विदाई की घड़ियाँ नजदीक आ रही थीं । तनु विशाल की ओर मुख करके कभी उसे पढ़ने की कोशिश करती तो कभी अपना सजा – सलोना रुप देखकर मचलती । ऐसा नहीं है कि तनु को विशाल ने पसन्द किया था । पसन्द तो पहले घरवालों ने ही किया था बस उनकी पसन्द पर विशाल ने मुहर लगाई है । पर कहीं से ये सुनने को मिला कि तनु को किसी ने कहा है लड़का बिल्कुल तुम्हारी तरह चंचल मस्तमौला, बिंदास और जिंदादिल है ।
बात भी सही है , पर ये सब खूबियां होने के वावजूद भी विशाल एक जिम्मेदार बेटा है । और वैसे भी ज्यादातर बेटे ऐसे होते हैं कि जब पत्नी उनके माता – पिता और घरवालों को चाहे उनके लिए समर्पित रहे तो उन्हें पत्नी से अथाह प्रेम हो जाता है ।
आखिरकार…तनु अब गाड़ी में बैठने को तैयार थी । सबसे गले लगते हुए उसकी आँखों से अथाह शैलाब उमड़ पड़ा । फूट कर तनु रो पड़ी । गले लगते हुए सारे रिश्तेदार भावी जीवन के लिए आशीर्वाद दे रहे थे । गाड़ी में बैठते ही विशाल ने अपने हाथों को तनु के पीठ पर ढाढस बंधाते हुए रखा तो उसे प्यार और परवाह की गर्माहट सी हुई । ऐसा लगा सारे अपनो से दूर होने के बाद भी कोई अपना है ।
दूरी ज्यादा लंबी तो नहीं थी लेकिन रास्ते में पड़ने वाले मंदिर के दर्शन करते हुए जाने में दो घण्टे लग गए । दूर से ही बहुत सारे लोग सड़क पर दिखे तो तनु को समझते देर न लगी कि ये सारे ससुराल वाले ही हैं जो उसके स्वागत के लिए दहलीज़ पर खड़े हैं । आरती की थाल सजाकर दादी सास और सासु माँ मालती जी ने प्यार से द्वार प्रवेश कराया । आज यूँ लग रहा था मालती जी का सपना पूरा हो गया । सुंदर सलोनी तनु को मालती जी ने अपनी बहन के बेटे की शादी में देखा था और उसकी चंचलता पर मुग्ध होकर उन्होंने तनु को बहु बनाने का निश्चय कर लिया था ।
दो दिनों के रस्म पूरे होने के बाद मालती जी ने श्रीनगर का टिकट विशाल के हाथ में रखते हुए कहा..”1 सप्ताह का श्रीनगर ट्रिप है बेटा तुम दोनों के लिए, तुम्हारे पापा और मेरी तरफ से । घूम कर आओगे तो उम्मीद करती हूँ तुम दोनों मिलकर घर की जिम्मेदारियां निभाओगे ।
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अगले दिन पैकिंग हो गयी और चल दिए तनु विशाल हनीमून के लिए । दो दिन घूमने के बाद तनु को बुखार और कंपकंपी सी होने लगी । विशाल ने दवा लाकर दिया तो थोड़ा राहत महसूस कर रही थी तनु । बुखार तो ठीक हो गया था लेकिन सुस्ती सी आ रही थी । विशाल ने कहा..”घर में बात कर लो , समय कट जाएगा ।
तनु ने कहा..”लंबी बात करनी है मुझे आज कहीं घूमने नहीं जाएँगे , होटल में ही सारा दिन रहेंगे । विशाल ने सिर हिलाते हुए हामी भरी और तनु की मम्मी को फोन लगाकर दे दिया । दोनों माँ – बेटी की बातें करीब एक घण्टे से ऊपर जारी थीं । मम्मी का फोन रख के तनु ने चचेरी बहनों को तो फिर भाभी को, सहेली को सबको बारी – बारी से फोन मिलाया । इशारे से बार – बार खाने के लिए पूछना चाह रहा था विशाल पर तनु मग्न थी बातों के जाल में ।
बहुत देर के बाद विशाल ने खाना मंगवा दिया तब तनु का हाथ पकड़ते हुए धीरे से खा लेने बोला । विशाल के दिमाग में अचानक से ये बात घूमने लगी..”कितने लोगों से तनु ने अपना जी बहलाने के लिए बात किया लेकिन एक बार भी मेरे मम्मी – पापा को न फोन किया न हालचाल लिया । फिर विशाल ने अपने विचारों को झटककर काबू में किया । तनु ने खाना को मना करते हुए सिर्फ अपने लिए सूप मंगवाया । सूप पीना ही शुरू की थी कि विशाल ने चुहल भरे अंदाज़ में कहा..”मैडम ! फुर्सत मिल गयी हो तो मेरी मम्मी को भी फोन कर लीजिएगा ।
