एक माँ का गणित – नीरजा कृष्णा

अरे मम्मी जी! आप अभी तक तैयार नहीं हुईं। गाड़ी आ गई है।”
बहू ममता हैरानी से पूछ रही थी। एक पारिवारिक विवाह समारोह में उन सबको हाजीपुर जाना था। बेटे मनोज को पटना में कुछ काम था अतः वो शाम को आने वाला था। वो धीरे से बोलीं,”अभी तुम दोनों बच्चों को लेकर चली जाओ। मैं शाम को मनोज के साथ आ जाऊँगी।”
दोनों बच्चे मनु और मानवी जाने के लिए बहुत उतावले हो रहे थे…उत्साह से बोले भी,”दादी, अभी हमलोगों के साथ चलिए। वहाँ सब मिलेंगें। पापा के साथ तो आप बहुत देर से पहुँचेंगी। क्या एन्जॉय कर पाएँगी।”
पर वो नहीं मानी। बहू ममता बच्चों के साथ निकल गई पर बार बार जल्दी आने का आग्रह भी करती रही।
शाम तक मनोज बहुत थक गया और देर भी बहुत हो गई तो डरते हुए उनसे बोला,”मम्मी, आज तो मेरी बुरी हालत हो गई है। बहुत थक भी गया हूँ। जाने की इच्छा नहीं हो रही है पर अब आप कैसे जाओगी?”



वो प्यार से बोलीं,”वो तो मैं देख ही रही हूँ। कोई बात नहीं। बाकी सब चले ही गए हैं। तेरे लिए खाना लगा दूँ?”
वो हैरानी से बोला,”अरे तुमने खाना भी बना लिया। हमलोगों का तो शादी में जाने का प्रोग्राम था ना।”
उनके चेहरे पर सरल मुस्कान फैल गई। हँस कर बोलीं,”मुझे डाउट था इसलिए एक सब्जी बना ली थी।”  
वो खाते हुए पूछने लगा,”मेरे चक्कर में आप भी पड़ी रह गई। सबके साथ चली जाती ना।”
“अरे ,अपने बेटे को अकेला छोड़ देती क्या? वहाँ भी मन नहीं ही लगता।”
वो किंचित नाराज़गी से बोला,”ये तो बहुत गलत बात है। आखिर ममता और बच्चे भी तो मुझे छोड़ कर गए थे भई।”
वो उसके सिर पर हाथ फेर कर बोलीं,”ठीक तो हुआ। ममता अपने बच्चों के साथ गई और मैं अपने बच्चे के साथ रह गई।”
मनोज खिलखिला पड़ा,”ओह, बहुत बढ़िया हिसाब लगा लिया। एक माँ बच्चों के साथ गई ,तो दूसरी माँ बच्चे के साथ जाने के चक्कर में नहीं गई।।”

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