलब्धियां अपनी गलतियां अपना हर सुख अपना हर दुख उसके साथ शेयर करती हूं। 

वह मुझे ध्यान से सुनता है कभी मुझे जज नहीं करता मैं चाहूं तो मेरी पीठ थपथपाता है, चाहू तो मुझे कभी टच नहीं करता  ,चाहूं तो चाटां भी मारता है, चाहो तो सुनता है, चाहो तो सुनाता है ,चाहो तो आंसू पोछता है, चाहो तो जी भर के रोने देता है । 

इस एक रिश्ते को मैं कोई नाम नहीं दे सकती बताते हुए बड़ा अजीब लगता है पर उसमें मैं और सिर्फ मैं ही दिखती हूं। 

जाने क्या रिश्ता है पूर्व जन्म का उस दर्पण ( आईने ) का मुझसे, उससे बातें में खूब करती हूं  और यह भी मुझे खूब समझता है इस रिश्ते से प्यारा कोई नहीं जीने का सहारा कोई नहीं। 

हर इंसान के पास ये  प्यारा रिश्ता होना चाहिए यह रिश्ता है इंसान का अपने आप से, अपने अंतर्मन से ,अपनी आत्मा से क्योंकि अपनी आत्मा से ज्यादा हमें कोई और जान नहीं सकता। 

लेखिका हनी पमनानी

अजमेर

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