तनु हाँ में सिर हिलाते हुए अपनी सहेली पर वीडियो कॉल से बात करने लगी । ऐसे ही सुबह से रात हो गयी । फिर खाने से पहले विशाल ने मम्मी से बात करने को याद दिलाया तो वह टालते हुए फोन पर गेम खेलने लगी और खाना, दवा खाकर सो गई ।
विशाल तो पहले हैरान हुआ । फिर उसने सोचा मैं गलत सोच रहा हूँ, अभी तो नई शादी हुई है और तबियत भी तनु की खराब थी । सोचते – सोचते मालती जी का फोन आ गया और वो तनु से बात करना चाह रही थीं तो विशाल ने कहा..”थक गई थी मम्मी, सो गई है । मालती जी ने कहा..”हाँ बेटा ! दिन भर घूमने के बाद थकान हो ही जाती है, सोने दे उसे ।
विशाल को मम्मी की ये बात सही लगी उसने दिमाग में बसा लिया और वो भी सो गया ।
अगली सुबह तनु अच्छा महसूस कर रही थी । विशाल ने एक ड्रेस उसे पकड़ाते हुए कहा..”तैयार हो जाओ, नाश्ता करके सैर पर निकलेंगे । तनु ने विशाल से पूछा..”पहले बताओ यहाँ से मुझे अपने साथ चुनार ले चलोगे न ? विशाल ने मुस्कुराते हुए कहा..”तुम्हें अभी तो घुमा दिया । ससुराल चल के थोड़ी जिम्मेदारी जो है वो निभा लो न । फिर तो तुम्हें मेरे ही साथ रहना है ।
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विशाल की बातें सुनकर तनु ने नाराजगी दिखाते हुए कहा..”अभी तो हमारी शादी हुई है अभी से मुझे जिम्मेदारी में मत बांधो । इधर दस दिनों से मैंने मम्मी को नहीं देखा , मुझे उनसे मिलना है ।और वैसे..किस ज़िम्मेदारी की बात कर रहे हो ? हनीमून का सारा मज़ा किरकिरा कर दिया । विशाल ने उसका गाल प्यार से दबाते हुए कहा..कहाँ मज़ा किरकिरा कर रहा हूँ ? दादी को मम्मी कब से देखभाल कर रही हैं कम से कम पन्द्रह – बीस दिन दादी के साथ रह लो, बहुत कमजोर हैं वो । उन्हें भी अच्छा लगेगा और माँ को भी थोड़ा सहारा हो जाएगा ।
तनु का गुस्सा वाला मुँह देखकर मामला को समझते हुए विशाल ने कहा..”अरे बाबा ! नाराज मत हो । अभी बहुत समय है । तुम्हें अपने मायके जाना है न ? अब चलो समय न बर्बाद करते हुए घूम आएं । अब तनु अच्छा महसूस कर रही थी ।
देखते – देखते हनीमून का दिन खत्म हो गया और लौटने का समय आ गया । विशाल तनु को लेकर उसके मायके आ गया । तनु की मम्मी की खुशी का ठिकाना नहीं था । उन्होंने तनु की पसन्द का सारा खाना बनाया और डायनिंग टेबल पर साथ बैठकर सब खा रहे थे । तनु अपने ससुराल और ट्रिप की सारी बातें बता रही थी । खाना खाने के बाद तनु ने मम्मी को एक स्वेटर और शॉल और पापा को जैकेट उपहार स्वरूप दिया ।
विशाल सोचकर आश्चर्यचकित था कि तनु को कितनी समझ है इन चीजों की, मुझे पता ही नहीं चला और उसने इतनी शॉपिंग कर ली । अच्छा है मेरी भी मम्मी को देगी तो वो खुश हो जाएंगी । सब बातों में मशगूल थे ।
शाम को विशाल ने तनु की मम्मी से कहा..”हमलोग सुबह जल्दी ही निकल जाएँगे , मम्मी वहाँ नाश्ता बनाकर रखेंगी । “बेटा ! मैं तो कहता हूँ रहने दो तनु को यहाँ । जब अच्छे से तुम घर सेट कर लोगे तभी वो जाएगी । तनु के पापा ने ये बातें कही तो विशाल को नश्तर की तरह चुभने लगी । अब उसे ये समझते देर नहीं लगी कि तनु के मम्मी – पापा सिर्फ स्वयं के लिए सोच रहे । दिन भर रहने के बाद एक बार भी नहीं देखा कि कर्तव्य और ससुराल की जिम्मेदारी किसी ने सिखाई होगी ।
घर निकलने के लिए विशाल तैयार हो रहा था तो उसने तनु से कहा..”चलो न तुम भी , ऐसे अकेले जाना ठीक नहीं लगता । तुम फिर दुबारा आ जाना । तनु ज़िद पर अड़ी रही..”मैंने मायके में कभी कोई काम नहीं किया बहुत नाज़ों से पली – बढ़ी हूँ । मैं तुम्हारे घर की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती । चलती हूँ तुम्हारे साथ लेकिन जब तुम अपने काम पर जाओगे मैं मायके आ जाऊँगी । अब तनु और विशाल अपने घर पहुंच गए । देखते – देखते एक सप्ताह हो गया तो विशाल ने पूछा..”मम्मी को स्वेटर दे दिया ? तनु ने बोला..”मैं तो सिर्फ अपनी मम्मी की पसन्द जानती हूँ मम्मी जी के लिए नहीं लायी । हैरान हो गया विशाल इतने सुंदर मुख के पीछे की कटु सच्चाई जानकर लेकिन उसे पहले से आभास था ।
विशाल की छुट्टियाँ खत्म हो गईं और उसके वापस लौटने की तैयारी थी । तनु न किसी से बोलती न किसी की बातों पर ध्यान देती न किसी के संग मुस्कुराती । उस दिन विशाल के गले उसने लिपटते हुए कहा..”मुझे नहीं रहना तुम्हारे बिना यहाँ । मैं किसी से घुली – मिली नहीं किसी को जानती नहीं और न ही मुझे काम आता है । मुझे सास की उलाहनों से भी बहुत डर लगता है ।
अब हँसी आ गयी विशाल को । उसने ज़ोर से ठहाका लगाते हुए तनु को अपनी बाहों में भरकर कहा..”मुझसे प्यार है न तुम्हें ,? तनु ने मुस्कुराकर कहा..,बहुत !
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विशाल ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा…”उसी प्यार की खातिर मेरी ये बात मान लो न । शादी सिर्फ मायके में रहकर ससुराल की जिम्मेदारियों से भागने का नाम नहीं है । और शादी सिर्फ लड़के की लड़की से नहीं होती, सब रिश्तों को साथ में निभाना होता है । मम्मी भी बहुत अच्छी हैं तुम प्यार से माँ समझोगी तो वो भी तुम्हें बेटी समझेंगी ।
ससुराल को भी अपने मायके की तरह मान दोगी, समानता का व्यवहार रखोगी तो सब तुमसे बहुत प्यार करेंगे । मैं तो घर में इकलौता हूँ न , मेरे अलावा और कौन है तो मैं उम्मीद भी तुमसे करूँगा । मैं तो मना ही नहीं कर रहा तुम्हें ले जाने से, बस थोड़े दिन दादी के साथ रह लो । दादी ने मुझे बहुत प्यार दिया , मम्मी – पापा सबके लिए वो अनमोल हैं । रही काम सीखने की बात वो तुम्हें मम्मी सिखा देंगी ।
“हाँ बेटा ! भरोसा रखो मुझपर । मालती जी भी बातें सुनते हुए अचानक कमरे में आ गईं । उन्होंने कहा.. मैं तुम्हें हर काम सिखा दूँगी , धीरे – धीरे मेरे साथ रहकर हाथ बंटाना शुरू कर दो बेटा । विशाल का घर था ये, और अब तुम्हारा भी है । हम सब मिलकर आपस में एक दूसरे का ख्याल रखेंगे और आदर्श सास – बहू की मिसाल पेश करेंगे । न तुम मेरी बातों से दुःखी होना न मैं होऊँगी । खुशी से हम बिताएँगे ये सारे दिन और मुझे विश्वास है एक दिन तुम इस घर को अपना लोगी ।
सासु माँ और पति की प्यार भरी बातें सुनकर तनु का मन द्रवित हो गया । तनु ने प्यार से मालती जी और विशाल को हृदय से लगा लिया ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
#बड़ा दिल